सुबह से शाम तक बेचते हैं सब्जी, तब कमा पाते हैं पेट भरने लायक
गुना, 14 अप्रैल (हि.स.)। बाबूजी! सुबह 5 बजे घर से निकलते हैं और दिनभर धूप में सब्जी बेचने के बाद परिवार का पेट भरने लायक कमा पाते हैं। लॉक डाउन में अब एक जगह ठेला खड़ा भी नहीं कर सकते। गली-गली घूमकर सब्जी बेचने जाते हैं। कई बार खर्चा भी नहीं निकलता। ये कहना है कि सब्जी विक्रेता भोलाराम नामदेव का। पांच सदस्यों का परिवार है। कंट्रोल दुकान से तीन महीने का जो राशन मिला था, वह एक महीने में खत्म हो गया है। लॉक डाउन में काम धंधा कुछ नहीं है। ये ठेला ही एक मात्र सहारा है। सब्जी की बिक्री भी भगवान भरोसे है। कई बार तो खर्च तक नहीं निकलता। शहर में सब्जी विक्रेता बढ़ गए हैं। कई बार तो पूरी कालोनी में घूमने के बाद भी 20 रुपए की सब्जी नहीं बिकती। सब्जी विक्रेताओं में स्पर्धा बढऩे से हरी सब्जियों में अब मुनाफा भी उतना नहीं रहा।
250 से ज्यादा सब्जी विक्रेता शहर में
शहर में शास्त्री पार्क, पुरानी गल्ला मंडी और कैंट ऊपरी बाजार में सब्जी मार्केट लगता था। लॉक डाउन में यहां दुकानों को बंद करा दिया है। थोक मंडी को भी नानाखेड़ी पहुंचा दिया है। यहां से हर दिन 250 से ज्यादा लोग ठेला लेकर 37 वार्डों में सब्जी बेचने हर दिन पहुंच रहे हैं।
ये लोग सबसे ज्यादा प्रभावित
लॉक डाउन में सबसे ज्यादा असंगठित क्षेत्र के श्रमिक परेशान हैं। जयस्तंभ चौराहा पर 700 से ज्यादा मजदूर हर दिन जुटते थे। इन दिनों उनको काम नहीं मिल रहा है। वे या तो अपने गांव चले गए हैं, या फिर फूड पैकेट और नपा से मिलने वाली सामग्री से अपना गुजारा चलाने मजबूर हैं।
इनका कहना है
सब्जी मंडी दूर होने से शहर तक सब्जी लाने में काफी परेशानी होती है। इसके बाद भी घर परिवार को चलाने लायक कमाई नहीं हो रही है। कोरोना के डर से लोग सब्जी भी नहीं खरीद रहे हैं। हर दिन सब्जी बच रही है।
-हि मत कुशवाह, सब्जी विक्रेता
लॉक डाउन से पहले हर दिन 300 से 400 रुपए की बचत होती थी। ठेला लगाते हैं तो लोग समझते हैं कि ये पर्याप्त कमा लेते हैं। कोई मदद भी नहीं करता। लॉक डाउन के बाद गन्ना रस का धंधा डालने की योजना बना रहे हैं।
-देवेंद्र कुशवाह, सब्जी विक्रेता