प्रवासी मज़दूरों के मामले में सरकारें और उद्योग जगत हुए बेनकाब

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सरकारें भले ही हजार दावे करें परंतु चाहे वह केंद्र की हो अथवा राज्य सरकारें हों उन्होंने प्रवासी मजदूरों को उनके हाल पर छोड़ दिया था और बाद में काफी समय बीत जाने के बाद उनकी सुध ली गई प्रवासी मजदूर जहां पर रहते हैं वहां के मतदाता वह होते नहीं और जहां के होते हैं वहां पर वह मतदान के दौरान नहीं होते शायद यह एक बड़ा कारण था अन्यथा  लाक डाउन के तत्काल बाद विदेशियों को लाने के लिए मिशन वंदेभारत जैसा कदम उठाया गया और उनको विदेश से लाया गया परंतु जो मजदूर भारत की जीडीपी में 10% का योगदान देते हैं और भारत के कुल श्रम में उनका 28% का योगदान होता है उनकी कोई सुध एक महीने तक नहीं ली गई और जब ली गई तब सरकारों के बीच किराये  को लेकर  ऐसी नौटंकी देखी गई जो शर्मनाक थी इस बीच मजदूर पैदल ही चल चुके थे  भारत की संसद में भारत सरकार ने ही लाकडाउन के कुछ दिनों पहले मार्च  में ही सत्र के दौरान  बयान दिया था कि भारत में लगभग 10 करोड़ से अधिक प्रवासी मजदूर विभिन्न प्रदेशों में रहते हैं हमें यह सोचना होगा कि सरकारें लाकडाउन के बाद 3 महीने तक मुफ्त भोजन देने की घोषणाओं के बावजूद सरकारी प्रवासी मजदूरों को रोकने में क्यों नाकाम साबित हुई? शायद ऐसा इसलिए था क्योंकि प्रवासी मजदूर सरकारों और अपने मालिकों के ऊपर विश्वास करने की स्थिति में नहीं थे, क्योंकि प्रवासी मजदूरों की मेहनत के  परिणाम स्वरूप जीएसटी  पाने वाली सरकार और प्रॉफिट कमाने वाले मालिक ने उनको उनके हाल पर एक माह तक छोड़ दिया था। उत्तर प्रदेश सरकार के अलावा आज भी कोई राज्य सरकार प्रवासी मजदूरों के लिए कोई ठोस कार्ययोजना प्रस्तुत नहीं कर पाई है सिवाय उनको मनरेगा में एडजस्ट करने के, इस तरह की स्थिति में प्रवासी मजदूरों को उपेक्षा का शिकार होना पड़ा है इस स्थिति में केंद्र और राज्य सरकारों की कारगुजारी उजागर हो गई है। यह कहानी तब और स्पष्ट हो गई है भारत सरकार के द्वारा 20 लाख करोड़ के पैकेज में प्रवासी मजदूरों के लिए पांचवीं किस्त में जाकर घोषणा की गई वह भी नकद के रूप में नहीं बल्कि कर्ज के रूप में उसकी घोषणा की गई, जब कि अन्य राष्ट्रों में इस तरह की  सीधी मदद दी गई ‌।यदि केंद्र सरकार चाहती तो 13.9 करोड मजदूरों को 25000 रूपये प्रति मजदूर सीधा मदद कर सकती थी तब भी इस मद में कुल 3.47लाख करोड़ खर्च आता जो उसके द्वारा घोषित 20लाख करोड़ का छठा हिस्सा होता , परंतु वह नहीं की गई, जहां तक बात उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की करें तो उत्तर प्रदेश में कुल 27 लाख प्रवासी मजदूर अभी तक आ चुके हैं और लगातार आ रहे हैं इसमें से सिर्फ एक लाख लोगों को मनरेगा में काम मिल पाया है इसके अलावा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 66 प्रकार के कौशल अर्थात अलग-अलग कार्यों की सूची तैयार की है जिसके अनुसार उन को रोजगार दिया जाएगा यह इस तरह का एक सराहनीय कदम है परंतु अन्य प्रदेशों में प्रवासी मजदूरों को किस तरह से रोजगार देकर उनकी रोजी-रोटी के संकट को बचाया जा सकेगा यह और डरावना हो जाता है जब यह पता चलता है कि अभी तक  इसकी कोई निश्चित कार्य योजना नहीं बनाई गई है इस तरह की घटनाएं प्रदर्शित करती हैं कि हम आज भी अपने लोगों की कितना चिंता करते हैं उत्तर प्रदेश और बिहार के मजदूर सर्वाधिक मात्रा में पलायन करते हैं जबकि इन्हीं दोनों प्रदेशों में सर्वाधिक मिट्टी कृषि योग्य है परंतु 1991 से लगातार 2000किसान खेती छोड़ रहे हैं ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि हमारी सरकारों ने न तो कभी  किसानों की  सुध  ली  न ही प्रवासी मजदूरों की क्योंकि यदि किसानों की सुध ली गई होती तो किसान प्रवासी मजदूर ना बनता और यदि प्रवासी मजदूरों की सुध ली गई होती तो सड़कों पर देश की हकीकत ना दिखती। 8 मई को भारत सरकार ने सूचना के अधिकार के एक कार्यकर्ता को सूचना दी थी भारत सरकार के किसी भी एजेंडे में प्रवासी मजदूरों का कोई डाटा  नहीं है। अर्थात यह प्रवासी मजदूर भारत सरकार के किसी भी आंकड़े में दर्ज नहीं है  अर्थात इनकी संख्या कितनी है ये दर्ज नहीं है। यह उस देश की हकीकत है जो देश 1991 से ही उच्च विकास दर का जश्न मनाता रहा है परंतु जिन श्रमिकों की मेहनत से यह विकास दर  लगातार बढ़ी उनकी पूछने वाला कोई नहीं है ये एक अत्यंत विचारणीय प्रश्न है मार्च में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा लाकडाउन की घोषणा की गई तब बहुत सारे मजदूर ऐसे थे जो होली के तत्काल बाद अपने घर से वापस आए थे इसके अलावा कुछ मजदूर ऐसे भी थे जिन्हें 2 या 3 माह से पगार नहीं मिली थी,  उनकी भी कोई पूछने वाला नहीं था प्रवासी मजदूर तो अपने गांव चले गए हैं और उनकी किसी ना किसी तरह से गांव में बीत जाएगी क्योंकि आज भी गांव में लोग भूख से नहीं मरते आज भी गांव अक्षय पात्र हैं। परंतु उन कंपनी वालों का क्या होगा जो बिना श्रमिक के एक कदम भी नहीं चल सकते हैं इसके अलावा पंजाब जैसे प्रदेश जहां पर सिर्फ खेती करने के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग जाया करते थे वहां का क्या होगा यदि वहां की राज्य सरकारें और वहां के उद्योग जगत ने इनका साथ दिया होता तो यह अपने गांव आने को विवश ना होते आखिर वहां की राज्य सरकारें और वहां के उद्योग जगत ने इन मजदूरों से बहुत सारा लाभ प्राप्त किया है और आज वहां का विकास और विकास दर इन्ही की देन है।कोरोनावायरस की महामारी निश्चित रूप से 1 दिन चली जाएगी परंतु हमको और हमारी सरकारों को भविष्य में इस बात के लिए सचेत रहना होगा कि वर्तमान में हम इस तरह की योजनाएं बनाएं जो हमारे सुनहरे भविष्य का निर्माण कर सकें ।

सौरभ सिंह सोमवंशी (पत्रकार)


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