गंगा के स्वच्छ होने के पीछे ज्योतिषियों और वैज्ञानिकों के अलग-अलग दावे

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हरिद्वार, 14 अप्रैल (हि.स.)। दुनिया भर में कोरोना वायरस का कोहराम मचा हुआ है। भारत में भी लॉकडाउन की वजह से पिछले 20 दिनों से सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। गंगा के घाट पूरी तरह से सूने पड़े हैं। लॉकडाउन का सबसे ज्यादा लाभ हमारे पर्यावरण और गंगा, यमुना सहित सभी नदियों को हुआ है। पर्यावरण पूरी तरह से साफ और स्वच्छ है और गंगा सहित सभी नदियां एकदम निर्मल रूप में बह रही है। इस पर ज्यातिषियों और वैज्ञानिकों के अपने-अपने तर्क और दावे हैं। 

अगर ज्योतिष की बात करें तो ज्योतिषी इसे विशेष ज्योतिषीय योग की वजह से होना बता रहे हैं। ज्योतिषाचार्य डॉ. प्रतीक मिश्रपूरी का कहना है कि हर 12 साल बाद जब बृहस्पति मकर राशि में आते हैं और सूर्य कुंभ राशि में तब धरती पर चार स्थानों पर कुंभ लगता है। मान्यता है कि इस अमृत योग में देवी देवता हरकी पैड़ी ब्रह्मकुंड में गंगा स्नान करने आते हैं। उनका कहना है कि बृहस्पति अपनी चाल की वजह से लगभग 84 साल में एक बार मकर राशि में 12 की बजाय 11 साल में आते हैं। इसी वजह से इस साल कुंभ 12 की बजाय 11 साल में पड़ रहा है। जब भी ऐसा होता है तो शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मकुंड में मानव का स्नान करना वंचित माना जाता है। इस योग काल में ब्रह्मकुंड में तब केवल देवी, देवता गंधर्व आदि स्नान करते हैं। हर 84 साल में प्रकृति अपने आप ऐसी स्थितियां बना देती है। 

उन्होंने बताया कि ऐसा ही योग इससे पहले 1938, 1855, 1772, 1677, 1594, 1416 और 1333 में भी हो चुका है, जब बृहस्पति अपनी चाल की वजह से 12 की बजाय 11 साल में मकर राशि में आ गए थे। कलयुग में मानव का स्वभाव उग्र हो जाता है और तीर्थों की मर्यादा भंग होने लगती है, धरती पर कई तरह के दोष पैदा हो जाते हैं, ऐसे में प्रकृति एक कालखंड में इन दोषों को मुक्त करती है। मिश्रपूरी का कहना है कि आज गंगा पवित्र और निर्मल रूप से देवी देवताओं का धरती पर स्वागत कर रही है और वृहस्पति 30 जून तक मकर राशि में रहेंगे। तब तक ऐसी स्थिति बनी रहेगी। 

उधर, वैज्ञानिकों का कहना है कि यह ज्योतिषीय आधार भी हो सकता है, मगर लॉकडाउन की वजह से तमाम मानवीय गतिविधियां लगभग पूरी तरह से बंद पड़ी हैं, जिसका असर सीधा हमारे पर्यावरण पर पड़ रहा है। पर्यावरण वैज्ञानिक बीडी जोशी बताते हैं कि इस वक्त गंगा निर्मल और स्वच्छ रूप में बह रही है। गंगा में इस वक्त घुलित ठोस पदार्थ की मात्रा बहुत कम हो गई है और जल की पारदर्शिता बड़ी है। गंगा जल में ऑक्सीजन की मात्रा में भी 20 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। इनका कहना है कि औद्योगिक कचरा और नदियों के किनारे यात्रियों का आवागमन लगभग खत्म है। होटल बंद पड़े हैं, जिसकी वजह से सॉलिड वेस्ट गंगा में नहीं जा रहा है। यह भी बहुत बड़ी वजह गंगा के स्वच्छ निर्मल होने की है। 

फिलहाल साधु संत भी गंगा के स्वच्छ और निर्मल होने से बहुत खुश हैं। साधु संतों का कहना है कि गंगा वैसे तो हमेशा से पवित्र रही है और लॉकडाउन की वजह से यात्रियों के ना आने से गंगा और भी ज्यादा पवित्र हो गई है, क्योंकि इस वक्त ना तो होटल का गंदा पानी गंगा में जा रहा है और ना ही किसी प्रकार की गंदगी। दरअसल, कोरोना तो एक बहाना बन गया जबकि यह बात तो सदियों पुरानी है। करीब 9 दशकों में एक बार गंगा स्वच्छ और निर्मल होकर बहती है। इस दौरान कोई भी मानव गंगा में डुबकी तक नहीं लगा पाता और इसकी पुष्टि ज्योतिषाचार्य भी कर रहे हैं। उन्होंने भी कई वर्षों का इतिहास बताया है, जो हमारे पुराणों में दर्ज है। इस वक्त हरकी पैड़ी का नजारा देखकर भी ऐसा ही लगता है। वहीं वैज्ञानिक गंगा के स्वच्छ और निर्मल होने को मानव की आवाजाही कम होना बता रहे हैं।


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