आइए मिलते हैं भारत के एक भावी अर्थशास्त्री से जिनके लिए सवाल कई उठते हैं पर जवाब कोई नहीं देता

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डॉक्टर अजय ओझा ।

यह हैं मुकेश जी … आपको आश्चर्य हुआ ना … ये जाति से ब्राह्मण हैं और इनका नाम है मुकेश मिश्र। बनारस में अपनी पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के लिए हफ्ते में तीन दिन रिक्शा चलाकर धन अर्जित करते हैं।

इनके पिता जी का पूर्व में ही देहांत हो चुका है। मुकेश जी बनारस में रहकर अपने एक छोटे भाई को पालिटेक्निक (सिविल) करवा रहे हैं। मुकेश स्वयं Net Exam निकाल चुके हैं और Economics (अर्थशास्त्र) विषय से अभी वर्तमान समय में Phd कर रहे हैं।

जब मुकेश मिश्र जी से पूछा गया कि आप की पारिवारिक दुर्दशा पर क्या कभी कोई सरकारी मदद आपको मिली है ?? जैसे जातिगत आरक्षण, जातिगत छात्रवृति, नोकरी, जातिगत फीस ओर जातिगत योजनायें?… तो उन्होंने हँस कर जवाब दिया—
“क्या सर जी, ब्राह्मण हूं जन्म से… आवश्यकतानुसार श्रम कर लूंगा यह करना हमारेे लिए धर्म सम्मत है। इतिहास गवाह है ब्राह्मणों ने तो भिक्षा मांग मांगकर देश का निर्माण किया है। दान ले कर दूसरों को और समाज को दान में सब कुछ दिया है। हमें सरकार से कोई अपेक्षा नहीं है। हम स्वाभिमान नहीं बेच सकते। हम आरक्षण के लिये गिड़गिड़ा नहीं सकते। हम मेहनत कर सकते हैं। रिक्शा चलाने में अपना स्वाभिमान समझते हैं। किसी का उपकार लेकर जीना हमें पसन्द नहीं है।”

“हम परशुराम के वंशज हैं। हम पकौड़ा तल कर अपने और अपने भाई की पढ़ाई पूरी कर सकते हैं, तो कर रहे हैं। आप देखियेगा, एक दिन हम खड़े हो जायेंगे। पीएचडी पूरी करके किसी उचित स्थान पर अपनी योग्यता सिद्ध करेंगे। रिक्शा भी चलाते हैं । मेहनत से पढ़ाई भी पूरी करते हैं। पीएचडी मेरी तैयार है। बस उसको टाइप वगैरह कराने के लिये थोडे धन की आवश्यकता है थोडा और रिक्शा चलाऊंगा। भाई की पढ़ाई भी पूरी होने वाली है। माता जी की सेवा भी करता हूं। मां को कुछ करने नहीं देता। वे बस हमें दुलार कर साहस दे देती हैं।”

“आप तो जानते ही हैं कि भारत में ब्राह्मण जाति का अर्थ नेताओं व सरकार की नजर में सिर्फ एक गुलाम होता है। सरकार सिर्फ दलित एवं पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए कार्य करती है। मेरे साथ चलिए, मैं ऐसे हजारों ब्राह्मण नवयुवकों से आप को मिला सकता हूँ जो बनारस जैसे धार्मिक शहर में मजदूरी कर रहे हैं और अपनी पढ़ाई भी कर रहे हैं। सभी स्वाभिमान से अपना कार्य करते हैं। किसी के आगे गिड़गिड़ाते नहीं। सभी पढ़ाई में तेज हैं। किसी प्रकार के पाखंड में नहीं जीते। अपने लक्ष्य के लिये मेहनत करते हैं। कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता। आवश्यकता है लक्ष्य भेदने की। हम सब खुश हैं स्वाभिमान से जीने पर।”

मुकेश मिश्र जी आप समस्त ब्राह्मण जाति के ही नहीं हर साधनहीन नवयुवक की प्रेरणा हो … आपको नमन … आप से मिलकर एक भावी अभिजीत बनर्जी (नोबेल प्राइज विजेता अर्थशास्त्री) के दर्शन हुए साथ ही यह सोचने पर विवश हुआ कि क्या यह सत्य है कि अम्बेडकर के नीले संविधान में कहीं कुछ अधूरा छूट गया है? क्या आरक्षण गरीब सवर्णो की प्रतिभा को कुंठित करने का प्रयास मात्र नहीं है …?


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