लॉकडाउन ४ का पाँचवाँ दिन, WHO की बदलती परिभाषा के नाम!
अभी तक विश्व स्वास्थ्य संघटन यानि WHO के क्रियाकलापों को लेकर जनसाधारण को लगता था कि इसका अर्थ “किसे परवाह” है (WHO CARES?) लेकिन अब यह परिभाषा बदलती नजर आ रही है। आज, भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी के नेतृत्व में, कर्मठ, संवेदनशील स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्ष वर्धन ने WHO के कार्यकारी अध्यक्ष का पदभार संभाल लिया है, तो कहा जा सकता है कि हाँ, हम परवाह करते हैं, “WHO केयर्स” । इस अप्रतिम गौरवान्वित काल में, जबकि सारा विश्व करोना के नरसंहारक प्रकोप से डरा सहमा, अपने भविष्य के लिए चिंतित, घरों में बंद है, तब समस्त प्राणिजगत के लिए, यह पल एक बेहद सुखद परिवर्तन लेकर आएगा, ऐसी उम्मीद इसलिए भी की जानी चाहिए क्योंकि, अपनी निःस्वार्थ निष्पक्ष नीतियों, वैश्विक कुटुंबकम परम्पराओं की बदौलत, भारत अनंत काल से, ना सिर्फ सभी की यथासंभव मदद करता आया है अपितु, सक्षम और सार्थक नेतृत्व क्षमता के चलते, स्वास्थ्य की सबसे बड़ी, लेकिन राह भटकी संस्था को, दलाल व्यापारिक मेडिकल मैनेजरों के जाल से मुक्त करके “शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्” के, अपने शताब्दियों से स्थापित सूत्र को भी सार्थक करेगा। सम्पूर्ण प्राणी जगत पर आये, इस घोर संकट काल में, आपदा में आविष्कार के लिए जाने जाते, भारत के खानपान, आचार विचार की परम्परा, सूर्य नमस्कार और योग मेडिटेशन के स्वास्थ्य उपाय, गमछे से नाक मुंह ढंकने और हाथ पैर धोकर घरों में प्रवेश करने की आदत और प्रकृति के पास रहकर ताजा भोजन करने जैसे सभी सिद्धांतों को, आज समूर्ण विश्व ने एकमत से स्वीकार कर लिया है, वो उनका अनुसरण भी करने लगा है।
यही नहीं, भारतीय आयुर्वेद, नेचुरल, हर्बल उपचार पद्धतियों के लिए भी, आज यह एक ऐसा विलक्षण अवसर है, जब इनके ज्ञान को, देश के चिकित्सा केंद्रों में मौजूद, ढेरों मरीजों पर सार्थक उपयोग करते हुए, सटीक डाटा बनाकर, उपचार के बेहतर उपायों में सम्पूर्ण विश्व की स्थापित पद्धतियों में शामिल करवाया जा सकता है। यूँ भी, नेचुरल केयर और भारतीय हर्बल्स की पेठ अब सम्पूर्ण दुनिया में बढ़ती भी जा रही है, किन्तु इनका उचित दस्तावेजीकरण और संस्थागत प्रमाणीकरण ना होने से इनकी विश्वसनीयता पर सदियों से, ढेरों देसी विदेशी, स्वार्थी उंगलियां उठती रही हैं। उम्मीद की जाना चाहिए कि इस कदम से ना सिर्फ इनके फर्जी सेल्फ क्लेम्स वाले शर्तिया उपचारों पर लगाम लगेगी, भारतीय चिकित्सा पद्धति की छवि भी सुधरेगी और साथ ही उसे विश्वपटल पर भी वो स्थान मिलेगा, जिसका वो नारद, चरक, शुश्रुत संहिता, और नालंदा तक्षशिला के समय से ही हकदार भी है।और वैसे भी, आपदा में आविष्कार के लिए भारतीयों से बेहतर, इस दुनिया में किसे जाना जाता है? सहयोग और समर्थन ना मिल पाने की वजह से, दुनिया इन्हे, एक जुगाड़ की संज्ञा देती है, परन्तु इन उपयोगी जुगाड़ों, इन खोजों को, अपने यहाँ पेटेंट करा कर खुद ढेरों धन कमा ले जाती है। जबकि इन पर हक़, सिर्फ इनके सिरफ़िरे खोजकर्ताओं, देश की गरीब जनता और विशाल भारत देश का है! आज सम्पूर्ण विश्व में, जलने से होने वाली विकृतियों और मौतों की बात हो, या डायबिटीज के लाइलाज जख्मों और गेंग्रीन की वजह से होने वाली विकलांगताओं की, दुनिया भर के शोध संस्थान, बेहिसाब फंड्स के बावजूद स्किन और स्किन की लेयर्स को पुनर्जीवित करने की विधा नहीं खोज पाए हैं, और वो कृतिम स्किन या स्किन ग्राफ्ट में ही उलझे रहकर, विकृतियों और विकलांगताओं को सुधारने वाली जुगाड़ें करने में लगे हैं, जबकि आपके इस डॉक्टर ने यह समस्त उपलब्धियाँ अपने बेहद सीमित संसाधनों में, समस्त सरकारी अड़चनों के बावजूद हासिल कर ली है। इस तकनीक से, जले हुए मरीज बिना एंटीबायोटिक्स, बिना दर्दनिवारक दवाओं और बगैर स्किन ग्राफ्टिंग के, बहुत ही कम समय में बिना किसी विकृति के ठीक हो रहे हैं, लेप्रोसी यानि कुष्ठ के दशकों पुराने लाइलाज जख्म भी भरने में सफलता प्राप्त हुई है, गेंग्रीन के मरीजों में एम्प्यूटेशन भी नहीं करने पड़ रहे हैं और लाइलाज सोरिएसिस, स्किन कैंसर के मरीजों को भी इस तकनीक से अप्रतिम स्वास्थ्य लाभ प्राप्त हो रहा है। (इन सबसे सम्बंधित जानकारियां नीचे दिए गए फेसबुक पेज पर उपलब्ध हैं)प्रधानमंत्रीजी की अगुवाई में विश्व स्वास्थ्य संघटन का अध्यक्ष बनने पर, शायद अब देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में व्याप्त, पुरानी ढर्रेशाही से इतर, कुछ दूरगामी सार्थक सुधार हों, शायद अब सरकार, इन जुगाड़ों और इनके सिरफिरे खोजियों को एक व्यवहारिक संस्था मानकर उनका उत्साहवर्धन करे और उन्हें यथोचित मानसम्मान और धन देकर उनकी होंसला अफ़्जाई करे। वैसे भी प्रधानमंत्रीजी कई बार सार्वजानिक मंच से इन्नोवेटर्स के लिए देश के खजाने खोलने की बात कह चुके हैं, फिर कमी कहाँ रह जाती है? यह कड़वा सच भी आज किसी से छुपा नहीं है। ढेरों जनकल्याणकारी खोजें, अभी भी, बदलती रुत का इन्तजार कर रहीं हैं, जिनको भी, इसरो प्रमुख की तरह, अपनी पीठ थपथपाये जाने का इन्तजार है । मिलते हैं कल, कुछ नयी बातों के साथ, तब तक जय श्रीराम ।
डॉ भुवनेश्वर गर्ग डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक मंगलम हैल्थ फाउण्डेशन भारतसंपर्क: 9425009303 Email: drbgarg@gmail.com https://www.facebook.com/DRBGARG.ANTIBURN/