मध्यप्रदेश में मजबूरी का मंत्रिमंडल

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२२ अप्रैल, भोपाल :जिस प्रकार किसी भवन को गिरा देना आसान है और खाली जगह पर है वैसा ही भवन बनाना बहुत कठिन है। ऐसा ही कुछ इस समय मध्य प्रदेश की राजनीति में हो रहा है प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले भाजपा को मंत्रिमंडल का गठन करने में पसीना छूट रहा है और पिछले लगभग एक माह से गठन को टाला जा है लेकिन जब कांग्रेस ने मंत्रिमंडल के गठन को लेकर राष्ट्रपति का दरवाजा खटखटाया वही ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी दबाव और कोरोना महामारी के चलते मंत्रिमंडल के गठन को लेकर जो दबाव बन रहा था उसमें पांच मंत्रियों को शपथ दिलाकर मंत्रिमंडल गठन की प्रक्रिया पूरी की गई।

मंत्री मंडल विस्तार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा

बहरहाल कहने को तो पार्टी ने मंत्रिमंडल गठन में क्षेत्रीय और जातीय संतुलन बनाने का प्रयास किया है। कहीं-कहीं व्यापक प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है सागर संभाग में सबसे वरिष्ठ और अनुभवी पूर्व नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव का मंत्री बनने को लेकर सबसे मजबूत दावा माना जा रहा था इसी तरह मुख्यमंत्री के पिछले कार्यकाल में सबसे निकट रहे पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह का नाम भी तय माना जा रहा था लेकिन इन दोनों नेताओं की जगह गोविंद राजपूत को मंत्री बनाए जाना आश्चर्य के रूप में देखा जा रहा है ऐसी परिस्थितियां अन्य किसी संभाग में नहीं थी यही कारण है दिन भर सोशल मीडिया पर कांग्रेस ने भार्गव को मंत्री बनाए जाने को लेकर भाजपा को आड़े हाथों लिया बुंदेलखंड के भार्गव समर्थकों और भाजपा कार्यकर्ताओं को भार्गव ने किसी तरह फिलहाल जहां प्रतिक्रिया देने से रोक लिया है वही भाजपा के वरिष्ठ नेता मंत्री पद के अन्य दावेदारों को यह कहकर समझा रहे हैं की अभी परिस्थितियां अनुकूल नहीं है इस कारण भार्गव जैसे नेता को भी शपथ नहीं दिलाई जा सकी है परिस्थितियां अनुकूल होती मंत्रिमंडल का विस्तार किया जाएगा जिसमें अवसर आपको भी मिलेगा।

ऐसा ही इंदौर जबलपुर महानगर में भी भाजपा से किसी को मंत्री ना बनाए जाने की कसक है।कुल मिलाकर राजनीति और क्रिकेट में यही रोमांच भी है और यही आकर्षण भी है इसमें ग्लैमर भी है लेकिन एक छोटी सी चूक कितनी भारी पड़ सकती है कहा नहीं जा सकता और जिस तरह ओपनिंग बल्लेबाज आउट होने के बाद मध्यम क्रम पर दबाव बन जाता है ऐसे ही समय जो पांच मंत्री बनाए गए हैं उन पर दोहरा दबाव रहेगा एक तरफ जहां उन्हें कोरोना जैसी महामारी से निपटना है, वहीं दूसरी ओर जो वरिष्ठ विधायक मंत्री नहीं बन पाए उनके समर्थकों को भी साधना है और मुख्यमंत्री चौहान के लिए भी सतर्क और सावधान रहना पड़ेगा क्योंकि प्रतिशोध की ज्वाला में जल रही कांग्रेश भाजपा की तरह ही सरकार को अस्थिर करने के प्रयास करेगी जिसकी शुरुआत उसने भाजपा विधायकों के प्रति सहानुभूति दिखाने से शुरू कर दी है। भले ही मंत्रिमंडल का गठन मजबूरी में किया गया हो लेकिन इसको मजबूती देने के लिए हकीकत में सबका साथ और सबका विश्वास जीतना जरूरी हो गया है।

देवदत्त दुबे


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