बार काउंसिल ऑफ इंडिया के संशोधित नियम मौलिक अधिकारों के खिलाफ होने पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका

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डॉक्टर अजय ओझा।

नई दिल्ली, 1 जुलाई। मुंबई और केरल के विधि प्रेक्टिसनर की ओर से सुप्रीम कोर्ट मे दायर याचिका में तत्काल हस्तक्षेप कर इन नियमों के संचालन पर रोक लगाने और उन्हें असंवैधानिक और शून्य घोषित की मांग करते हुए बताया कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया के संशोधित नियम मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। 

सुप्रीम कोर्ट में याचिका में बताया कि हाल ही में संशोधित बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) नियम, जो देश भर में नियामक निकाय के साथ-साथ राज्य बार काउंसिल की आलोचना को प्रतिबंधित करते हैं, जिसे सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के पार्ट VI, चैप्टर II में जोड़े गए सेक्शन V और V-A को एडवोकेट्स एक्ट, 1961 और आर्टिकल 14, 19(1) (c) और 21 का उल्लंघन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।

चुनौती के तहत नियम यह निर्धारित करते हैं कि बार काउंसिल के सदस्यों द्वारा आलोचना और हमला बार काउंसिल से किसी सदस्य की सदस्यता को अयोग्यता या निलंबन या हटाने का आधार होगा। नया संशोधन 25 जून को गजट में अधिसूचित किया गया था।

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने अभी तक बीसीआई नियमो मे संशोधन को मंजूरी नहीं दी है।

 बीसीआई ने केरल हाई कोर्ट को सूचित किया

नई दिल्ली | अधिवक्ता अधिनियम की धारा 49(1) के प्रावधान के अनुसार, नियमों में संशोधन लागू होने से पहले सी जे आई की मंजूरी आवश्यक है। भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने अभी तक  नियमो मे संशोधन को मंजूरी नहीं दी है।बी सी आई ने केरल हाई कोर्ट को सूचित किया।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई), एनवी रमना ने अभी तक बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा बीसीआई नियमों में पेश किए गए नवीनतम संशोधनों को अपनी मंजूरी नहीं दी है। संशोधनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले केरल उच्च न्यायालय के समक्ष एक मामले में बीसीआई के वकील ने यह जानकारी दी।अधिवक्ता अधिनियम की धारा 49(1) के प्रावधान के अनुसार, नियमों में संशोधन लागू होने से पहले उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायधीश की मंजूरी आवश्यक है।

संशोधनों को आधिकारिक राजपत्र में पहले ही अधिसूचित किया जा चुका था। संशोधनों  के अनुसार, कोई भी वकील जो कोई बयान देता है जो किसी भी अदालत, न्यायाधीश, राज्य बार काउंसिल या बीसीआई के खिलाफ अभद्र या अपमानजनक, मानहानिकारक, प्रेरित, दुर्भावनापूर्ण या शरारती हो, कानून का अभ्यास करने के लिए लाइसेंस के निलंबन या रद्द करने का आधार हो सकता है।

संशोधनों में आगे कहा गया है कि सार्वजनिक डोमेन पर किसी भी स्टेट बार काउंसिल या बार काउंसिल ऑफ इंडिया के किसी भी फैसले की आलोचना करना या उस पर हमला करना भी कदाचार के समान होगा जो अयोग्यता या निलंबन को आकर्षित कर सकता है।

केरल बार काउंसिल के एक सदस्य, राजेश विजयन ने केरल उच्च न्यायालय के समक्ष इसे भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उल्लंघन के रूप में चुनौती दी थी।


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