करोना कॉल कांड, लॉकडाउन 3.0 का पाँचवाँ दिन, अमेरिका और चीन के बीच फंसे विश्व स्वास्थ्य संघटन “WHO” के नाम
पहले किसी अमीर देश से कोई पूछता था कि कैसे हो? तो वो कहता था, WHO CARES मतलब किसे परवाह है, लेकिन गरीब देश कहता था कि “WHO” CARES FOR US लेकिन आज जबकि विश्व स्वास्थ्य संघटन यानि WHO, चीनी दुष्प्रभाव के चलते, बेहद शर्मनाक स्थिति में है, तब वाकई विश्वपटल पर चिंता की लकीरें स्पष्ट देखी जा सकती हैं। और इसीलिए हमने मार्च के प्रथम सप्ताह में ही इस चीन प्रायोजित बीमारी के बारे में विस्तार से लिखा था और आज फिर हम वही बात कर रहे हैं, दिसंबर के पहले सप्ताह की, जब चीन के वुहान शहर में मानवता के विनाश और उसके फलस्वरूप वैश्विक बाजार पर अपनी पकड़ और कुत्सित व्यापार की नई नई परिभाषाएं चीनी आकाओं द्वारा WHO के प्रमुख को मोहरा बना कर गढ़ी जा रहीं थीं और ना सिर्फ चीन और WHO ने इस बीमारी को दुनिया भर से छिपाएं रखने और बीमारी पूरे विश्व में फ़ैल जाने तक सभी बिकाऊ प्रचार प्रसार तंत्रों का बेहद कुशलता से उपयोग किया था अपितु चीन ने तो कहना ना मानने वाले, और इस खेल को दुनिया को बताने के लिए अड़े, अपने कई कर्मठ नागरिकों, साइंटिस्टों और डाक्टरों को भी इस दुनिया से रुखसत कर दिया था, हालांकि उनमे से कई कर्तव्यपरायण लोग अपनी जान पर खेलकर भी दुनिया को आगाह कर गए थे, इसलिए भी इस षड्यंत्र की पोल खुलनी शुरू हुई थी।
इस बीमारी और इसके फैलाव के साथ साथ, अब शायद विश्व के गरीब यह समझने लगें कि किस तरह बड़े अमीर देश और धनपिपासु घराने, अपने व्यापार और धनलोलुपता के लिए कितनी तरह की कुचेष्टाएँ करते रहते हैं, हम लगातार लिखते आ रहे हैं कि, गरीब देशों को सस्ती दवाई, उपकरण के नाम पर अपनी मुठ्ठी में रखना और बीमारियां पैदा करने और फिर उनका एक्सक्लूसिव पेटेंटेड उपचार उपलब्ध करवाने में इनकी घोर माहिरी रही है। यह जानते हैं कि इन देशों के डाक्टरों को कैसे वश में करना है, किस तरह से डाटा संग्रह करना है और कैसे अपने ख़राब प्रोडक्टों को छद्म दस्तावेजों के जरिये अच्छा साबित करके खपा देना है और इसके लिए इन्हे विश्व के गरीब देशों की अथाह जनसंख्यां हमेशा ही चाहिए थी और आज भी इसीलिए इनके प्रायोजित प्रचार तंत्र, पुरस्कार प्रदाता संस्थाएं और दानवीर लोग हमेशा उनको इनाम और सम्मान देते दिखेंगे जो षड्यंत्रकारी हों या भारत या अन्य गरीब देशों की गरीबी, वेश्यावृत्ति या बालश्रम का प्रचार करते दिखें, या फिर देश के वीर जवानों पर पत्थर फेंकते अपराधी हों। इनकी बेहद जरुरी आवश्यकता भी यही है कि इतने बड़े और नैचुरल संसाधनों, श्रमिक मेहनती हाथों और बेहद बुद्धिमानो से भरे पड़े देश में हमेशा प्रशासकीय अव्यवस्था बनी रहे, लोग ढेरों बच्चे पैदा करके ,अनपढ़, गरीब और व्यवस्था पर बोझ बने रहें ताकि यह अपने हित साधते रहें और आजादी के बाद भी इस देश के १३० करोड़ लोगों की मूर्खता के चलते, यहाँ पैदा होने के बाद भी, आज सब आपस में लड़ रहे हैं और अपने देश संस्कृति और धरोहरों को बचाने की बजाय, अपनी सरकार का आदेश मानने की बजाय, अपने ही कर्मठ सेनापति का अपमान और अवहेलना कर रहे हैं।
एक बेहद स्पष्ट पैटर्न है इन सबके काम करने में, फिर चाहे वो आज़ादी पश्चात् देश पर राज करने वालों की कार्यशैली हो या चीन परस्त वाम की या फिर फोर्ड, मेग्सेसे, पुलित्ज़र और नोबल विजेताओं की। अगर कोई मूढ़ भी देखे, तो यह समझ सकता है कि पाल नहीं सकने वालों को वोट बैंक बनाकर ढेरों बच्चे पैदा करने की सलाह देना कैसे किसी देश की व्यवस्थाओं के लिए हितकारी है? फिर उन्हें मुफ्तखोरी की आदत पड़वा देना और छह हजार रुपये महीने या बहत्तर हजार सालाना देने के ढपोलशङ्खी लोकलुभावन फर्जी वायदों के जरिये सरकारें बना कर, देश लूटना, अपनी अपनी अट्टालिकाएं भर लेना, अपने दरबारियों, चापलूसों को पद महिमा मंडित कर, योग्य को नकारना और उसे तिरस्कृत करना कैसे किसी राष्ट्र के लिए बेहतर हो सकता है, लेकिन इनकी कार्यशैली ऐसी ही रही है।
सोचिये, अगर इस देश का बचाखुचा जनमानस भी अपने राष्ट्र और राष्ट्रप्रमुख से प्रेम करने लगे तो? जो पाल नहीं सकता, वो बच्चा पैदा न करे तो? जो कमा नहीं सकता और भीख सब्सिडी पर पलता हो, उसे वोट देने का अधिकार न हो तो? जो आपके देश का, राष्ट्रप्रमुख सेनाप्रमुख वीर सैनिकों का अपमान करे, उसे जनता खुद चौराहों पर स्वान मौत उतार दे, तो?
पर क्या ऐसा होगा? और अगर अब भी जनता नहीं चेती तो सीरिया और काश्मीर इस देश में जगह जगह दिखाई देंगे, यह तय है।
कल और आगे की बात करेंगे, अमेरिका और चीन के बीच फंसे विश्व स्वास्थ्य संघटन “WHO” की भी !
तब तक जय श्रीराम!
डॉ भुवनेश्वर गर्ग
डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक
मंगलम हैल्थ फाउण्डेशन भारत