छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का फरमान “पति और पत्नी के बीच बने शारीरिक संबंध रेप की श्रेणी में नहीं आता है!” ये कैसा फैसला, ये कैसा न्याय तंत्र”

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लेखिका : भावना ठाकुर

वैवाहिक संबंधो को लेकर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक बड़ा फैसला दिया है। न्यायालय ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए एक रेप के आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि, पति और पत्नी के बीच बने शारीरिक संबंध रेप की श्रेणी में नहीं आता है, बशर्ते की पत्नी की उम्र 18 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए। मर्दों की मनमानी का एक और सबूत है ये फैसला। 18 वर्ष के बाद भी स्त्री मन उतना ही नाजुक होता है मर्ज़ी के विरुद्ध सेक्स बनाने वाला पति स्त्री की नज़रों में बलात्कारी ही होता है।

एक पत्नी ने थाने में शिकायत दर्ज कराई थी कि उनका विवाह जून 2017 में हुआ था। शादी के कुछ दिनों बाद उसके पति और ससुराल पक्ष ने दहेज़ की मांग करते हुए उसे प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। उसके पति उसके साथ गाली-गलौज और मारपीट भी किया करते थे। पत्नी ने यह आरोप भी लगाया कि उसके पति ने कई बार उसके साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध और अप्राकृतिक शारीरिक संबंध बनाया था।
इस मामले में फैसला स्त्री के हक में देने की बजाय इस घिनौनी क्रिया को जायज़ बताकर ऐसा फैसला क्यूँ? क्या स्त्री कोई भेड़ बकरी है, उसकी भी इच्छा-अनिच्छा हो सकती है। हर बार पति की इच्छा के आगे समर्पित होना जरुरी तो नहीं। शारीरिक संबध में दोनों पार्टनर की मर्ज़ी का महत्व होना चाहिए, पत्नी कोई चीज़ नहीं जो यूज़ एंड थ्रो की केटेगरी में रख दिया जाए।

शादी के बाद पत्नी से जबरदस्ती सेक्स संबध बनाना शारीरिक शोषण नहीं तो ओर क्या है” मंगलसूत्र, चुटकी सिंदूर, सात फेरे, पवित्र मंत्रोच्चार और अग्नि की साक्षी के संग जुड़ा शादी का बंधन दो दिलों को एक ऐसे बंधन से जोड़ता है जिसमें एक लड़का और एक लड़की अपने साथी को एक यकीन के साथ खुद को सौंपते हैं ।

जब वो यकीन टूटता है तब एक सुंदर सा रिश्ता तार-तार होता है। पत्नी ताउम्र के लिए आपकी ही सौगात है, आपकी ही अमानत है फिर शारीरिक संबंध में हैवानियत और जबरदस्ती क्यूँ। पत्नी भी इंसान है उसकी भी पसंद नापसंद, मूड़ और मर्ज़ी होती है। किसी भी चीज़ का मज़ा तब है जब प्यार से मिले, छीना हुआ लम्हा बदबूदार और अनमना होगा। बिना इच्छा और उन्माद के साथ एक लाश के साथ रिश्ता बनाने बराबर होता है ऐसा करके आप अपनी साथी की नज़रों में खुद को गिरा लेते हो। जी हाँ पत्नी की नज़र में आप बलात्कारी ही बन जाते हो।
कुछ साल पहले बीबीसी पर पच्चीस साल की एक लड़की ने इन्टरव्यू देते कहा था कि शादी के बाद उनके पति ने कई बार उनके साथ बलात्कार किया और अब वह इंसाफ़ पाने की अदालती लड़ाई लड़ रही हैं। ”मैं हर रात उनके लिए सिर्फ एक खिलौने की तरह थी, जिसे वो अलग-अलग तरह से इस्तेमाल करना चाहते थे। जब भी हमारी लड़ाई होती थी तो वह सेक्स के दौरान मुझे टॉर्चर करते थे। तबियत खराब होने पर अगर कभी मैंने ना कहा तो उन्हें वह बर्दाश्त नहीं होता था।
भारत में ‘वैवाहिक बलात्कार’ यानी ‘मैरिटल रेप’ कानून की नज़र में अपराध नहीं है। यानि अगर पति अपनी पत्नी की मर्ज़ी के बगैर उससे जबरन शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे अपराध नहीं माना जाता। ये किस तरह का फैसला हुआ, महिला कि मर्ज़ी या मूड़ मायने ही नहीं रखता। शादी हो गई तो क्या चुटकी सिंदूर लाइसेंस बन जाता है औरतों के साथ जबरदस्ती करके प्रताड़ित करने का। महिला कोई भेड़ बकरी है जो लाठी की फ़टकार से उनसे कुछ भी करवा लो।
शादी का बंधन पवित्र बंधन होता है। एक दूसरे पर भरोसा और मान सम्मान के टीले पर टिका होता है रिश्ता। और एक दूसरे को उनकी पसंद-नापसंद के साथ अपनाना चाहिए नां कि शादी की रस्म को मनमानी में बदल कर पत्नी पर आधिपत्य जताते हावी हो जाओ।

फिर सेक्स सिर्फ़ तन का उन्माद शमन करने की क्रिया ही नहीं है, पति-पत्नी को भावनात्मक रुप से जोड़ती आनंद की चरम है। किसी एक की नामर्ज़ी और जबरदस्ती से जोड़ा गया संबंध बलात्कार ही कहलाता है, फिर चाहे जबरदस्ती करने वाला पति ही क्यूँ ना हो। इस बेतुके कानून को बदलने की मुहिम हर शादीशुदा औरतों को उठानी चाहिए। ये हर स्त्री के आत्मसम्मान का सवाल है। ये क्रिया को भी घरेलू हिंसा की श्रेणी में ही माना जाए तभी हर स्त्री के साथ न्याय होगा।


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