नवरात्रि की पूजा में प्रयुक्त होने वाली सामग्री का धार्मिक आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व

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डॉ अमित व्यास, ज्योतिष एवं वास्तुविद

नवरात्रि एक ऐसा त्योहार है जिसमें नवरात्रि पूजा सामग्री लोगों को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से लाभ पहुंचाता है। इसके पीछे के वैज्ञानिक कारणों से इसकी महत्ता और बढ़ जाती है। नवरात्र के वैज्ञानिक महत्व को समझने से पहले हम नवरात्र को समझ लेते हैं। मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है- विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से नौ दिन अर्थात नवमी तक। इसी प्रकार इसके ठीक छह मास पश्चात् आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक नवरात्र मनाया जाता है। लेकिन, फिर भी सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। इन नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग-साधना आदि करते हैं।

वैज्ञानिक आधार
नवरात्र के पीछे का वैज्ञानिक आधार यह है कि पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक साल की चार संधियां हैं जिनमें से मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं। अत:उस समय स्वस्थ रहने के लिए तथा शरीर को शुद्ध रखने के लिए और तन-मन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम ‘नवरात्र’ है।

उपवास के माध्यम से शारीरिक कायाकल्प“:
खगोलीय और मौसमी परिवर्तन: नवरात्रि महत्वपूर्ण खगोलीय घटनाओं से जुड़ी होती है: विषुव और संक्रांति, जो ऋतुओं के परिवर्तन को चिह्नित करने में महत्वपूर्ण हैं। चारों नवरात्रि में से प्रत्येक एक विशेष मौसमी परिवर्तन से जुड़ी होती है, जैसे कि गर्मी या सर्दी की शुरुआत।

विषहरण और रोग प्रतिरोधक क्षमता: मौसम के बदलाव, खास तौर पर शारदा नवरात्रि के दौरान, अक्सर रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी और संक्रमणों में वृद्धि से जुड़ा होता है। नवरात्रि के दौरान उपवास और सात्विक आहार लेना विषहरण का काम करता है, पाचन तंत्र को आराम देता है और शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है।

मानसिक कायाकल्प और मनोवैज्ञानिक लाभ:
नकारात्मक भावनाओं का मुकाबला: नवरात्रि क्रोध, वासना, लालच और ईर्ष्या जैसी नकारात्मक भावनाओं को खत्म करने पर ध्यान केंद्रित करके मानसिक विषहरण का भी समय है।

उपवास का मनोवैज्ञानिक प्रभाव: उपवास केवल शारीरिक गतिविधि नहीं है, बल्कि मानसिक गतिविधि भी है। यह इच्छाशक्ति को मजबूत करने, ध्यान केंद्रित करने और आत्मनिरीक्षण और आत्म-खोज के लिए एक मंच प्रदान करने में मदद करता है।

आध्यात्मिक कायाकल्प:
ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ना: नवरात्रि की रातें आध्यात्मिक अभ्यास के लिए शक्तिशाली मानी जाती हैं। भक्तगण दिव्य स्त्री ऊर्जा से जुड़ने के लिए ध्यान, प्रार्थना और विभिन्न अनुष्ठानों में संलग्न होते हैं।

भौतिक और आध्यात्मिक पहलुओं में संतुलन: देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा करने की प्रथा नकारात्मक सांसारिक पहलुओं पर सकारात्मक आध्यात्मिक ऊर्जा की विजय का प्रतीक है।”

“पंचभूत अथवा पञ्च तत्वों की पूजा की जाती है”
जल तत्व की कलश में, अग्नि तत्व की हवनकुंड में, ज्योति के रूप में, वायु तत्व की मंत्र जाप द्वारा, पृथ्वी तत्व की पूजा मंडलों के रूप में यह सब पूजा आकाश तत्व के सानिध्य में ही होती हैं ।”


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