करोना लॉकडाउन 2.0 का चौथा दिन : क्या वाकई खुश होने का समय आ गया है ? इम्यून सिस्टम कैसे कोरोना से लड़ता है ?

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डॉ भुवनेश्वर गर्ग

लगता तो यही है, क्योंकि स्वास्थ्य मंत्रालय भी यही कह रहा है, कि मरीजों की संख्या में 40% से भी अधिक की कमी आ गई है और मरीजों के संक्रमण की दर के दुगने होने की गति भी कम हो गई है, पहले जहाँ हर ढाई दिन में मरीज डबल हो रहे थे, वहीँ अब लगभग साढ़े छह दिन में हुए हैं
और सबसे अच्छी बात यह है कि, भारत देश में, मौसम, अनुशासन और खानपान बेहतर होने से, मरीजों के ठीक होने का प्रतिशत भी वर्ल्ड में सबसे ज्यादा है, मौतों का आंकड़ा भी बाकी देशों के मुकाबले बेहद कम है।

वाकई बात तो है खुश होने की, लेकिन देश को अभी बहुत ज्यादा खुश भी नहीं होना चाहिए, क्योंकि अव्वल तो हमारे यहाँ इंसानों की शक्ल में भेड़िये बहुत हैं और, नियम कानून की अवहेलना करने वाले विघ्नसंतोषी भी बहुत, धर्म और भीड़ की आड़ में, सेवा कर रहे डाक्टरों, पुलिस वालों को पत्थर मार रही, वहशी औरतें भी बहुत हैं। अथाह जनसंख्या में से मरीजों को ढूंढ निकालने, जांच करने में जो व्यवधान आ रहे हैं, वो भी चिंतनीय हैं और संभवतः जांच जिस अनुपात में होनी चाहिए, वो भी एक कारण है, इसलिए ।
क्या आपने भी अभी नवम्बर दिसम्बर में, अजीब सा फ़्लू टाइप बुख़ार, सर्दी जुखाम, शरीर दर्द झेला था, मेने तो झेला था, कमजोरी कई हफ़्तों तक रही थी वो अलग, वो क्या था ?
क्या वो भी करोना ही था और पता ना होने की वजह से विपदा आई भी और चली भी गई बिना आतंक फैलाये ?
तो चलिए, आज इसी मुद्दे पर हम आपको वायरस और उसके प्रभाव पर हमारे शरीर का रक्षा तंत्र कैसे काम करता है, यह बताने की कोशिश करते हैं।

वायरस के खिलाफ हमारा रक्षा तंत्र है, हमारा इम्यून सिस्टम (immune system) और यह क्या करता है वायरस को हराने के लिए?
हर कोई साल में एक दो बार, सर्दी, जुकाम, वायरल का प्रकोप झेलता है, फिर ठीक भी हो जाता है, वैसे ही ज्यादातर लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो के अपने आप ठीक हो जा रहे हैं। यह कैसे संभव हो पा रहा है ?

जब हमारे शरीर पर वायरस का हमला होता है, तो बाकायदा, पुलिस, खुफ़िया पुलिस, आर्मी जैसा युद्ध छिड़ता है, वायरस के मानव शरीर में प्रवेश करते ही, यह सम्बंधित और संभावित भाग, तंत्र, सिस्टम पर अटैक करना शुरू कर देता है, जैसे कोरोना का वायरस आपके नाक, मुंह, आँख के जरिये गले पर हमला करता है और फिर फेफड़ों पर, सांस लेने में दिक्कत और शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है और फिर मौत के करीब पहुँचने लगता है इंसान।

इस वक्त शरीर पर वायरस का लोड बहुत हो जाता है और और वो सारे रक्षा तंत्र को भौंचक्का कर देता है, इन शुरूआती दिनों में, मरीज अगर तंदरुस्त है, उसका इम्मून सिस्टम कमजोर नहीं है और बुढ़ापे, शुगर, बीपी की वजह से खोखला नहीं हो चुका है, तो शरीर का मुख्य रक्षक, इम्यून सिस्टम, एक्टिव हो जाता है, इस इम्यून सिस्टम के पास सभी तरह के दुश्मनों का लेखाजोखा होता है, उसे पता होता है कि किस पर कौन सा अटैक करना है, एंटी-बॉडीज की एक सेना तैयार की जाती है और वायरस पर हमले के लिए भेज दी जाती है। अगर वो वायरस पहले अटैक कर चुका है तो उसकी एंटीबाडी रचना पहले से शरीर की मेमोरी में होती है और उसे तुरंत वायरस को मारने के लिए भेज दिया जाता है। अगर वायरस नया है जैसा कि करोना के केस में, तो इम्यून सिस्टम हिट एंड ट्रायल नीति से सेना की रचना करता है। सबसे पहले भेजा जाता है हमारे शरीर के सबसे फेमस योद्धा “IgG अर्थात इम्मुनोग्लोबिन g” को, ये शरीर की सबसे कॉमन एंटीबाडी है और ज्यादातर युद्धों में जीत का सेहरा इसी के सर बंधता है। IgG सेना शुरूआती अटैक करती है वायरस सेना पर और उसे काबू करने की कोशिश करती है। IgG सेना की मदद करती है, एंटीबाडी इम्मुनोग्लोबिन M अर्थात IgM सेना, यह अटैक की दूसरी लाइन है। मानव शरीर के जो सेल्स अभी तक ख़त्म नहीं हुए होते हैं, उन्हें बचाने की कोशिश की जाती है, लेकिन अगर वायरस लोड ज्यादा है और वो अभी भी ताकतवर है, तो वो इम्यून सेल्स को भी इन्फेक्ट करना शुरू कर देता है, तब इम्यून सिस्टम की वानर सेना IgG और IgM के अलावा हमारा इम्यून सिस्टम तीन और खतरनाक योद्धाओं को मैदान में उतार देता है, B सेल्स, हेल्पर T सेल्स, और सबसे इम्पोर्टेन्ट किलर T सेल्स, इनके सम्मिलित हमले से वायरस के छक्के छूट जाते हैं।

इस लड़ाई में कई दिन लग सकते हैं, इसलिए अगर मरीज तंदरुस्त है, तब तो ठीक, लेकिन अगर बीमार और वृद्ध व्यक्ति है, तब जितना अधिक समय मिलेगा, शरीर का इम्यून सिस्टम उतनी ही लड़ाई लड़ता रह पायेगा और इस समय उसे गर्मी, पौष्टिक भोजन, जरुरी विटामिन्स लगातार मिलते रहने चाहिए, वो भी पूर्ण आराम के साथ, तब तो बचने की संभावनाएं बढ़ती जाती हैं। शरीर की जीत होते ही ये सारा वाक़या इम्यून सिस्टम की मेमोरी में दर्ज़ हो जाता है, कुछ वायरस जो कि बहुत ताकतवर होते हैं, उनका इतिहास हमेशा के लिए इम्मून सिस्टम अपनी मेमोरी में लिख लेता है, जैसे की चिकनपॉक्स और पोलियो आदि, ताकि जब भी ये शरीर पर दुबारा हमला करें, तो इनसे जल्दी से जल्दी निपटा जा सके।

क्रिटिकल केस

लेकिन कुछ वायरस फालतू भी होते हैं, जो प्रकृति हमारे शरीर के इम्मून सिस्टम की परीक्षा लेने हर कभी भेजती रहती है, जैसे जुकाम फ्लू आदि, उनको इम्यून सिस्टम अपनी शार्ट टर्म की मेमोरी में महीना दो महीना रखता है और फिर भूल जाता है, इसीलिए इंसान को सर्दी जुकाम हर कभी होता रहता है, साल दर साल, और चूँकि इस टाइप के वायरस का लगातार म्यूटेशन होता रहता है, अर्थात वायरस का आवरण बदलता रहता है, इसलिए यह आपके शरीर पर हमला तो करते हैं, लेकिन शरीर अपनी मेमोरी से इन पर तुरंत काबू कर लेता है, और अब ध्यान दीजिये कि कभी किसी एलर्जी में, या किसी दवाई की रिएक्शन में क्यों और कैसे पलक झपकते ही, पूरे शरीर में खुजली, शीत, ददोड़े उठ जाते हैं और फिर शीघ्र ही ठीक भी जाते हैं, हालाँकि किसी किसी में यह जानलेवा भी साबित हो सकते हैं। और इसीलिए धूल मिट्टी में खेलना, धूप में व्यायाम करना, मौसम की मार को शरीर को झेलना कितना आवश्यक है, यह भारत देश की नब्बे प्रतिशत जनता को मालूम है और यह उसकी विरासत, परंपरा और बुनियादी शिक्षा का भाग भी है और इसीलिए देश इस बीमारी से बड़ी बहादुरी से लड़ भी रहा है।

हर शिशु ने अपने बचपन में मिट्टी खाई भी होगी और अपनी माँ को भी खिलाई ही होगी और यही तो हम सबकी प्रिय सुभद्राजी भी, जो कहलाती तो राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री थी, लेकिन अपनी बाल्य सुलभ रचनाओं में सबको पढ़ा भी गईं थी !
माँ ओ! कह कर बुला रही थी, मिट्टी खाकर आई थी,
कुछ मुंह में, कुछ लिए हाथ में, मुझे खिलाने आई थी

और यही है आधार, जो शुश्रुत, चरक, नारद संहिता में भी वर्णित है, सारे वायरस के, एलर्जी के प्रकोप और ठीक होने की प्रक्रिया का और सार भी यही है, कि वायरस से कम से कम संपर्क हो, हो भी तो, आपका शरीर उससे लड़ने के लिए मजबूती से तैयार भी हो, यही है हर्ड इम्मुनिटी का आधार भी, जो हमने कल के लेख में विस्तार से बताया था। तो फिट रहिये, सुरक्षित रहिये, खुश रहिये और हाँ, अपने आसपास प्रकृति, पेड़पौधों, मूक पशुओं को भी खुश रखिये, धरा रहेगी प्रसन्न, तो खुशियाँ बरसेंगी आपके घर आँगन।
मिलते हैं कल, तब तक जय जय राम जी।


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