विश्वव्यापी जाँच पड़ताल और हर संभावनाओ के लिए तैयार रहना होगा !
करोना, लॉक डाउन के दूसरे चरण की समाप्ति की और बढ़ते हुए देश में, सब तरह की राजनैतिक, धार्मिक और व्यक्तिगत अनुशासनहीनता के बीच, देश का स्वास्थ्य तंत्र और अक्षम, “दरबार चालीसाई” समितियों ने क्या सार्थक योगदान दिया है? आज नहीं तो कल, इतिहास के पन्ने इसका आकलन करवा ही देंगे, लेकिन यह समूह, सरकार को सिर्फ वो ही दिखा रहा है, जो उसे दिखाने को कहा जा रहा है, इस बीमारी पर अपने देश और लोगों को बचाने, दिनरात एक कर रहे प्रधानमंत्री जी के आव्हान पर, ज्यादातर लोग उसका पालन तो कर रहे हैं, लेकिन क्या महकमा अपना काम पूरी सक्षमता से कर रहा है?
कदापि नहीं, और संभवतः उसे तो अभी तक भी यह पता ही नहीं है, कि वास्तव में करना क्या है ?
भ्रष्ट तंत्र और मेडिकल मैनेजराई धनपिचास माफिया ने चुन चुन कर मरीजों की रेवड़ियां अपने यहाँ जमा कर लीं और उम्रदराज गंभीर मरीज सरकारी तंत्र के हवाले करवा दिए हैं, जाहिर है, इनके आंकड़े बेहतर होंगे और यही नहीं, रक्त प्लाज़्मा के अमृतदान की तिजोरियां भी इन्ही के यहाँ भरेंगी लेकिन इस दुर्लभ प्लाज़्मा दान उपचार और इस बीमारी की सतत स्टडी के क्या पैमाने तय किये गए हैं, यह कोई बताएगा? क्या हम अमेरिका या चीन में आलरेडी किये जा रहे उपचार प्रक्रिया का बुनियादी अनुसरण भी नहीं करेंगे ?
इस समय हो क्या रहा है?
सिर्फ उनकी और उनके निकटस्थ लोगों की जांच, जिन्हें संक्रमण हुआ है। जबकि होना यह चाहिए कि सभी लोगों की बार बार (थ्रोट स्वाब के साथ, मल स्वाब और रक्त में एंटीबॉडीज का स्तर तलाशने इम्मून सिस्टम मार्कर्स के लिए न्यूक्लिक एसिड टेस्ट्स ) जांच होनी चाहिए। विश्व में जहाँ सबसे ज्यादा और गंभीर संक्रमण हुआ है, उनके पैटर्न को भी अगर हमने फॉलो कर लिया होता तो एक वैश्विक पैटर्न के जरिये पूरी दुनिया को राह दिखाने में हम सबसे आगे होते। हम अभी तक उस अक्षम रेपिड किट से जांच कर रहे थे, जिसके नतीजे ही विश्वसनीय नहीं है। तो फिर इसके आगे की राह हमारे लिए कितनी कठिन होगी ? अगर हम सिर्फ वुहान के पैटर्न को ही समझ उसके सहारे आगे बढ़ते तो ?
चीन ने सबसे ज्यादा मरीजों वाले शहर वुहान में पूरी सख्ती दिखा कर ७५ दिन का लॉक डाउन किया और विश्वभर से छुपा कर अपने यहाँ ना सिर्फ इसे कंट्रोल कर लिया बल्कि उसने उससे भी आगे बढ़कर, आम जनता में इम्मुनिटी का स्तर, रक्त में एंटीबॉडीज तलाशने, अपने सभी आम नागरिकों, ख़ास तौर पर काम पर लौटने वाले व्यक्तियों के, रक्त के सीरियल सेम्पल लेना शुरू कर दिए हैं, फिर वो चाहे संक्रमित हुए भी हों या नहीं, इससे उसे कई तरह के भावी उपचारों की रुपरेखा बनाने में मदद मिलेगी और बीमारी को वापस आने से रोकने में भी मदद मिलेगी।
रायटर्स के अनुसार कन्फर्म मरीजों की तुलना में, आम लोगों के शरीर में एंटीबॉडीज का स्तर बेहतर पाया गया है, जिससे यह स्पष्ट अंदाज लगता है कि लोग इस बीमारी से संक्रमित तो हुए, लेकिन बिना किसी तकलीफ ठीक भी हो गए। और अब संभवतः उनमे इम्मुनिटी बन गई होगी और इन लोगों के सीरियल सेम्पल यह तय करेंगे कि भविष्य में कब तक इनमे इम्युनिटी रहेगी, और क्या वेक्सीन बनाई जा सकेगी, यह तय करने में भी आसानी होगी, जैसे लाइफ लॉन्ग इम्युनिटी मिलेगी या शार्ट टर्म, जैसे चेचक के सिर्फ एक टीके से जीवनपर्यन्त इम्युनिटी मिल जाती है, लेकिन टिटनस के टीके समयांतर में बार बार लगाने पड़ते हैं।
हालांकि, अभी तो यह शुरुआत मात्र है, और हर्ड इम्युनिटी, अर्थात इस बीमारी से थोड़ा सा रिलेक्स होने के लिए, कम से कम ५० से ६० % लोगों का इससे संक्रमित होकर, ठीक होना आवश्यक है।
वुहान के झोंगनान अस्पताल के प्रमुख की रिपोर्ट के अनुसार, उसके कर्मचारियों, मरीजों, विजिटर्स और आम जनता के सेम्पल्स के आंकड़ें बताते हैं, कि अभी भी काफी समय तक लोगों को सोसिअल डिस्टेंसिंग का पालन करना होगा ताकि वायरस आपके शरीर तक पहुंचे तो, कम से कम संख्या में, और आप का शरीर उससे लड़ सके, इम्मुनिटी बना सके।
वुहान में थ्रोट स्वाब के साथ, मल स्वाब और रक्त में एंटीबॉडीज का स्तर तलाशने इम्मून सिस्टम मार्कर्स के लिए न्यूक्लिक एसिड टेस्ट्स भी किये जा रहे हैं, जिससे संक्रमित और एसिम्पटोमेटिक जनसमूह के स्पष्ट आकलन के अलावा, हवा में ड्रॉपलेट कम्यूनिटी स्प्रेड, और मल के जरिये पेयजल स्त्रोतों के संक्रमण को जांचने और उसकी रोकथाम में भी मदद मिलेगी।
इतने सब के बावजूद भी चीन अभी तक इस बीमारी की रोकथाम के प्रयासों से संतुष्ट नहीं है और कितने एसिम्पटोमेटिक कॅरियर उसके यहाँ मौजूद हैं, उसकी कल्पना मात्र से ही घबराया हुआ है, फिर क्या हमारे देश के कर्णधारों को १३० करोड़ लोगों की भारी भरकम जनसँख्या को लेकर चिंतित नहीं होना चाहिए ? चीन की रिपोर्टों के अनुसार, उसके यहाँ ठीक हो चुके और नेगेटिव थ्रोट स्वाब वाले मरीजों के मल स्वाब में २१ से २८ दिन तक भी एक्टिव वायरस लोड वाले सेम्पल पाए गए हैं, इसका बहुत सीधा सा अर्थ, हमारे देश में निकाला जा सकता है, क्योंकि हर साल की तरह इस साल भी जब गर्मी में, हमारे यहाँ वाटरबोर्न डिसीसेस की भरमार होगी, तब इस वायरस के फीकोओरल रूट के फैलाव और पेयजल संक्रमण के चलते क्या हाल होंगे, इसकी कल्पना की जा सकती है, क्योंकि हमारे यहाँ पेयजल स्त्रोतों को गंदा करने की परिपाटी और सभ्य समाज की ढीढता सबको मालूम है और हम सिर्फ सांप निकल जाने के बाद लाठियां भांजने में ही माहिर हैं।
उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार में, एक्शन टीम में, नेताओं और दरबारियों की जगह, योग्य और कर्मठ विशेषज्ञों को अभी भी जगह मिले तो देश और जनता का भला हो। पर क्या ऐसा होगा ?
क्या हम जैसे हर साल डेंगू, मलेरिया, उलटीदस्त, पीलिया पर पर्चे छपवा कर लोगों को जागरूक कर अपने कर्तव्य की इतिश्री और हेल्थ बजट की मातोश्री कर लेते हैं, उसमें अब कोरोना का नाम भी जुड़ जाएगा ?
नहीं, कदापि नहीं, सक्षम जागरूक लोगों के चलते, तो कतई नहीं।
तो आइये, सोई हुई सरकार को जगाएं और जनता को सच से रुबरुं कराएं।
डॉ भुवनेश्वर गर्ग
डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक