पहले जैसा रोचक व मनमोहक नही होगा राष्ट्रीय शिल्प मेला की आकांक्षा

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राष्ट्रीय शिल्प मेला,उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र,प्रयागराज द्वारा प्रयागराज की जनता के बीच आयोजित होने वाला ऐसा कार्यक्रम है,जिसका इलाहाबादियों को बेसब्री से इंतज़ार होता है। एक मंच पर भारत की लोककलाएं सतरंगी रूप में प्रस्तुत होती हैं। शहर के लोगों में इस मेले को लेकर एक अलग ही उत्साह होता है। लेकिन इस बार का मेला वैसा नही हो रहा जैसा विगत वर्षों में होता आया है। मंच की भव्यता वैसी नही जैसा पिछले सालों में हुआ करती थी। शिल्प व खान-पान से सम्बंधित दुकाने तो सज रही,पर सांस्कृतिक कार्यक्रमो के लिये बन रहे पांडाल व कार्यक्रम की भव्यता को लेकर कुछ खास तैयारी नही दिख रही जो पिछले वर्षों में दिखती रही। कारण कोरोना है अथवा बजट या फिर निदेशक का असफल प्रयास,यह तो केंद्र जाने। फिलहाल कल से शिल्प मेला शुरू हो रहा है।

आज प्रेस कांफ्रेंस के दौरान निदेशक ने शिल्प मेले में हो रहे नए प्रयोग के बारे में पत्रकारों से चर्चा किया। स्टाल आदि के बारे में तो वो ब्यौरा दे पाए परन्तु सांस्कृतिक कार्यक्रम से सम्बंधित विषय पर जब सम्पूर्ण माया के पत्रकार ने प्रश्न किये तो मुकम्मल जवाब नही दे पाए। वो बार बार यह कहते रहे कि हम इस बार नए कलाकारों को मौका दे रहे हैं। लोक विधाओं में भी परिवर्तन किया गया है। इस बार कहरवा नृत्य,गेंड़ी नृत्य,छाऊ नृत्य की अलग खरशबा विधा,किन्नौरी नाटी,दिवारी पाई डंडा,सम्भलपुरी नृत्य,गोंधल नृत्य,चौलर,भोरताल,पंवारा लोकगीत आदि नई विधाएं देखने को मिलेगी।

जब निदेशक से पूछा गया कि केंद्र के मेमोरेंडम के अनुसार मृतप्राय लोककलाओं का संवर्धन व संरक्षण करना केंद्र का उद्देश्य है और ऐसा कोई प्रयास इस शिल्प मेले में नही दिख रहा तो उन्होंने अधूरा उत्तर देकर बात को घुमा दिया। वो बार बार पिछले निदेशक के कार्यों को कोसते ही दिखे।

मेला पांडाल के बारे में उन्होंने कहा कि कल तैयारियां दिखेंगी लेकिन आज के दिन उस मौके तक मंच एकदम नीरस दिखा। कल मंच कैसा दिखेंगा यह तो कल शुरू हो रहे मेले में ही देखने को मिलेगा।

हर वर्ष की तरह वही कजरी,चैती,आल्हा गायन जैसी लोकविधाओं के आयोजन के सम्बंध में जब सवाल किया तो उन्होंने उल्टे पत्रकार से ही कहा कि आप ही बताएं कि हम कौन सी कलाएं प्रस्तुत कराएं। लोकविधाओं के बारे में जो जानकारी निदेशक को होनी चाहिए वो उल्टा पत्रकार से ही पूछ बैठे।

जो भी प्रश्न उनसे किये गये वो अपने कर्मचारियों से ही पूंछते नज़र आये। यहां तक कि वो यह बताने में अक्षम रहे कि यह शिल्प मेला किस थीम पर होने जा रहा है। जबकि बड़े बड़े बैनरों में साफ लिखा है कि ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’। कुल मिलाकर कल के मेले का इंतज़ार है। निदेशक जिस नए प्रयोग की बात आज पत्रकारों से किये हैं,वो तो कल के मेले से ही पता चलेगा कि उनकी बात में कितनी सच्चाई है।

दिनवार जो कार्यक्रम की लिस्ट प्राप्त हुई हैं उनमें उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, तेलंगाना, उड़ीसा, अरुणांचल प्रदेश, हिमांचल प्रदेश,असम,महाराष्ट्र व त्रिपुरा की लोककलाओं को देखने को मिलेगा। निदेशक ने कहा कि हमारी उम्मीद है कि लोगों को इस बार के मेले को देख प्रसन्नता होगी। उनका यह भी कहना है कि उन्होंने किसी भी कलाकार को रिपीट नही किया है। गरीब व दयनीय स्थिति में जी रहे शिल्पकारों को आमंत्रित किया है। कल मेले का उद्घाटन प्रयागराज के मण्डलायुक्त संजय गोयल करेंगे। निदेशक सुरेश शर्मा के कार्यकाल का यह पहला राष्ट्रीय शिल्प मेला है। देखना ये है कि मेले से शहर के दर्शक व आने वाले कलाकार कितने सन्तुष्ट होते हैं।


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