बगैर शक्ति प्रदर्शन के दिलचस्प होंगे मध्य प्रदेश में उपचुनाव

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भोपाल: विश्वव्यापी कोरोना महामारी के कारण सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए राजनीतिक दल भले ही उपचुनाव के दौरान बड़ी-बड़ी सभाएं रैलियों के माध्यम से शक्ति प्रदर्शन ना कर पाए लेकिन यह उपचुनाव बेहद दिलचस्प होंगे क्योंकि दोनों ही दलों द्वारा चुनाव घोषित होने के बहुत पहले से ही तैयारियां शुरू कर दी है।
दरअसल प्रदेश में जिस तरह का राजनीतिक दलों में धमाल मचा हुआ है, उससे 24 सीटों पर होने वाले उपचुनाव पर सबकी निगाहें है। यह उपचुनाव पिछले चुनाव की अपेक्षा कई दृष्टि से भिन्न है, मसलन इन 24 सीटों के परिणाम सरकार की दिशा तय करेंगे यह चुनाव मैदान में कम सोशल मीडिया पर ज्यादा लड़े जायेंगे। डेढ़ साल पहले जो पंजे के लिए वोट मांग रहे थे वह कमल के लिए वोट मांगेंगे 2018 के चुनाव में एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी एक साथ वोट मांगने जाएंगे। उपचुनाव में दोनों ही दलों के राष्ट्रीय नेता गहरी रुचि लेंगे इन चुनावों में 15 साल के भाजपा शासन काल की कांग्रेस के 15 माह के शासन से तुलना की जाएगी।

दोनों ही तरफ से आरोप-प्रत्यारोप के दौर शुरू हो गए है। दलों के आईटी सेल को मजबूत किया जा रहा है 13 जिलों में जहां यह 24 सीटें आती हैं वहां पर मतदाताओं को व्हाट्सएप ग्रुप से जोड़ा जा रहा है।
बहरहाल प्रदेश के दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर है। भाजपा की ओर से जहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया स्टार प्रचारक होंगे वही कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह प्रचार अभियान की कमान संभालेंगे। इन नेताओं के समर्थक इन सीटों पर सक्रिय हो गए हैं और स्थानीय स्तर पर बैठकों का दौर तेज हो गया है। कांग्रेस के बागी विधायकों द्वारा भाजपा की सदस्यता लेने के बाद अधिकांश सीटों पर कांग्रेस को बूथ स्तर पर नए सिरे से जमावट करना पड़ रहा है। वहीं भाजपा को कांग्रेस से आए नेताओं और कार्यकर्ताओं को भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ सामंजस्य बनाना है दोनों ही दलों के सामने चुनौतियां है। भाजपा के जहां प्रत्याशी तय है वहीं कांग्रेस को प्रत्याशी चयन की बड़ी चुनौती है भाजपा को प्रत्याशियों की स्वयं की एंटी इनकंबेंसी को भी डाइल्यूट करना है और अल्प समय की सरकार की उपलब्धियां बता कर मतदाताओं को प्रभावित करना है।
कुल मिलाकर कोरोना महामारी के कारण लंबे लॉक डाउन के बाद भले ही अनलॉक की ओर देश बढ़ रहा है लेकिन अभी भी आम आदमी के जीवन में अनेकों ऐसी मुश्किल है, जिससे उसकी जकड़न अभी दूर होने वाली नहीं है। पहले जैसी जीवन में ना स्वतंत्रता रही है और ना ही अभयता। यही कारण है की दलो और नेताओं में चुनाव को लेकर भले ही बेचैनी हो लेकिन गांव गांव में मतदाता इस समय अपने भविष्य की चिंता में चुनावी चर्चा पर ध्यान नहीं दे रहा है।

देवदत्त दुबे (ब्यूरो प्रमुख)


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