लॉकडाउन 2.0 का तीसरा दिन और भविष्य के लिए तेय्यार होने का समय

दो सुइयों के बीच जिंदगी, क्या क्या खेल दिखाए।
नया पुराना नाटक करता, ये वक्त गुजरता जाए ।।
राजे रजवाड़े निपट गए, मध्य युग में सम्पूर्ण यूरोप पर राज करने वाला रोम नष्ट होने के कगार पर आ गया। जिनके साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नहीं होता था, उस के उत्तराधिकारी अपने महल में कैद हैं। जो स्वयं को आधुनिक युग की सबसे बड़ी शक्ति समझते थे, उस रूस की सीमा बन्द है। जिनके एक इशारे पर दुनिया के नक़्शे बदल जाते थे, उस अघोषित चौधरी के अमेरिका में लॉक डाउन है और, जो आने वाले समय में सबको निगल जाना चाहते थे, वो चीन आज मुँह छिपाता फिर रहा है और सबकी गालियाँ खा रहा है। एक छोटे से परजीवी ने सारे विश्व को घुटनो पर ला दिया है।
बेहतरी इसी में है कि कम से कम अब तो मनुष्य सच को स्वीकार कर इसके साथ जीना सीखे क्योंकि अब जीने का तरीका बदलने का, प्रकृति से जुड़ने, उसे संवर्धित करने का वक्त आ गया है। अगले 2 साल कम से कम एकदम सामान्य जिंदगी की अपेक्षा करना मुश्किल है। मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग, सैनेटाइजर और बार-बार हाथ धोना, ये जिंदगी के नए हिस्से होंगे। ऑफिस, स्कुल, भीड़भाड़ वाले इलाके और काम के बारे में अब बहुत गंभीरता से सोचना होगा, खर्च पर लगाम और संयम से जीने, फिटनेस, इम्मुनिटी, ताजगी पर ज्यादा ध्यान देना होगा, पहले जो समय, धन और दिमाग आपका फिजूलखर्ची में जाता था, अब उसके सदुपयोग का वक्त आ गया है।

बाकी इस लॉकडाउन 1.0 के बाद, लॉकडाउन 2.0 के बाद क्या कोरोना वायरस बदल जाएगा, नहीं, इससे हमें सिर्फ कुछ समय की मोहलत मिल रही है। हमें जिंदगियां बचानी भी है और जिंदगियां दोबारा पटरी पर भी लानी है। आज नहीं तो कल, लॉकडाउन खुलेगा तो सही, लेकिन शर्तों के साथ खुलेगा, फिर कहीं वायरस का फैलाव होगा, फिर कहीं मनुष्य अपने घरों में बंद होगा और ये तब तक चलता रहेगा जब तक कि हमें इससे चमत्कारिक ढंग से मुक्ति ना मिल जाए या फिर इसकी वेक्सीन, दवाई ना बन जाएं।
हमें काफी कुछ अब जापान से सीख लेना चाहिए, वो बार बार बर्बाद होते हैं, प्राकृतिक आपदाओं से, तो कई बार मानवनिर्मित विपदाओं से, लेकिन राष्ट्र को समर्पित जनमानस पूरी ताकत, निष्ठा से फिर नवनिर्माण में जुट जाता है। हमें लड़ना भी सीखना होगा, चारों तरफ दुश्मनों से घिरे, छोटे से देश इजरायल से,क्योंकि हमारे शांत, स्वभाव को हमारी कमजोरी मान, हमे भीरु समझ लिया गया है।
हालांकि, जापान इजरायल जैसे बेहद अनुशासित देशों और भारत जैसे घोर अनुशासनहीन देश की आपस में कोई तुलना नहीं हो सकती लेकिन बिखरे, बचे खुचे देश, धर्म और संस्कृति को बचाने का अब यही एक रास्ता है, आज़ादी के बाद राष्ट्र निर्माण का जो मौका, गद्दार, स्वार्थी तिकड़ी के चलते, इस देश ने, हमने गंवा दिया था, अब हमें ये दोबारा मिला है तो इसे किसी भी हाल गंवाना नहीं है, और अब तो सौभाग्यवश हमारे पास मोदी जैसा राष्ट्रनिर्माता भी तो है, जिसे सारी दुनिया आशा से देख रही है।
तो क्या करें:
राष्ट्र, प्रकृति, धरती के लिए समर्पण संवर्धन और संरक्षण, अपनी भूमिका का पूरी क्षमता से निर्वाहन, लेने से ज्यादा देने की भावना, और सही को सही कहने, गलत को गलत कहने की हिम्मत । हमें हर उस अचल निःस्वार्थ पेड़ से त्याग और बलिदान सीखना चाहिए, जो आपसे कुछ नहीं लेता, लेकिन वो आपको जीने के लिए, छांव, ऑक्सीजन, फल देता है पूर्णतः निशुल्क और अंत समय खुद मर कर, आपके विसर्जन के लिए अपना शरीर यानी लकड़ी भी दे जाता है, अब आप सोचिये की ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना कहलाने लायक क्या कर्म करके आप इस दुनिया से विदा होंगे ?
चलो फिर से लौटा लाएं
अपने वो गोल्डन ज़माने,
उगायें ईख, जौ, बाजरा,
मक्का और सरसों के दाने!
सी लें फिर से उधड़े हुए
अपने उन फलसफों को और
बचाकर पानी, हरियाली,
विरासत दे जाएँ प्रियजनो को ।
मिलतें हैं कल, कुछ नई सोच नए सुझाव लिए, तब तक जय राम जी की।