सांस की दिक्कत,फिर भी अंधाधुंध कट रहे पेड़

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विवेक रंजन।

प्रयागराज। कोरोना का कहर और बीमारी का हाहाकार। लोग डर रहे हैं कि सांस की तकलीफ हुई और जान गई। कोरोना का वार, श्वसन क्रिया पर है और सांस के लिए ऑक्सीजन बहुत आवश्यक। यह बात किताबों में पढ़ाई जाती है। यह बात भी पढ़ाई जाती है और सड़कों के किनारे लगे पेड़ों के लिए लिख दी जाती है कि पर्यावरण को बचाना है ताकि हम सांस ले सकें। कम से कम जिनके घर मे ए.सी. कूलर न हों उन्हें प्राकृतिक हवा मिल सके।

नीचे दिया गया चित्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सामने उस रोड का है जिसके किनारे गुलमोहर के पेड़ों की बड़ी श्रृंखला थी। विकास की बात कहकर इन पेड़ों पर आंरियाँ चल रही हैं। किनारे विद्यार्थियों की बैठकी होती थी। गुलमोहर व अमलताश के फूलों की रंगीन छाया के नीचे बहुत से पथिक आराम करते थे। यह सड़क इतनी भी व्यस्त व जाम से भरी नही थी जितना निर्माण करने वालों को लग रहा है। वो सड़क को चौड़ा कर रहे हैं ताकि उनका विस्तार बढ़ सके। यह काम तब हो रहा है जब विश्विद्यालय में छात्रों की आवाजाही नही है और चारों ओर कोरोना का कहर है।

पेड़ों की ऑक्सीजन को नष्ट करके सिलेंडर में भरके बेचने की पूरी तैयारी हो रही है। अभी इसके विरोध में कोई आवाज नही उठी है। कोरोना के समय आवाज उठाने के लिए आप एकत्र भी नही हो सकते।


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