मनुष्य के जीवन में विनय का होना आवश्यक है: मुनिश्री

Share:

ग्वालियर, 10 अप्रैल (हि.स.)। मनुष्य के जीवन में विनय का होना आवश्यक है।  विनय भाव से मनुष्य के मान, माया, लोभ व  क्रोध इत्यादि में कमी होने लगती है। मनुष्य का जीवन शांति एवं आनंद का जीवन हो जाता है।  पुत्र का पिता के प्रति, बहू का सास के प्रति, शिष्य का गुरु के प्रति विनय रहना चाहिए। यह बात राष्ट्रसंत मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज ने शुक्रवार को तानसेन नगर स्थित न्यू कालोनी में धर्मचर्चा में कही।
मुनिश्री ने कहा कि शिक्षा पूर्व में भी आवश्यक थी और आज भी  बहुत महत्व है। ऊंची शिक्षा प्राप्त करने के बाद यदि विनय की कमी है, तो वह शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण नहीं होती है।  जिसके आचरण में विनयशीलता, सरलता एवं निर्मलता होती है, उसका सभी जगह सम्मान होता है लेकिन जिसके पास अहंकार होता है, उसका कहीं भी सत्कार नहीं होता है। जहां अहंकार और मैं की भावना होती है, वहां समस्या बढ़ जाती है पर, जहां विनय भाव होता है, वहां सभी समाधान हो जाता है।
 मुनिश्री ने कहा कि त्याग में धर्म है,  जितना त्याग है उतना धर्म व संयम है। इसलिए मनुष्य को त्याग की साधना करनी चाहिए। त्याग से कर्मों की निर्जरा होती है और कर्मों की निर्जरा से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है। अपने भावों को शुद्ध करना भी त्याग धर्म है। हमें अपने जीवन में त्याग धर्म को अपनाना चाहिए।मुनिश्री ने कहा कि पहले अपनी दृष्टि बदलो। क्योंकि जैसी आपकी दृष्टि रहेगी, वैसी ही आपकी सोच होगी और यदि सोच अच्छी रहेगी तो आपकी सृष्टि भी बदल जाएगी। यह सांसारिक जीवन एक रंगमंच है। हर व्यक्ति को अपने और बेटे की चिंता है। यहां तक कि वो आने वाली अगली पीढी़ की भी चिंता कर रहा है। ऐसे लोग खाते तो भारत देश में हैं, लेकिन खाता खुलाते विदेश में है।


Share:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *