मंत्रालय व राजभवन के बोल अलग बीच में फंसी निदेशक की कुर्सी

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सौरभ सिंह सोमवंशी

प्रयागराज

भारत के संविधान में राज्यों के राज्यपालों का प्रमुख कार्य केंद्र सरकार और राज्य के बीच कड़ी का कार्य करना है इसके अलावा राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्रिमंडल या जिसे केंद्र सरकार कहा जाता है उसकी सलाह पर राज्यों में राज्यपाल की नियुक्ति करता है दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि राज्यपाल केंद्रीय मंत्रिमंडल अथवा केंद्र सरकार का राज्य में प्रतिनिधि होता है परंतु उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में स्थित उत्तर मध्य सांस्कृतिक केंद्र (जो भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय के अंतर्गत आता है) को लेकर उत्तर प्रदेश का राजभवन और भारत सरकार का सांस्कृतिक मंत्रालय आमने-सामने हैं।


क्या है मामला


उत्तर मध्य सांस्कृतिक केंद्र (जो उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में स्थित है) के निदेशक इंद्रजीत सिंह ग्रोवर का कार्यकाल जो समाप्त हो रहा था उसे 2 वर्ष बढ़ाने के लिए उन्हें भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय से एक पत्र 17 दिसंबर 2020 प्राप्त हुआ जिसमें उनके कार्यकाल को 18 दिसंबर 2020 से 17 दिसंबर 2022 तक बढ़ाया गया था, यह पत्र प्राप्त होने के बाद इंद्रजीत ग्रोवर मानसिक रूप से इस बात के लिए तैयार हो गए कि उनको अब भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय के निर्देश पर दिसंबर 2022तक प्रयागराज में ही रहना है इसके पहले वह प्रयागराज छोड़कर अपने पुराने विभाग में जाने के लिए तैयार हो गए थे परंतु अब उन्होंने उत्तर मध्य सांस्कृतिक केंद्र के लिए कार्य करना जारी रखा परंतु अचानक अप्रत्याशित रूप से18 जनवरी 2020 को शाम 6:30 पर एक ईमेल उनको प्राप्त हुआ जिस पर प्रदेश की गवर्नर आनंदीबेन पटेल के कार्यालय के अपर मुख्य सचिव महेश गुप्ता का हस्ताक्षर था जिसमें निदेशक इंद्रजीत ग्रोवर से कहा गया था कि आप जिला अधिकारी प्रयागराज को उत्तर मध्य संस्कृतिक केंद्र के निदेशक का पद हस्तगत कराना सुनिश्चित करें मजे की बात यह है कि यह ईमेल आने के 2 घंटे के भीतर ही जिला अधिकारी भानु चंद्र गोस्वामी ने बिना इंद्रजीत ग्रोवर के हस्ताक्षर के ही कार्यभार का हस्तांतरण कर लिया। इसके अलावा इस प्रक्रिया के दौरान पुलिस का भी सहारा लिया गया हालांकि इंद्रजीत ग्रोवर ने किसी तरह का विरोध नहीं किया परंतु उनका कहना है की केंद्र में पुलिस को बुलाकर के निदेशक का पद हस्तांतरित करना उनकी समझ से परे है,और ये उनके लिए अपमान जनक भी है। इसके अलावा बड़ा प्रश्न यह है कि क्या भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय के पत्र के बारे में उत्तर प्रदेश की गवर्नर के कार्यालय को कोई जानकारी नहीं है? या फिर जानबूझकर के भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय के कार्य में उत्तर प्रदेश के गवर्नर के द्वारा हस्तक्षेप किया जा रहा है। या फिर यह भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय और उत्तर प्रदेश के राजभवन के बीच टकराव का प्रारंभ है दूसरी तरफ इंद्रजीत ग्रोवर ने यह भी कहा कि निदेशक के पद को हस्तांतरित करने में औपचारिकता भी नहीं निभाई गई और जिला अधिकारी ने एकल हस्ताक्षर से ही निदेशक का पद हस्तांतरित कर लिया। इसके अलावा भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय का इस मामले पर मौन रहना तब समझ से परे है जब उसी के आदेश का कोई पालन जिला अधिकारी के द्वारा नहीं कराया जा रहा है। या उस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है इंद्रजीत ग्रोवर ने यह भी आरोप लगाया कि हमें एक माह तक अंधेरे में रखा गया यदि उनसे पहले ही बता दिया जाता तो वह स्वयं निदेशक का पद छोड़ देते वह इसके लिए मानसिक रूप से तैयार भी थे परंतु नए मेमोरेंडम के हिसाब से उत्तर मध्य संस्कृतिक केंद्र के कार्य में राज्यपाल को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार ही नहीं है यह परिघटना अपने आप में बहुत संवेदनशील है क्योंकि इस तरह की कार्यप्रणाली देश और प्रदेश की पूरी की पूरी संवैधानिक व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है वैसे केंद्र और राज्य में अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकारी होने के बाद इस तरह के मामले अक्सर देखे जाते हैं परंतु एक ही राजनीतिक दल की सरकार होने पर इस तरह के मामले घटित होना समझ से परे है,और इस तरह की कार्यप्रणाली देश व प्रदेश के लिए कतई शुभ संकेत नहीं है।।


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