कोरोना महामारी ने पूरे विश्व के समक्ष एक ऐतिहासिक संकट खड़ा कर दिया है। विश्व के अमेरिका,चीन, इटली, तथा फ़्रांस जैसे अनेक संपन्न व विकसित देश इस भयंकर वॉयरस से निपट पाने में पूरी तरह से असहाय नज़र आ रहे हैं। इस महामारी ने न केवल लोगों के अस्तित्व के सामने संकट खड़ा कर दिया है बल्कि यह वैश्विक अर्थ व्यवस्था को भी तबाही की कगार पर ले आया है। परन्तु नित्य नये वैज्ञानिक शोध करने वाला इंसान अभी भी हारा नहीं है। पूरी दुनिया इस समय इस प्रलयकारी बीमारी से मुक़ाबला करने का इलाज खोजने में जुटी हुई है। ज़ाहिर है इस महासंकट के समय आम लोगों को भी न केवल पूरे धैर्य व संयम से काम लेने की ज़रुरत है बल्कि स्वयं को अंध विश्वास और किसी भी तरह की टोटकेबाज़ी से दूर रहते हुए इस संबंध में बनाए जा रहे सरकारी नियम व क़ायदे क़ानूनों का पालन करने की भी आवश्यकता है।
हमारे देश की स्वास्थ्य सेवाएं देश की जनसंख्या के अनुपात में कितनी प्रभावी व कारगर हैं यह हम सभी भली भांति जानते हैं । कोरोना महामारी तो आज की बात ठहरी, हम तो लगभग प्रत्येक वर्ष इसी भारतीय स्वास्थ्य व्यवस्था की अक्षमता के चलते लोगों की विशेषकर अपने नौनिहालों की सामूहिक मौतों की ख़बरें सुनते रहते हैं। हमारे देश में कभी चंकी बुख़ार तो कभी कालाज़ार, कभी इंसेफ़लाइटिस तो कभी जापानी बुख़ार, कभी ऑक्सीजन की कमी तो कभी अस्पतालों में डॉक्टर्स व बेड या वेंटिलेटर्स का अभाव अक्सर ही मासूमों की जान लेता रहता है। और हमारे देश की निम्नतर स्तर की होती जा रही राजनीति स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को सुचारु,कारगर, आधुनिक व पर्याप्त बनाने के बजाए कभी हमें धर्म जाति के झगड़ों में उलझा देती है तो कभी अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए दूसरे तमाम भावनात्मक मुद्दे उछाल देती है। हमारे देश में सरकार की प्राथमिकताएं भी स्कूल व अस्पताल से ज़्यादा पार्क निर्माण, नेताओं की मूर्तियों व स्टेचू बनाने, तथा अपने साम्प्रदायिक व जातीय एजेंडे पर चलते हुए अपने वोट बैंक की राजनीति करने की होती है। सरकार की प्राथमिकताएं में कभी अपने अस्पतालों का देश की जनसँख्या के अनुरूप विस्तार करने व आधुनिक शोध के बल पर देश को दुनिया के आधुनकतम स्वास्थ्य सेवाओं वाले देशों की श्रेणी में लाकर खड़ा करने की कभी नहीं रही।
और ऐसा हो भी क्यों? जब सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को इस बात का विश्वास हो कि 'भारत में कोरोना का कोई असर नहीं होगा क्योंकि यहां 33 करोड़ देवी-देवता रहते हैं'। विजयवर्गीय के अनुसार -'कोरोना वायरस हमारा कुछ नहीं कर सकता है क्योंकि हमारे यहां जो हनुमान हैं उनका नाम मैंने 'कोरोना पछाड़ हनुमान' रख दिया है '। जब गौमूत्र और हवन के द्वारा,और अल्लाह ने यह बीमारी भेजी है काफिरो को ख़तम करने के लिए जैसी बातें और इसी प्रकार के तरह-तरह के निरर्थक नुस्ख़ों के द्वारा कोरोना का मुक़ाबला करने के उपाय ढूंढें जाने लगें तो हमारा ध्यान देश की वास्तविक स्वास्थ्य समस्याओं के तरफ़ से हटना स्वभाविक है। आज कहीं बेवक़्त लोगों के घरों से अज़ान की आवाज़ें सुनाई दे रही हैं। अनेक लोग सरकार की विश्वव्यापी सोशल डिस्टेंसिंग नीति का पालन करने से ज़्यादा अपने घरों पर दुआ ताबीज़ लटका कर कोरोना पर फ़तेह हासिल करने की ग़लतफ़हमी पाले हुए हैं। कुछ का तो मन्ना है की मस्जिदों में सामूहिक नवाज़ पढ़ने से कोरोना उनको छुए गा नहीं।
परन्तु ऐसी विपरीत व दुर्गम परस्थितियों के बीच जबकि न केवल देश की स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा चरमराया हुआ है, बल्कि स्वयं डॉक्टर्स व स्वास्थ्य कर्मियों के पास उनकी अपनी सुरक्षा के पर्याप्त साधन व सामान भी नहीं हैं। उसके बावजूद डॉक्टर्स व स्वास्थ्य कर्मियों अपनी जान को ज़ोख़िम में डालकर हमें अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। देश में ऐसी कई ख़बरें आ चुकी हैं कि डॉक्टर्स व स्वास्थ्य कर्मी कोरोना पॉज़िटिव मरीज़ की चपेट में आकर स्वयं इसी मर्ज़ का शिकार हो गए। ज़रा सोचिये कि इस मर्ज़ से प्रभावित होने की ख़बर सुनकर जब आपके सगे संबंधी आपसी फ़ासला बनाना बेहतर समझें,जब आपका पड़ोसी और मुहल्ले के लोग आपकी कोरोना पॉज़िटिव होने की ख़बर सुनकर आपका घर या मोहल्ले में रहना ही पसंद न करें। यहाँ तक कि ख़ुद क़ब्रिस्तान कमेटी के लोग कोरोना से हुई मौत वाले शख़्स की लाश को दफ़नाने तक से इंकार करदें। ऐसी विषम परिस्थितियों में यदि डॉक्टर्स, नर्सेज़ या अन्य स्वास्थ्य कर्मी आपकी जान बचाने का ज़ोख़िम उठा रहे हों तो क्या वे किसी अल्लाह, भगवान या देवदूत से कम हैं ? पूरे देश को एकजुट होकर सलाम करना चाहिए इस देश के जांबाज़ डॉक्टर्स व स्वास्थ्य कर्मियों को।
बड़े अफ़सोस की बात है कि देश के कई भागों से इन्हीं फ़रिश्ता रुपी स्वास्थ्य कर्मियों पर हमले व इनसे दुर्व्यवहार करने की ख़बरें सुनाई दे रही हैं। आज जो लोग अति सीमित संसाधनों के बीच अपनी जान को ख़तरे में डालकर तथा अपने परिवार का मोह छोड़कर दिन रात एक कर देश को इस महामारी के संकट से बचाने की जद्दोजेहद में लगे हैं उन्हें न केवल सम्मान दिए जाने की ज़रुरत है बल्कि उनका हौसला बढ़ाने व उनके साथ पूरा सहयोग किये जाने की भी ज़रुरत है। आप थाली बजाएं,ताली बजाएं,शंख,घंटी, घंटा कुछ भी बजाएं। बत्ती जलाएं-बुझाएं,अज़ान दें घरों में नमाज़ अदा करें मन्त्रों का जाप करें ,जो चाहे करें परन्तु अपनी वैज्ञानिक सोच को ज़रूर कायम रखें क्योंकि यही वह सच्चाई है जो इस समय समूची मानव जाति को सुरक्षा प्रदान कर सकती है। डॉक्टर्स,नर्सेज़ व स्वास्थ्य कर्मियों में ही देवता व फरिश्तों का रूप देखें। फ़ारसी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक मौलाना मुहम्मद जलालुद्दीन रूमी ने लिखा है कि -'एक बार तेज़ आंधी चल रही थी और एक शख़्स एक दरख़्त के नीचे खड़ा अल्लाह को याद कर रहा था। उधर से एक राहगीर गुज़रा और उस शख़्स से कहा कि इस पेड़ के नीचे से हट जाओ वरना तेज़ आंधी के सबब यह पेड़ गिर सकता है। उसने राहगीर की बात अनसुनी कर दी और कहा हम अल्लाह वाले हैं और अल्लाह हमारे साथ है। फिर दूसरा राहगीर उधर से गुज़रा उसने भी उस शख़्स को पेड़ के नीचे से हटने की सलाह दी। उसे भी वही जवाब मिला कि अल्लाह हमारे साथ है। फिर तीसरे राहगीर के मना करने पर भी उस शख़्स ने फिर वही जवाब दिया। कुछ पल बाद वह दरख़्त गिर पड़ा और अल्लाह पर भरोसा रखने वाला वह शख़्स अल्लाह को प्यारा हो गया। जब लोगों ने सवाल किया कि अल्लाह पर भरोसा रखने वाले शख़्स को अल्लाह ने क्यों नहीं बचाया? रूमी लिखते हैं कि चूँकि अल्लाह के हुक्म से ही वह तीन राहगीर उस शख़्स को समझाने के लिए भेजे गए थे कि तू पेड़ के नीचे से हट जा। मगर अल्लाह पर भरोसा नहीं बल्कि उसकी ज़िद उसकी मौत का सबब बन बैठी।
इसलिए देशवासियों,आपका विश्वास आपका अक़ीदा आपकी मान्यताएं सब आपको मुबारक हो। आपको उनको ज़रूर मानें। परन्तु आज जब पूरी दुनिया आपसे सहयोग की अपेक्षा कर रही है। भीड़ भाड़ इकठ्ठा न करने, व एक दूसरे से उचित फ़ासला बनाकर रखने की सलाह दे रही है। स्वयं में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने की अपील कर रही हो उसके बावजूद आप डॉक्टर्स की सलाह मानने के बजाए अपनी वाली ही करने की ठानें। अन्धविश्वास में ही इस महामारी का हल तलाश करने लगें तो आप भी पेड़ के नीचे खड़े रहने की ज़िद करने वाले इंसान की ही तरह हैं। और फिर आपका भी अल्लाह ही मालिक है।