शर्तिया इलाज की लौ में झुलसते परवाने!
डॉ भुवनेश्वर गर्ग drbgarg@gmail.com
एम्स, भारत में ही नहीं, सारी दुनिया के लिए विश्वास का नाम है, लेकिन विगत दिनों देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों ने उसके नाम से एक खबर छापी कि, “एम्स में आयर्वेदिक इलाज से सभी करोना मरीज हुए ठीक”। ऊपर से इस खबर के बीच में स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन का फोटो भी लगा दिया गया है।
अब अगर आपको इस खबर के अंदर कहीं बहुत छोटे शब्दों में यह पढ़ने को मिले कि इनके एम्स के मायने हैं “आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ आयुर्वेदिक मेडिकल साइंस” तो आप इसे क्या कहेंगे? अव्वल तो बहुत से लोग पूरी खबर ठीक से पढ़ेंगे भी नहीं और अधिकांश लोग इसका क्या नतीजा निकालेंगे? यही ना कि एम्स जैसे दिल्ली और देश के सर्वश्रेष्ठ अस्पताल में करोना जैसी संक्रामक और जानलेवा बीमारी के सारे मरीज, सिर्फ देसी यानि आयुर्वेदिक उपचार से पूरी तरह ठीक हो गए? यही ना कि जब इस उपचार से सभी लोग ठीक हो सकते हैं तो देश के सरकारी और महंगे प्राइवेट कारपोरेट अस्पताल, मरीजों को ना सिर्फ लूट रहे हैं बल्कि उनके उपचार से हजारों मौतें भी हो रही हैं?
यही ना कि देखो डॉक्टर कैसे कसाई और लुटेरे बन गए हैं? बिलकुल ठीक, यही हमारी बार बार कही और लिखी जा रही चिंता है कि अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की जान बचाते उच्च शिक्षित डॉक्टरों के लिए, इस देश में अब और भी मुश्किल समय, आने वाले समय में सामने आने वाला है। क्योंकि भले ही अदालतों, पुलिस थानों, सरकारी विभागों में सरेआम लूट, घूस और बेईमानी के बावजूद काम भी नहीं होता हो और उनके खिलाफ शिकायत मारपिटाई तो दूर, किसी की हिम्मत भी नहीं होती हो कि वो विरोध भी दर्ज करवा सकें, लेकिन दिनरात, गैरों के लिए खपते और अपनी जान गंवाते सरकारी या निजी अस्पतालों के बंधुआ मजदूर “विशेषज्ञ डॉक्टरों” के लिए तो भीड़तंत्र, नेता, पुलिस, मीडिया के पास फौरी उपचार है, वो तुरंत डॉक्टरों से मारपिटाई पर उतर आते हैं, वहां कोई ज्ञानी और छपासी यह नहीं कहता कि अगर आपको इलाज से कोई परेशानी है तो पुलिस थाना है, अदालतें हैं? लेकिन पहले तो हर कोई उनपर अपने हाथ सेक लेता है, भदौरियाई लजऊ ठीकरे नेताओं की राजनीति चमकाने के साधन और हथियार बन चुके सेवाभावी डॉक्टर और अस्पतालों की अब इस देश में कोई बखत नहीं बची है और इस तरह की मूर्खतापूर्ण गैरजिम्मेदाराना ख़बरों के बाद तो और भी संकट बढ़ने वाला है, जिसके नतीजे अंततः समाज और इसके ठेकेदार ही भुगतेंगे।
तय बात है कि यहाँ उनके, यानि विशेषज्ञ डॉक्टरों के, अतिरिक्त हर कोई ना सिर्फ प्रकांड पंडित है बल्कि नीति निर्माता भी है। यकीं मानिये, इस तरह की गैरजिम्मेदाराना गलत और बाजारू स्वार्थी ख़बरों को पढ़कर लोग उचित उपचार ना लेते हुए, इन शर्तिया उपचारों में समय गंवाएंगे और अंत समय एम्स जैसे अस्पतालों और सेवाभावी डॉक्टरों को कोसेंगे। अगर इनके पास इस जानलेवा बीमारी का शर्तिया उपचार है तो फिर यह मरते मरीजों को बचाते क्यों नहीं? गंभीर मरीजों का उपचार करने आगे आते क्यों नहीं? और क्यों नहीं हमारे शतुरमुर्गाई नेता, अपनी आंखें खोलकर इनको जबाबदारी दे देते? क्यों मजबूर करते हैं लोगों को, महंगे, जहरीले, जानलेवा कॉम्प्लीकेशन्स वाले अंग्रेजी उपचार लेने के लिए?
तो क्यों ना, सारे गंभीर और गहन चिकित्सा इकाइयों को इनके सुपुर्द किया जाए? सारे बड़े बड़े नेता, मंत्री, संत्री, बाबू यहीं पर अपना उपचार करवाएं? सारे विश्व में भारत का नाम भी होगा, देसी मेडिकल टूरिज्म से नाम साख और धन भी बढ़ेगा, मर भी गए तो क्या, सेवा और शोध का पुण्य तो मिलेगा? हजारों लोगों की जान बचेगी सो अलग, और लोग महंगे अस्पतालों, कसाई डॉक्टरों के हाथों लुटने पिटने मरने से भी बचेंगे ?
बहुत शीघ्र देश का प्रबुद्ध वर्ग, महकमें के प्रमुख से यह जरूर पूछेगा कि आपके कितने मंत्रियों अफसरों ने इस तकनीक से अपना इलाज करवाया? और क्यों आप, देश और दुनिया में अभी तक मर चुके लाखों लोगों को बचा नहीं सके?
बेहतर होता कि हमारे स्वास्थ्य मंत्रीजी, जिला स्तर पर एसिम्पटोमेटिक, माइल्ड, गंभीर और अति गंभीर मरीजों की श्रेणियां तैयार करवाते और पहली दो श्रेणियों के लिए सभी विधाओं को शामिल करते हुए खुले मैदानों, अस्पतालों, बंद पड़े शॉपिंग मॉल्स और ऐसी अन्य जगहों पर साफ़ सुथरी, पौष्टिक भोजन, मनोरंजन और व्यायाम वाली उपचार प्रक्रिया लागू करवाते? तब इनके सुधार आंकड़ों का विश्लेषण सारी दुनिया की ना सिर्फ आँखे खोल देता बल्कि भारतीय उपचार पद्धति को उसका खोया हुआ स्थान और मन सम्मान भी दिलवा देता!
लेकिन इस तरह की झूठी और प्रपंचीय ख़बरें छापना और छपवाना, उसमे महकमे के प्रमुख का फोटो भी लगा लेना और उसपर तुरंत कोई स्पष्टीकरण नहीं आना भी, संगीन अपराध है और भ्रमित जनता को दिग्भ्रमित करने का अत्यंत गैरजिम्मेदारा कुकर्म भी।
और यही देश लगातार देखता आया है कि पढ़ेलिखे डॉक्टरों के लिए दर्जनों नियम, कानून, अदालतें, मार पिटाई और फॉर्म्स भरवाने की जटिल महंगी प्रक्रिया है, लेकिन गली गली, नुक्कड़ नुक्कड़ बीमारी और मौत बाँट रहे झोला छाप डॉक्टरों, नीमहकीमों, वैद्यों, बाबाओं के लिए ना तो कोई लक्षमण रेखा है और ना ही उनपर कोई कानून लागू होता है, इनकी वजह से देरी से अस्पताल पहुँच रहे गंभीर मरीजों की मौतें आखिरकार इन्ही विशेषज्ञ डॉक्टरों के सर पर नंगी तलवारों की तरह लटकती हैं, गरीबों की सेवा का जज्बा अपने अंदर समेटे यह देवदूत, किसी विसंगति में मारपिटाई, मीडिया ट्रायल अपमान ना झेल पाने की स्थिति में, केरल के सेवाभावी ऑर्थोपेडिक सर्जन अनूप कृष्णा की तरह, ना सिर्फ पलायन कर जाते हैं, बल्कि अपने पीछे बूढ़े माँबाप, पत्नी और दुधमुँहे बच्चों को भी बेसहारा छोड़ जाते हैं और छोड़ जाते हैं, करोडो का ना चुकाया जा सकने वाला कर्जा।
निकट भविष्य में इस देश में दो ही व्यवस्थाएं बचेंगी, बड़े महंगे कारपोरेट अस्पताल जहाँ घुसपाना सबके बस में नहीं होगा और गधों के अस्तबल जैसे सरकारी तबेले जहाँ घुस पाना तो आसान होगा लेकिन निकल पाना?अभी भी वक्त है, बचाइए डॉक्टर मरीज के बीच के ढहते सेतु को और उसका बोझ अपने काँधे संभालने में, पल पल खत रहे अपने अड़ोस पड़ोस के सेवाभावी डॉक्टर यानि फेमिली डॉक्टर को!
डॉ भुवनेश्वर गर्ग करोना वारियर एवं व्हिस्ल ब्लोअर डॉक्टर, सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद drbgarg@gmail.comhttps://www.facebook.com/bhuvneshawar.garg
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