करोना काल, लॉकडाउन 2.0 का उन्नीसवां दिन, गरीबों के इलाज और भूख के रास्ते चंदा बटोरते लोग

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कल हमने बात की ही थी कि वैश्विक त्रासदी और ग्लोबल लॉकडाउन के इम्पेक्ट के नाम पर दुनिया भर की लुटेरी संस्थाएं अब बहुत ही जल्द भुखमरी की भविष्यवाणी लेकर चंदा मांगने और धन बटोरने सामने आने वाली हैं। और इसीलिए आज अगर आप खबरिया संचार तंत्र खंगालें, तो आपको कई प्रायोजित मीडिया समूह इसी बात की रूपरेखाएँ खींचते दिखेंगे।
और इसीलिए बहुतों को छोड़, हम सिर्फ उन चंद खबरिया मैनेजरों की बात आज कर रहे हैं, जो इस खेल में सबसे आगे हैं, और जिन्होने पिछले कुछ सालों में ना सिर्फ अपनी विश्वसनीयता खो दी है, अपितु विलासिता, अमीरी और प्रायोजित झूठ को सच बता बताकर परोसने में, आज यह सबसे आगे है। इनके शीर्ष मैनेजरों के, एक धर्म, वर्ग विशेष से होने और उन के चंगुल में फंस जाने से, इनका गरीब और भारत विरोधी रूप हर प्रचार प्रसार में झलकता दिखता है और यही चिंता हमने कल जताई थी कि, भुखमरी के, खाद्यान्न की कमी के नाम पर और ग़रीब देशों की मदद के नाम पर, लूटने वाले, विकसित देशों से चंदे बटोरने वाले, ढेरों समूह आज दुनिया भर में सक्रिय हो गए हैं, यह सारे समूह, गरीब की रोटी के नाम पर महंगे आलिशान आफिसों से काम और महंगे फाइव स्टार होटलों से महंगी मीटिंगे करते हैं। और अब अपने प्रायोजित मीडिया समूहों के जरिये यह लोग विश्व को डराने, चंदा बटोरने का काम शुरू कर चुके हैं।

बीबीसी लिखता है कि, बीमारी, लॉकडाउन, युद्ध, राजनीतिक अस्थिरता और सूखे के कारण द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से दुनिया पहली बार भुखमरी के सबसे भीषण दौर से गुजर रही है। मानवीय आपातकाल की भविष्यवाणी करने वाले अमरीका के एक संगठन फैमाइन अर्ली वॉर्निंग सिस्टम के अनुसार वर्ष 2019- 20 में 46 देशों के साढ़े आठ करोड़ लोगों को आपात खाद्य सहायता की आवश्यकता होगी। इंडिया टीवी की एक ख़ास खबर की हेडलाइन है कि संकट काल में भुखमरी के नाम पर गरीबों की रोटी हड़पने वाले ऐसे हुए बेनकाब।
आजतक लिखता है, भुखमरी के खिलाफ दुनिया को तत्काल कदम उठाने की जरूरत: WFP, यह क्लेम करते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम के अनुसार कोविड-19 की वजह से आर्थिक क्षेत्र में आई गिरावट इस वर्ष में दुनिया में तीव्र खाद्य असुरक्षा का सामना करने वाले लोगों की संख्या लगभग दोगुनी हो सकती है। यानि महामारी से दुनिया भर में भुखमरों की संख्या 26.5 करोड़ पहुंच सकती है।

हो सकता है कि बढ़ती जनसँख्या, घटते संसाधन, पानी और कृषि उत्पादों की कमी और रोजगार की अनिश्चितता के चलते संकट आयें, पहले भी आएं हैं, लेकिन सिर्फ डराने, चंदा बटोरने और लूट के हिस्से बांटने की जगह, अगर यही सब सभी सक्षम, सम्पन्न और मीडिया नियंत्रक लोग, जनसँख्या को नियंत्रित करने, उनकी उचित शिक्षा, उपचार और बेहतर जीवनयापन के लिए काम करें तो? क्या इनमे से किसी को भी आपने कभी लोगों को ज्यादा बच्चे पैदा ना करो जैसे कैम्पेन चलाते देखा है ? भले ही इन्हे नोबल तक मिल गया हो, लेकिन यह लोग ऐसे स्थायी इलाज बताने की जगह, सरकारों को, ख़ास तौर पर भारत की सरकार को, गरीबों को ढेर पैसा और सुविधाएं देने की बात करते दिखेंगे और दिख रहे हैं।

और इसीलिए अब समय आ गया है जब हमें ही लोगों को जबाबदेह बनाने की और प्रयास करने होंगे, वोटबैंक तुष्टिकरण को गंभीर अपराध बनाना होगा और अपनी औलाद की जिम्मेदारी उसी के माँ बाप को उठाने के कानून बनाने होंगे, हमें और भी तरीके ढूंढने होंगे कि जब संकट हो, तब क्या करें और कुछ भी उपलब्ध ना हो, तो क्या करें, किन वेजिटेशन्स को, पौधों को भोजन के रूप में उपयोग किया जा सकता है, ताकि गरीब भूखे बच्चे बीमारी का शिकार ना हों, या किसी अनजान जहरीले फल पौधे खाकर असमय ही अकाल मौत का शिकार ना हो जाएँ?

हम लोगों को अपने आसपास की जलवायु, पेड़पौधों का भी ज्ञान, अपनी बिसरा दी गई किताबों में ढूंढना होगा और अब मोहन जोदड़ो और हड़प्पा या ट्विंकल ट्विंकल की जगह, अपनी क्षेत्रीय भाषा, संस्कार, प्रार्थनाएं भी हमारी नस्लों और आने वाली पीढ़ियों को सिखाने के रास्ते ढूंढने होंगे, क्योंकि पेज थ्री की अंधी दौड़ में, हमारे बच्चों के शरीर खोखले हो चुके हैं और उनके मनमस्तिष्क पर कॉंवेंटाई अंग्रेजी चश्में का स्थायी प्रभाव पैबस्त हो चुका है।

जब पेड़पौधे, पशुपक्षी बिना किसी अतिरिक्त सहायता के, मानव के छोड़े गए भोजन, बर्बादी के बाद के उपलब्ध संसाधनों से अपना जीवन चला सकते हैं तो ?
माना कि भोजन के बिना जिन्दा बचना बेहद मुश्किल है और यह किसी व्यक्ति के वज़न, शरीर पर जमा चर्बी और अन्य शारीरिक स्थितियों पर निर्भर करता है, पुरुषों की तुलना में महिलाएं इस मामले में अधिक जुझारू होती हैं, लेकिन आमतौर पर यदि वज़न, सामान्य बॉडी मास इंडेक्स यानी बीएमआई से आधा रह जाए तो अधिकांश लोगों की मृत्यु हो जाएगी। यह स्थिति 45 से 61 दिनों तक बिना भोजन के रहने पर होती है। और इतने प्रयास तो मानव कर ही सकता है, कि अपने घर में, या आसपास या खुली जगहों पर खुद के, दूसरों के या पशु, पक्षियों के खाने लायक पेड़ पौधे ही लगा दे? और चलते चलते एक बार बात फिर इम्यून सिस्टम की, कैसे बढ़ाएं अपनी अंदरूनी ताकत? कई लोग आपको सप्प्लीमेंट्स और विटामिन्स के कमर्शियल वर्ल्ड की और ले जाएंगे लेकिन सबसे जरुरी बात, फिर वही, जो हम सबको बार बार कहते हैं, कि कोई भी शुद्ध सात्विक पौष्टिक प्राकृतिक भोज्य पदार्थ सर्वोत्तम है, और दवाई के रूप में ली गई कोई भी महंगी महंगी से चीज भी शरीर के लिए, उसके अंदरूनी तंत्र के लिए हानिकारक ही साबित होगी।

हमारी आँतों में, ख़ास तौर पर बडी आंत में, सात सौ से भी अधिक किस्म के बैक्टीरिया, सहयोगी परजीवी की तरह रहते हैं और कई अन्य जरुरी न्यूट्रिएंट्स के साथ साथ बेहद जरुरी विटामिन “के” और विटामिन “बी”, खास तौर पर बायोटीन्स का, भी निर्माण करते हैं और यह बेहद जरुरी तत्व आपको किसी भी अन्य भोजन या दवाई के द्वारा प्राप्त नहीं हो सकते हैं। फिर संकट हो तब भी और जब संकट ना हो तब भी, आम इंसान क्या करें और उसे क्या खाना चाहिए, क्या नहीं, यह हम आपको कल के लेख में बताएँगे, विस्तार से। मिलते हैं कल, तब तक जै रामजी की।

डॉ भुवनेश्वर गर्ग
डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक
मंगलम हैल्थ फाउण्डेशन भारत


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