आरक्षण देश का कलंक

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संतोष श्रीवास्तव।

प्रजातांत्रिक व्यवस्था में आरक्षण योग्यता के साथ क्रूर मजाक है। किसी भी सभ्य समाज व राष्ट्र के लिए यह एक कलंक व अभिशाप है।जिस समाजिक व शैक्षणिक आधार पर संविधान में उस वक्त इसे रखा गया वह भी गलत था यदि इसका पैमाना आर्थिक आधार होता तो समाज मे जातीय संघर्ष व विद्वेष की खाई को कमतर किया जा सकता था। इस आरक्षण ने सदियों के लिए मानवता को बाँट दिया इसका लाभ कितना हुआ यह तो निष्पक्षआकलन मूल्यांकन का विषय है लेकिन इससे देश को अपूरणीय क्षति हुई है जिसे पाटने में कई पीढियां गुजर जायेंगी।
एक षड्यंत्र के तहत समाज को अगला पिछड़ा में बाँट कर समाजिक समरसता व सौहार्द का सदा सर्वदा के लिए गला घोंट दिया गया।
चलिये यह मान भी लें कि सदियों की दासता व तत्कालीन परिस्थितियों ने आरक्षण को 10 वर्षो के लिए करने को बाध्य किया तो आर्थिक आधार क्यों नही रखा गया। गरीबी सभी सम्प्रदाय व जातियों में कमोबेस है। गरीब व्यक्ति खुद अपने परिवार के सम्पन्न लोगों के बिच उपेक्षित होता है।
होना यह चाहिए था सरकार दबे कुचले उपेक्षित व गरीबो के लिए फ्री व अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था कर उन्हें इस काबिल बनाती की वे किसी प्रतियोगिता व कार्य अपनी योग्यता के बल पर प्राप्त करते आरक्षण को किसी भी दृष्टि से जायज नही कहा जा सकता।यह योग्य व प्रतिभासम्पन्न लोगों के मनोबल को तोड़कर उन्हें कुंठाग्रस्त बना देता है।वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समाज बहुत बदल गया है अब तत्कालीन समाज की परिस्थितियां भी नही है।
परमात्मा ने केवल नर व नारी जीवन के दो पहिये बनाया वर्ण आधारित समाज व्यक्ति के खुद के गुण व कर्म की देन है उसे इसमें बदलाव करने की खुली छूट प्राप्त है जाति बाद की कार्य विशेषीकरण आधारित बन्द वर्ग है।
वर्त्तमान में हर व्यक्ति सुबह से शाम तक हम अपने दैनिक जीवन मे प्रायः सभी तरह के कार्य सम्पादित करते हैं।अतः जातिगत आरक्षण समाप्त कर अभिशप्त भारत को इससे मुक्त करना बहुत जरूरी है।
सरकार आरक्षण समाप्त कर समता मूलक एक नए भारत के निमार्ण का शंखनाद करे।विषमता को समाप्त कर एक ऐसा समतामूलक भारत का निर्माण हो जिसमें प्रतिभाओं को सम्मान मिले उन्हें उपेक्षा का दंश न झेलना पड़े न आत्महत्या के लिए बाध्य होना पड़े एक सच्चे जनतांत्रिक व्यवस्था के मजबूत पिलर हर भारतीय बने गर्व के साथ कह सके हमारा भारत महान हम भारत की आन बान शान।

राष्ट्र कवि दिनकर के शब्दों में –
“जय हो जग में जले जहां भी नमन पुनीत अनल को।
जिस नर में बसे हमारा नमन तेज को बल को।।
किसी वृंत पर खिले विपिन पर नमस्य है फूल।
सुधि खोजते नही गुणों का आदि शक्ति का मूल।।”


“जाति जाति वे रटते जिनकी पूंजी केवल पाखण्ड मैं क्या जानूँ जाति जाति है ये मेरे भुजदण्ड।”

लेखक, प्रवक्ता है जय हिंद नेशनल पार्टी, व मंत्री काशी प्रान्त के है और भारत तिब्बत सहयोग मंच के प्रतिनिधी।


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