इरफ़ान भाई से प्रयागराज में पहली मुलाकात की यादें
मनीष कपूर।
मशहूर अंतराष्ट्रीय अभिनेता इरफ़ान खान के देह त्यागने की खबर सुन कर मन बहुत उदास हो गया। याद आये वे सभ दोस्त जिनके साथ इरफ़ान भाई के साथ हमलोग इलाहबाद में साथ यादगार लम्हे बिताये । हमारे अज़ीज़ मित्र “मोहनीश श्रीवास्तव” से संपर्क हुआ। उनका भी मन खिन्न था। मन हल्का करने के लिए वे इरफ़ान भाई के साथ बहमूल्य समय के बारे में हमें बताए जो में आप सभ प्रयागराज वासिओ के साथ बाठ रहा हु:
साल 2001, इलाहाबाद यानी आज का प्रयागराज। मुझे रंगमंच से जुड़े महज 2 साल ही हुए थे। संगम किनारे फ़िल्म हासिल की शूटिंग चल रही थी। कुछ साथी प्रोडक्शन से जुड़े थे तो मैं भी विनय भाई (विनय श्रीवास्तव) के साथ वहां पहुंच गया। पुलिस की लगाई बैरिगेट को पार कर हम शूटिंग वाली जगह पर पहुंचे। वहां पड़े लकड़ी के तख्त पर बैठा ही था कि जीन्स और हरे रंग के सिल्क का कुर्ता पहने एक शख्स मेरे सामने था, इरफान खान।
देखते ही पहला सवाल किया यहां कैसे आ गए? मैंने भी कहा थियेटर करता हूं। अच्छा, ये तो बहुत अच्छी बात है, इरफ़ान सर ने कहा। मैने उनको इसी नाम से संबोधित किया था। थियेटर जवाब में सुनने के बाद दूसरा सवाल इरफान सर ने फिर पूछा, यहीं से हो लोकल ? मैंने कहा, हां।
अरे यार तो थोड़ी हेल्प करो, यहां की लोकल बोली और गाली सीखा दो। बहुत जरूरत है। आओ मेरे साथ। और मैं उनके पीछे चलने के लिए उठा। तभी एक ज़ोर से आवाज़ सुनाई दी। थोड़ा और ऊपर से शॉट लेना, देखना झंडा न आने पाए। ये दूसरी आवाज़ तिग्मांशु सर (तिग्मांशु धूलिया) की थी।
कांग्रेस नेता माधव राव सिंधिया जी के निधन के बाद उनकी अस्थियां संगम में विसर्जन के लिए लाई गईं थीं। कारों का एक लंबा काफिला था। फ़िल्म में इसे मंत्री के काफिले के रूप में इस्तेमाल भी किया गया।
ख़ैर, ये देखने के बाद मैं इरफान सर के पीछे चल दिया। लाइट्स, पानी के टैंक के पीछे कुछ और लोग भी बैठे थे। मुझे बताया गया कि ये प्रोड्यूसर साहब के बेटे हैं। फ़िल्म में इरफ़ान सर की अपोजिट पार्टी में हैं। तो गाली और बोली सिखाने की शुरुआत वहीं से शुरू हुई। ये इरफान सर के साथ मेरी पहली मुलाकात थी।
सुबह पत्नी ने कहा इरफान खान बहुत बीमार हैं। पता नहीं क्यों लगता है कि वो बहुत अच्छे इंसान हैं। अच्छा नहीं लग रहा सुनकर। तभी एक खबर आई मैसेज में 53 साल की उम्र में इरफान खान का मुम्बई में निधन। मन खराब हो गया।