लॉकडाउन ४ का दसवाँ दिन, मौत और मरीजों के बाजार में खड़ा देश
जिस देश में हर साल लगभग 5 लाख लोग आत्महत्या कर लेते हों, जहां हर साल सड़कों पर लापरवाही से वाहन चलाने से होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में लाखों लोग अकाल काल कवलित हो जाते हों, जहां हज़ारों लोग हर साल सिर्फ़ उल्टी दस्त और अन्य वाटर बोर्न डिसीज़ेस से मर जाते हों, जहां लगभग पंद्रह लाख लोग हार्ट की बीमारियों से, दस लाख लोग फेफड़ों की, आठ लाख लोग केन्सर, पाँच लाख लोग टीबी और ढाई लाख लोग शुगर की बीमारी से मर जाते हों, वहां पिछले छह माह में कुल चार हजार मौतों पर सारे देश को क्यों उथलपुथल कर दिया गया है? कोई बताएगा? और वो भी तब, जब आप इससे बच नहीं सकते? इसी के साथ आपको जीना है, और अब यह तो सरकार भी कहने लगी यही, तब ? स्वाइन फ़्लू ने भी एक दशक पहले ख़ूब त्राहि मचाई थी और अभी भी हर साल तक़रीबन हज़ार लोग इस बीमारी से मार जाते हैं लेकिन शायद ही कोई अब इससे डरता हो, याद भी नही होगा अब तो लोगों को।
आपको तो पता भी नहीं होगा, लेकिन यूनिसेफ के २०१८ के आंकड़ों के अनुसार भारत में हर साल, पांच साल से कम उम्र के लगभग पचपन लाख बच्चों की मौत होती है, और इनमें से अधिकतर मौतों में, मालन्यूट्रिशन भी पाया गया है, इसके अलावा यहाँ हर दूसरी महिला में खून की बेहद कमी है, लेकिन इन गंभीर आंकड़ों की भी कभी कोई परवाह करता है ? मलेरिया की दवाई मिले लगभग 50 साल हो गए हैं, फिर भी हर साल भारत में मलेरिया के 65 लाख से ज़्यादा केस आते हैं, जिनमें से 22 से 24 हज़ार लोगों की मौत हो जाती है। भारत में टीबी के लगभग सत्ताईस लाख मरीज़ हैं और अभी भी इससे हर साल लाखों लोगों की जान जाती है, जबकि सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है, दवाई भी मुफ्त में दे भी रही है, फिर भी! अगर कोरोना की तरह इन बीमारियों के आंकड़े भी हर रोज अखबारों, टीवी चैनलों पर बताये जाने लगें तो ? इसलिए घबराने की ज़रूरत नहीं है, कोरोना के साथ कैसे जीना है, बस ये सीखने की ज़रूरत है। भीड़ में ना जाएँ, जाना ही पड़े तो, प्रॉपर तरीके से चेहरे, नाक, मुंह को गमछे, मास्क से ढक कर जाइये, और हर कहीं हर कुछ अपने हाथों से ना छूइये, और सोशल डिस्टेंसिंग नहीं, फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन कीजिये । जैसे हमने मलेरिया के साथ जीना सीखा, मच्छरदानी लगाकर सोने लगे, साफसफाई, कीटनाशक, मच्छरनाशक उपाय करने लगे, बस उसी तरह कोरोना से बचने के उपाय अपनाइये, थोड़े अलग हैं, लेकिन हैं तो बेहद आसान, आपका समय भी बचाते हैं और फिजूल खर्चा भी तो बेहद कम हो गया है, सबका, फिर जो बेहद जरुरी है, वही कीजिये, पूरी सावधानी के साथ। मानसिक तौर पर स्वस्थ इंसान ही, मुश्किलों से निकलने के रास्ते ढूंढ पाता है, और सबके लिए एक उदाहरण भी प्रस्तुत करता है। ये समय भी निकल जायेगा, निकलना ही है, इसलिए स्वस्थ रहने के लिए, प्रसन्न और आशावादी बने रहिये। किसी भी तरह के “कोरोना बाजार” के मायाजाल में न फसें। सम्पूर्ण विश्व में, किस तरह दवाइयों और जांचों का मायाजाल फैलाया गया है, उस पर विस्तृत लेख पढियेगा, कल के अंक में। और हाँ, आप सब मेरे फेसबुक पेज पर (https://www.facebook.com/DRBGARG.ANTIBURN/ ) पिछले तीन महीनों से प्रतिदिन, लगातार छप रहे इन सभी लेखों को पढ़कर अपनी जिज्ञासाएं शांत कर सकते है और इस महासंकट काल में सभी परिजनों संग स्वस्थ और तनावमुक्त रह सकते हैं। अगर और भी कोई शंका, तनाव आपके मन में हो, या किसी भी मेडिकल समस्या पर आप कोई सलाह चाहते हैं, तो खुल कर बताइये, मेरे इनबॉक्स में भी लिख सकते हैं, निःसंकोच, कोई शुल्क भी नहीं देना है। एक दूसरे की मदद कीजिये, जो भी संभव हो, .. यही तो है इस समय की सबसे बड़ी आवश्यकता ।
मिलते हैं कल, तब तक जय श्रीराम ।
डॉ भुवनेश्वर गर्ग: डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक , मंगलम हैल्थ फाउण्डेशन भारत । संपर्क: 9425009303. drbgarg@gmail.com