करोना काल, लॉकडाउन 2.0 का आठवाँ दिवस, धरा को समर्पित विश्व पृथ्वी दिवस विशेष : आइए धरती का कर्ज उतारें

Share:

स्वार्थी, लालची मानव के मूकपशुओं, प्रकृति के प्रति आतंक, अत्याचार, अनादर और अवहेलना से दुखी धरा ने, प्रकृति ने अपने आप को शुद्ध करने का प्रयास स्वतः ही आरंभ कर दिया है। मात्र दो ही महीने में, सड़कों से भीड़ ख़तम हो गई है, अपराधों की संख्या में, अस्पतालों में लगने वाली भीड़ में, शादी ब्याह, मॉल्स, बिना वजह की तफऱीफ में, ढेरों कमियां आ गई हैं, विकास का पर्याय कहे जाने वाले विशाल देश, उनके हवाई अड्डे, ट्रेनें, ठहर से गए हैं, ग्लोबल वार्मिंग, कार्बन डेटिंग, मांसाहार जैसे शब्द चीख चीख कर खुद को उपस्थित होने का आभास दिला रहे हैं लेकिन कोई सुन ही नहीं रहा। प्रकृति खुश है, तितलियाँ गिलहरियां टिटहरियाँ बाग बगीचों में, फूलों, पेड़ पौधों पर लौट आईं हैं, नदियाँ निर्मल हो गईं हैं और पशुपक्षी बिंदास सड़कों पर, खुले मैदानों में विचरण कर रहे हैं। वहीँ घरों में सिमटा मनुष्य, ना सिर्फ प्रकृति को विस्मय से निहार रहा है बल्कि ताज्जुब भी कर रहा है कि जिन्दा रहते स्वर्ग देखना इतना आसान था लेकिन वो बनावटी, भौतिक संसार की फिजूल की आपाधापी में ही उलझा रहा और उसका कितना जीवन नर्कमय रहकर बीत गया।

और आज जब वर्तमान में विश्व में लाखों मौतों का ज़िम्मेदार करोना, जिससे संक्रमितों की संख्या पच्चीस लाख से भी अधिक और भारत में लगभग बीस हजार हो चुकी है तब वो आगे और क्या करने वाला है ? क्या यह वैश्विक करोना संक्रमण जल्दी ही समाप्त हो जायेगा ? क्या मानव फिर से वही नर्कमय जीवन जिएगा? तो अभी तो ऐसा लगता नहीं, लेकिन इंसान को कोरोना के साथ ही जीवन जीने की कला सीखना होगा। संयम, संचय और प्रकृति संरक्षण के साथ ही उसका निर्वाहन हो सकता है अन्यथा नहीं, क्योंकि आगे आने वाला समय बेहद कष्टकारी भी हो सकता है, अगर पृथ्वी और प्रकृति और भी रुठीं तो।

जब उनके एक छोटे से अस्त्र, करोना ने निष्ठुर मानव सभ्यता को करुणा का वो सबक पढ़ा दिया जिससे मानव नकारता रहा तो तब क्या होगा जब निष्ठुर चीन के इस वाणिज्यिक कृतिम हथियार और उसकी लेब में बंद पंद्रह सौ से भी अधिक घातक वायरस और दुनिया भर में मौजूद परमाणु हथियार, प्रलय के हाथों स्वविस्फोटित हो गए तो? चेरनाबॉल में क्या हुआ, उस भीषण आग ने चुन चुन कर तो नहीं जलाया न आधी दुनिया को? सोचिये, तब क्या होगा जब नेस्त्रादेमस के कहे अनुसार चीन का कीटाणु पृथ्वी पर कहर बरपाएगा और सारा विश्व उसके सामने नतमस्तक होगा?
लेकिन नेस्त्रादेमस ने यह भी तो कहा है कि तब पृथ्वी और प्राणिजगत का भला करने, भारत देश का एक साधु आगे आएगा और वो सम्पूर्ण विश्व में भारत की परचम लहराएगा ? फिर किस बात की चिंता ?

लेकिन चिंता तो करनी ही होगी न, अपनी धरा को प्रकृति को, अपनी अर्थव्यवस्था को बचाये रखने के लिए, क्योंकि अकेला साधु यानी आपका प्रधानमन्त्री क्या क्या कर लेगा ? आप तो एकजुट होकर उसे वोट भी नहीं देते, फिर? थोड़े से लालच में आपकी गाय, आपसे रूठ कर कसाई के घर जा बैठती है, फिर ? जरा से लालच के लिए अपना वोट बेचने, और अपनी माँ को बेचने में क्या फर्क है, सोचिये ?

सोचिये क्योंकि आने वाले समय में सबकी इनकम भी कम होगी, तब अगर आपके इस स्वार्थी रव्वैये की वजह से वोटबेंक तुष्टिकारी नीति वाली केजरी, ममता, लालू, मुलायम सरकारें या उनके गठबंधन वापिस देश काबिज हो गए तो? देश को लूटने वाले तंत्र के साथ, कम होती कमाई में आप कैसे अपना, अपने परिवार, आश्रितों का भरणपोषण कर पाएंगे ? सोचिये और अपनी तुच्छ अभिलाषाओं, दिखावे, आडम्बर, रूढ़ियों, लालच का त्याग कर देश को सर्वोच्च प्राथमिकता दीजिये। खर्चों में कमी कीजिये, अब शादीब्याह में होने वाले खर्च बहुत सीमित करने होंगे, उस धन को नवदम्पत्ति को देकर आप उनका आने वाला कल स्वर्णिम नहीं तो आनंदमय तो बना ही सकते हैं।

साफ सफाई, सैनिटाइजेशन, मास्क का उपयोग, सोशल डिस्टेंसिंग के साथ साथ फिजिकल डिस्टेंसिंग भी अब हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन जाने चाहिए, घरों में रहकर पौष्टिक और सात्विक भोजन करते हुए, इम्यूनिटी बढ़ाने वाले व्यायाम जैसे सूर्य नमस्कार, योग प्राणायाम की ओर सबको ध्यान देना ही होगा। हमें हमारे घरों में स्टील और कांच की बजाय फिर से मिट्टी के, कॉपर के बर्तनों का उपयोग करना शुरू करना होगा क्योंकि कॉपर यानी ताम्बे की महत्ता युगयुगांतर से हिन्दुस्तानी जानते हैं और अब तो दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने भी मान लिया है कि भारतीय पद्धतियां हमेशा श्रेष्ठ थी और हैं, और मिटटी के, ताम्बें के पात्रों में पानी का संग्रह, सर्वाधिक उपयुक्त है क्योंकि इन पर कीटाणु पनपते नहीं, और इन पर करोना वायरस तो सबसे कम समय तक जीवित रहता है।

और चलते चलते वही बात एक बार फिर, क्लोरोक्विन टेबलेट की, अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) और यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया के शोधकर्ताओं ने पाया है कि जिन कोरोना मरीजों का इलाज सामान्य तरीकों से हो रहा है, उनके मरने की आशंका कम रहती है जबकि, हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा का उपयोग करने वाले मरीजों की ज्यादा मौत हुई है और एक मेडिकल एक्स्पर्ट के नाते, यही बात हम तब से कह रहे हें, लिख रहे हें, जब ट्रम्प ने इसे लेकर व्यापारिक लालच और अतिउत्साह में बयान दिया था। बाद में अमेरिकी संस्था FDA ने भी ना सिर्फ़ इसका खंडन किया बल्कि स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त नुकसानदायक क्लोरोक्विन के ऐसे किसी भी उपयोग को बिना उचित शोध किए, करने से मना भी किया था।
लेकिन फिर भी क्या हुआ, दवा की ढेर कालाबाज़ारी मुनाफ़ाख़ोरी हुई, बिना वजह डाक्टरों ने इसे स्वस्थ लोगों को प्रेस्क्राइब करना शुरू कर दिया।

कम्पनियाँ टूट पड़ी फ़ायदा उठाने और जनता ने दस रुपए की गोली सो रुपए, हज़ार रुपए में ख़रीदी, यहां तक कि सभी देश भी इसे खरीदने, इसका उपयोग और स्टोरेज करने, बेवजह दौड़ भी पड़े, नतीजा ?


तो जिसने आपको जीवन, सुख आनंद दिया, उस धरा को, प्रकृति को आज उसके दिन पर आप क्या उपहार देने जा रहे हैं? इतना तो कर ही सकते हैं ना, कि आज विश्व पृथ्वी दिवस पर हम सब यह प्रण ही ले लें, कि हर इंसां कम से कम दो पेड़ तो नीम, पीपल या फलों वाले अपने जीवन में ना सिर्फ लगाएगा बल्कि उनका पोषण, संरक्षण भी करेगा ताकि आपको, आपकी आनेवाली नस्लों, पशुपक्षियों को शुद्ध हवा, छाँव, फलफूल मिल सकें और फिर से आपको अपनी ओज़ोन लेयर के छेद की चिंता ना करना पड़े।
तो मिलते हैं कल, तब तक जय जय जै रामजी की ।

डॉ भुवनेश्वर गर्ग


Share:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *