लीग से हट कर थे यूपी पुलिस कमिश्नरेट देने वाले डीजीपी ओपी सिंह

Share:

स्नेह मधुर
पुलिस के लिए ओपी युग रहा स्वर्णिम काल !!
जाते-जाते आखिरी दिन भी 21 बच्चों को छुड़ाने की बड़ी चुनौती मिली फरूर्खबाद में
उत्तर प्रदेशके पुलिस महानिदेशक डॉ ओ पी सिंह  ने तमाम कयासों औरपूर्व में अपनाई जा रहीं परम्पराओं को धता बताते हुए अंततः सेवानिवृत्त हो ही गए। उन्हें 31 जनवरी 2020 को सेवानिवृत्त होना था लेकिन पिछले काफी वक्त से उनके बारे में अटकलें लगती जा रहीं थीं कि मुख्यमंत्री के सबसे करीबी और विश्वासपात्र होने के कारण कम से कम तीन महीने का सेवा विस्तार उन्हें मिलना तय था। लेकिन ओपी सिंह ने मुख्यमंत्री से अपनी नजदीकी का लाभ उठाकर सत्ता लोलुप होने के आरोपों से खुद को दूर ही रखने का फैसला कर एक नई इबारत लिखने की कोशिश की।

उनका मानना है कि इस बड़े पद का सम्मान रखते हुए गौरवशाली तरीके से सेवा निवृत्त हो जाना ही बेहतर है।इससे उनके विभाग में और समाज में यह संदेश जाएगा कि अपनी अगली पीढ़ी के रास्ते में बाधा नहीं बनना चाहिए।ओपी सिंह का यह कदम उनके चाहने वालों के लिए अवश्य कष्टकर होगा क्योंकि पूर्व में यह परंपरा देखी गई है कि सेवा विस्तार के लिए इस पद पर आसीन लोग क्या-क्या तिकड़में करते रहे हैं और कितने दरवाजों पर माथा टेक कर मात्र तीन महीने की और नौकरी कर लेने के लालच में एड़ी चोटी का जोर लगाते रहे हैं।

ओपी सिंह के लिए यह सब कुछ सहज रूप से उपलब्ध था, लेकिन उन्होंने लगभग परसी हुई थाली को ठुकरादिया। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री योगी ने ओपी सिंह के इस त्याग की अफसरों की एक बैठक मेंभूरि-भूरि प्रशंसा भी की है।हालांकि ओपी सिंह तीन महीने का सेवा विस्तार लेकर एक न टूटने वाला रिकॉर्ड भी आसानी से बना सकते थे। अभी 23 जनवरी को उन्होंने चार दशक बाद लगातार दो वर्षों तक डीजीपी रहते हुए सेवा निवृत्त होने का रिकॉर्ड अपने नाम किया है।

वह चाहते तो तीन महीने और इस पद पर रहकर इस रिकॉर्ड को आने वाली पीढ़ी के लिए लगभग असम्भव लक्ष्य के रूप में स्थापित कर सकते थे। लेकिन उन्होंने वह रास्ता चुना जो आने वाली पीढ़ी के लिए आदर्श के रूप में जाना जाए।ओपी सिंह का कार्यकाल विवादों से नहीं बल्कि चुनौतियों से भरा रहा था जिसे उन्होंने अपने कौशल से उपलब्धियों में परिवर्तित कर दिया। अन्य उपलब्धियों जैसे कानून-व्यवस्था को दुरुस्त करने में टीम वर्क की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है लेकिन पुलिस कमिश्नरेट व्यस्था लाने में उनका जो व्यक्तिगत योगदान है, वह शताब्दियों तक याद किया जाएगा। उनके इस योगदान की सराहना तो उनके दस बैच पुराने अधिकारी भी करते है कि यह मुश्किल नहीं, असम्भव कार्य था क्योंकि पूरीआईं ए एस लाबी इसके खिलाफ थी।

ओपी सिंह इस व्यवस्था को एक तरह से विरोधियों के जबड़ेके भीतर से खींच कर ले आने में सफल रहे। ओपी सिंह ने 23 जनवरी 2018 को डीजीपी के रूप में अपना कार्यभार संभाला था, यानी अपनी नियुक्ति के 23 दिन बाद। उस समय वह सी आईं एस एफ के निदेशक थेऔर उन्हें उस पद से मुक्त नहीं किया जा रहा था। उस समय उनको लेकर तमाम चर्चाएं चल रहीं थीं कि वह नहीं आने पाएंगे। लेकिन उन्होंने तमाम बाधाओं पर विजय प्राप्त कीऔर पूरे दो वर्ष तक इस पद पर बने रहे। हालांकि यह पद हमेशा से कांटो भरा रहा है और इस पद पर नियुक्त पद से ही विभाग की छवि बनती रही है। ओपी सिंह पूरे कार्यकाल तक अपनी बेदाग छवि को बनाए रखने में सफल रहे।

भले ही निचले स्तर पर वह अपने अधीनस्थों को पाक-साफ बना पाने मेंअसफल रहे लेकिन खुद को मुख्यमंत्री योगी की तरह ही वह निष्कलंक बनाने में सफल रहे। नोएडा के एसएसपी रहे  वैभव कृष्ण और पुलिस विभाग के भीष्म पितामह प्रकाश सिंह के बयानों से जरूर कुछ छींटे उन पर पड़े, लेकिन अगर इन आरोपों को गहराई से देखा जाए तोवे ओपी सिंह की ईमानदार छवि को नुकसान नहीं पहुंचा पाए। हां, यह बात ज़रूर है कि बहुत से लोग उनसे नाराज भी होगें क्योंकि यह सच है कि ओपी सिंह ने काफी लोगों को उपकृत नहीं किया, जैसे कि हर कार्यकाल में डीजीपी करते रहे हैं।

इसकी वजह एक तो यह थी कि ओपी सिंह मेरिट पर ही काम करने में विश्वास करते रहे थे। दूसरी यह कि उन्हें इस बात का भी नहीं था कि कोई उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है।राजनैतिक रूप से वह काफी सशक्त थे और मुख्यमंत्री का विश्वास उन्हें हासिल था।हालांकि पूर्व में भी पुलिस महानिदेशकों को तत्कालीन मुख्यमंत्रियों का वरदहस्त मिलता रहा था, लेकिन उन अफसरों ने उस अमोघ अस्त्र का उपयोग व्यक्तिगत महत्वाकाक्षाओं की पूर्ति में ज्यादा किया, ओपी सिंह ने ऐसा नहीं किया और व्यक्तिगत लाभ को ठुकरादिया।

ओपी सिंह के इस आचरण ने उन्हें भीड़ से अलग कर दिया।ओपी सिंह का कार्यकाल पुलिस के लिए स्वर्णिम युग के रूप में हमेशा याद किया जायेगा क्योंकि तमाम चुनातियों पर विजय पाने के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश में कमिश्नरेट प्रणाली लागू कराने में सफलता हासिल कर ली। इसे संयोग कहें या उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह की कुशल रणनीति का परिणाम कि नोएडा के निलंबित एसएसपी वैभवकृष्ण कांड से उत्तर प्रदेश पुलिस की जो थू-थू हो रही थी, उसकी आड़ लेकर ओपी सिंह ने उत्तर प्रदेश में एक नए स्वर्णिम युग की शुरुआत करा के न सिर्फ उस कलंक  को धो दिया बल्कि अपने धुर विरोधियों का भी दिल जीत लिया।

उत्तर प्रदेश में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने से पूरे पुलिस विभाग में ओपी सिंह के जयकारे के नारे लगाये गए थे। सिपाही से लेकर एडीजी तक सबकी बांछें खिल गयीं थीं। प्रदेश के आठों जोनों के एडीजी के चेहरों पर मुस्कुराहट तैर गयी थी कि आज नहीं तो कल यानी कुछ महीनों में प्रयागराज,  मेरठ,  कानपुर सहित सभी जोनों में यह प्रणाली लागू होने की पृष्ठभूमि तैयार हो ही गई है। जितने भी डी आईं जी और आईजी हैं, वे मस्त हो गए हैं कि आने वाले दिनों में उनके अच्छे दिन आने की गारंटी हो गईहै, जिओ ऑपी सिंह!ओपी सिंह ने यह छक्का मारा तो अपने रिटायरमेंट से ठीक एक पखवारे पहले, वह भी माघ के महीने में लोहड़ी के दिन।

यह छक्का इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ओपी सिंह के इस छक्के ने पूरी की पूरी आईं ए एस लाबी को दुखी कर दिया है। इस नई प्रणाली से कुछ जिलों में आई ए एस का वर्चस्व ख़त्म हो जायेगा।चूंकि यह काम बिना मुख्यमंत्री की पूर्ण सहमति के संभव नहीं था और यह माना जाता रहा हैकि किसी भी मुख्यमंत्री को राजी कर पाने का दम और अधिकार सिर्फ आईं ए एस के पास ही होता है। पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन भी कमिश्नर प्रणाली के विरोध में खुलकर आ गएथे। लेकिन ओपी सिंह इस प्रदेश के संभवतः पहले डीजीपी बनने में सफल हुए हैं जिन्होंने न सिर्फ आईं ए एस लाबी की घेरेबंदी के बाद भी मुख्यमंत्री का विश्वास हासिल किया बल्कि वह काम कर दिखाया जिसके हो पाने की कल्पना भी कोई आई पी एस नहीं कर पाया होगा। एक तरह से ओपी सिंह ने सही मायने में अपने को सिंघम या कहें तो बाहुबली साबित कर दिया है।ऐसा नहीं है कि ओपी सिंह  उत्तर प्रदेश के पहले डीजीपी हैं जिन्हें मुख्यमंत्री का वरदहस्त प्राप्त है।

ओपी सिंह के पहले योगी की सरकार में सुलखान सिंह भी बहुत करीबी रहे हैं और उन्हें भी “खुला हाथ” मिला हुआ था। योगी ने उन्हें भी पूरी छूट दे रखी थी। अखिलेश यादव और जगमोहन यादव की निकटता से हर कोई वाकिफ है। ए सी शर्मा, विक्रमसिंह, प्रकाश सिंह भी अपने समय के मुख्यमंत्रियों की नाक के बाल बने रहे, डीजीपी की शक्तियों का आनंद उठाया लेकिन पुलिस हित में कमिश्नरी प्रणाली लागू कराने की दिशा में गंभीरता से सोचा तो सिर्फ ओपी सिंह ने। पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली से जनता को लाभ होगा या नहीं, लेकिन पुलिस की साख और शान बढ़ेगी, यह तय है। पुलिस विशेषज्ञों का मानना है कि निश्चित रूप से पुलिस और जनता को लाभ मिलेगा और पुलिस के मुखिया का काम ही पुलिस व्यस्था में सुधार लाना है ताकि पुलिस की कार्य क्षमताऔर विश्वसनीयता में बढ़ोत्तरी हो। इस दिशा में उठाए गए कदमों की सूची बनाई जाए तो निश्चित रूप से ओपी सिंह का पलड़ा भारी दिखता है।

ओपी सिंह की यह सफलता इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है कि पुलिस में सुधारों की बात वर्षों से की जाती रही हैं लेकिन कोई भी मुख्यमंत्री यह कदम नहीं उठा पाया। आज सारे पूर्व मुख्यमंत्री अपने आपको कोस रहे होगें कि उन्हें इस तरह की अक्ल देने वाला कोई अफसर क्यों नहीं मिला? क्योंकि इसका प्रशासनिक के साथ राजनैतिक लाभ भी मिलेगा और मुख्यमंत्री योगी के चेहरे की मुस्कान प्रेस कांफ्रेंस में बता रही थी कि उनका यह दांव बेमिसाल है।ओपी सिंह की इस सफलता में इस बात को भी रेखांकित किए जाने की आवश्यकता है कि उन्होंने ऐसे मुख्यमंत्री का विश्वास जीता जो निहायत ईमानदार है, जिसकी  व्यक्तिगत ईमानदारी पर कोई शक नहीं है।

भले ही प्रदेश में भ्रष्टाचार जारी हो लेकिन वह मुख्यमंत्री स्तर पर नहीं है। फिलहाल पहले की तरह कोई यह कहने वाला नहीं मिलता कि उसने सी एम स्तर से इतना देकर यह काम करवा लिया। मुख्यमंत्री की ईमानदारी की बात तो पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह ने अपने ट्वीट में खुद स्वीकार कीहै। यानी ओपी सिंह ने तो काजल की कोठरी में बैठकर भी एक ईमानदार मुख्यमंत्री का दिल जीत लिया, निश्चित रूप से यह बड़ी बात मानी जाएगी। क्योंकि ऐसा नहीं है कि पुलिस में अच्छे और ईमानदार लोग नहीं हैं लेकिन अपने ईमानदार बॉस की नजर में भी ईमानदार बनकर उसका विश्वास लगातार हासिल करते रहा जाए, यह भी आसान नहीं है। और वह भी तब जब उत्तर प्रदेश की पुलिस के पितामह प्रकाश सिंह मुख्यमंत्री को ट्वीट कर यह बताने की कोशिश करें कि ”आप ईमानदार हैं, आपका ऑफिस भी ईमानदार है लेकिन पुलिस में सब कुछ ठीक नहीं है, पोस्टिंग में पैसा लिया जा रहा है। पैसा कहां जा रहा? एफ आई आर लिखी नहीं जा रही है…।” लेकिन हां, प्रकाश सिंह ने वैभव कृष्ण को ईमानदारी का प्रमाण पत्र देकर यह बता दिया कि कम से कम एक ईमानदार अफसर तो है यूपी में जो अपने आप को इस भ्रष्ट माहौल में असहज पा रहा है।

लेकिन सवाल उठता है कि जिस नोएडा का रेट 80 लाख रुपए बताया जा रहा है, उसकी पोस्टिंग वैभव को किन शर्तों पर मिली थी?  अपने चार दशक के अनुभव में मैंने तमाम विभागों, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और अफसरों का भ्रष्टाचार देखाहै। थानों, जिलों और टॉप बॉस की पोस्ट की बिक्री खूब देखी है। तीन-तीन करोड़ देकर तीन महीने के लिए एक्सटेंशन लेने वाले भीदेखे हैं। उन्हें चैनल पर आजकल ईमानदारी का पाठ पढ़ाते हुए भी देखता हूं। ऐसे-ऐसे डीजीपी देखें है जिनके ज़माने में एस एस पी थानेदारों की जेब से भी पैसे निकाल लेने में भी नहीं सकुचाते थे,कत्ल कराने की सुपारी तक लेने वाले अफसर देखे हैं। प्रकाश सिंह दो बार इस सूबे के प्रमुख रह चुके हैं। काश, उस समय भीसही ढंग से एफ आई आर लिखी जाती होती! जब एक बार डीजीपी पद से प्रकाश सिंह हटाए गए थे तो उन्होंने दूसरा पद स्वीकार नहीं किया था। कुछ दिन अज्ञातवास में रहे। बादमें जब फिर वहीं पद मिला तो अवतरित हुए थे।श्रीराम अरुण नाम के एक डीजीपी हुआ करते थे। वह हर मीटिंग में पुलिस वालों से एफ आईं आर लिखने की अपील किया करते थे।

हालांकि उनकी बात कभी नहीं सुनी गई क्योंकि एफ आईं आर की संख्या से कानून- व्यवस्था की स्थिति का आकलन किया जाता था। कोई डीजीपी एफ आई आर लिखने की गारंटी नहीं दे सकता है। यह पूर्ण रूप से मुख्यमंत्री के ऊपर निर्भर होता है कि वह विपक्ष को किस तरह से झेलने की क्षमता रखता है।ऐसे तमाम लोग यह कहते मिल जायेंगे कि इस पोस्ट का यह रेट चल रहा है। लेकिन ऐसे भी लोग मिल जाते हैं कि वह पैसा लेकर घूम रहे हैं, सही आदमी मिल जाए। उन्हें सही आदमी नहीं मिल पा रहा है। कुछ लोग काम न होने पर पैसा वापस लेने के लिए किसी दबंग की तलाश में भीघूम रहे हैं। बहरहाल,  नॉएडा के एसएसपी रहे  वैभव कृष्ण कांड ने उत्तर प्रदेश पुलिस के कायाकल्प किए जाने के सोपान खोल दिए हैं।

अगर ओपी सिंह ने सेवा विस्तार स्वीकार कर लिया होता तो और भी बहुत कुछ संभव था। फिलहाल, इस उम्र में को गई प्रकाश सिंह की टिप्पणी ने ओपी सिंह का कद और भी बड़ा कर दिया है। ओपी सिंह भाग्यशाली रहे है कि अपने को साबित करनेके लिए उन्हें इतने चुनौतीपूर्ण अवसर मिले और इस बात के लिए भी भाग्यशाली थे किउन्हें मुख्यमंत्री योगी का पूरा संरक्षण मिला था। वैभव कृष्ण ने तो नोएडा के आखिरी निलंबित एस एस पी के रूप में अपना नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज करा ही लिया है!!!वैसे, एस वी एम त्रिपाठी भी 1979 में कानपुर के पहले पुलिस कमिश्नर के रूप में अपना नाम इतिहास में दर्ज करा चुके हैं जिन्हेंबिना चार्ज लिए ही बीच रास्ते से लौटना पड़ा था क्योंकि तत्कालीन मुख्यमंत्री रामनरेश यादव ने आई ए एस लाबी के दबाव में अपना फैसला पलट दिया था।

(प्रदेश के डीजीपी रहे ओम प्रकाश सिंह ने २३ जनवरी 2020 को बतौर डीजीपी दो साल पूरे कर लिए थे। वर्ष 1977 के बाद दो साल का कार्यकाल पूरा करने वाले वे दूसरे डीजीपी रहे। इससे पहले विक्रम सिंह ने दो साल का कार्यकाल पूरा किया था। हालांकि सेवानिवृत्ति से पहले ही उन्हें पद से हटाकर होमगार्ड विभाग में डीजी बना दिया गया था।)

(बतौर डीजीपी दो साल का कार्यकाल पूरा होने पर ओ पी सिंह ने कहा था कि उन्होंने हर क्षेत्र में नया करने की कोशिश की। साइबर क्राइम पर नियंत्रण के लिए आईजी स्तर से निगरानी शुरू कराने केसाथ ही साइबर लैब बनाई गई। बीट सिस्टम में सुधार, नए थानों का विस्तार, पुलिस कमिश्नर सिस्टम औरपुलिस युनिवर्सिटी पर काम किया गया। जवानों के लिए कॉप ऑफ द मंथ की पहल की गई। तो पीआरवी ऑफ द डे के कारण पीआरवी पर तैनात पुलिसकर्मियों को कुछ अच्छा करने की प्रेरणा मिली। किसी सिपाही ने अच्छा काम किया तो उससे फोन पर बात कर शाबाशी दी। पुलिसकर्मियों का मनोबल बढ़ाने व उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए प्रशंसा चिह्न की संख्या बढ़ाई गई। यूपी 112 को विभिन्न इमरजेंसी सेवा के साथ एकीकृत किया गया, इसमें फायर, एंबुलेंस और जीआरपी की सेवाओं को जोड़ा गया। यूपी कॉप के जरिये ऑनलाइन एफआईआर की व्यवस्था शुरू की गई, जो काफी कारगर साबित हुई है। ई-चालान की व्यवस्था शुरू की गई। पुलिस के व्यवहार में बदलाव होने से लोगों में पुलिस के प्रति विश्वास बढ़ा। इसके अलावा पॉक्सो एक्ट के तहत अपराधियों को रिकॉर्ड 9 दिन और 18 दिन के अंदर अपराधियों को सजा दिलाई गई, महिला सुरक्षा के लिए 112 पीआरवी पर महिलाओं की तैनाती की गई, रात में सहायता मांगने पर महिलाओं को घर तक पहुंचाने में पुलिस की मदद शुरू करायी। महिलाओं की सुरक्षा के लिए स्कूलों की प्रधानाचार्यों से उन्होंने खुद संवाद किया।ओपी सिंह के कार्यकाल में करीब 75 हजार नए पुलिस कर्मी मिले और 44 हजार लोगों को प्रमोशन दिया गया। इन पुलिस कर्मियों को पहली बार वर्चुअल क्लास के जरिये केंद्रीय अर्धसैनिक बल के प्रशिक्षण केंद्रों को जोड़कर प्रशिक्षित किया गया। वहीं, दुबई में यूपी 100 (अब यूपी 112) को अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिला है।)

उत्तर प्रदेश के पहले पुलिस कमिश्नर नियुक्त किये गये-आलोक सिंह – नोयडा, सुजीत पाण्डेय – लखनऊ

*गौतमबुद्धनगर पुलिसकमिश्नरी व्यवस्था –

*:●कुल 38 वरिष्ठ पुलिस अधिकारी संभालेंगे जनपद की पुलिस व्यवस्था

● पुलिस आयुक्त-1

●अपर पुलिस आयुक्त-2

●पुलिस उपायुक्त-7●अपर पुलिस उपायुक्त-9

●सहायक पुलिस उपायुक्त-17

●सहायक रेडियो अधिकारी-1

●मुख्य अग्निशमन अधिकारी-1


Share:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *