कल, आज और कल को समर्पित, करोना कालखंड 2.0 का छठवां दिवस!
अब जबकि देश दुनिया, करोना से पूर्णतः ग्रसित, त्रस्त और पस्त होती दिख रही है, तब आशावान पीढ़ी के काँधे चढ़ी मानवता, संस्कारवान सनातनियों को मुस्कुराती भी दिख ही रही होगी, गोया कि कह रही हो, कि है वत्स, तुझे इतनी छोटी सी बात सीखने के लिए इतने साल चाहिए थे? प्रकृति और धरा भी मानो इठला इठला कर कह रही हो, कि मुझे देख, मेने तो कभी किसी का बुरा नहीं किया और इसीलिए सृष्टि ने आज एक अदृश्य से कीटाणु के जरिये मेरी तकलीफों को कैसे और कितना कम करवा दिया और मूकपशु, पंछी, पेड़पौधे, नदी तालाब, सूर्य, हवा, धरती, सब आज कितने खुश हैं कि चलो, कम से कम अब तो मानव को अकल आई।
पर क्या वाकई अकल आई होगी मानव को?
आज कोरोना वायरस के संक्रमण से लोग भयाक्रांत हैं। पाश्चात्य जीवनशैली से खोखले हो चुके मानव शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता क्षीण सी हो गयी है। भारतीय संस्कृति को भूलकर लोग आधुनिक बनने की होड़ में लगे हुए हैं। जबकि हमारे यहां सूर्योदय पूर्व जागरण के पश्चात स्नान कर, उदय होते सूर्य को जल देने का नियम था। उदित होते सूर्य की किरणों का शरीर पर पड़ना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। मशीनी जीवनशैली जीने वाले ज्यादातर लोग या तो सुबह देर से उठते हैं या फिर उठकर योग-व्यायाम करने की अपेक्षा जिमखाना जाना अधिक पसन्द करते हैं। प्रातःकाल खुले वातावरण में बैठ कर योग-व्यायाम एवं ध्यान करने से शरीर, मन, बुद्धि तथा आत्मा की शुद्धि होती है। व्यक्ति स्वस्थ एवं निरोगी रहता है। सकारात्मकता का अनुभव करता है। बन्द जिमखानों में एक ही मशीन पर तमाम लोग पसीना बहाते हैं और अशुद्ध हवा का सेवन करते हैं। इससे कई तरह की बीमारियों और संक्रमण का खतरा पैदा हो जाता है। पश्चिम की ये नकल कितनी नुकसानदायक है ये समझना बहुत आवश्यक है।
लेकिन कल तक, जीवन की आपाधापी में उलझा, खुद के लिए जीता, धनसम्पत्ति, खानाखजाना जोड़ता, खुदगर्ज, लालची मनुष्य क्या वर्तमान के आज से, आने वाले कल के, सबक सीख पाऐगा? क्या वो आने वाले कल के लिए खुद को, अपनी नस्ल, समाज और देश को तैयार करने के लिए कृतसंकल्पित होगा? क्या उसने संकट के लिए तैयार रहना और कम से कम साधनों से ज्यादा से ज्यादा परिणाम लेना सीख लिया होगा? क्या वो अब वापिस अपनी हजारों हजार साल से सुस्थापित सनातनी परपम्पराओं का, जिसे आज पूरा विश्व सराह रहा है, सम्मान कर उनकी और लौटेगा या अभी भी पाश्चात्य फूहड़ता, बीमार खानपान और अनर्थक, बीमारू नाकारा पद्धतियों में उलझा रह, खुद को आधुनिक और अपने गौरवशाली सनातन पंथ को दकियानूसी कहता रहेगा?
जिंदगी में सुख दुःख, उतार चढ़ाव, परेशानियां समाधान तो दिनरात, धूपछाँव की तरह हैं, और अगर आप खुद को मजबूत रख, दुःख में भी आनंद उठा सकतें हैं, अभाव में भी खुश रह सकते हैं, तो यकीं मानिये, कि आप जिन्हे कठिनाइयां समझ रहे थे, वो हो सकता है कि भगवान ने आपको, आपकी शक्ति, हिम्मत बढ़ाने के लिए ही दी हों? आप जिन्हे उलझन, परेशानी, तकलीफ समझ रहे थे, हो सकता है, वो भगवान आपकी परीक्षा लेने, आपको बुद्धिशाली, अनुभवी बनाने के लिए आपको दे रहा हो? आखिर और कैसे कोई सबक सीखता है? बालक, छात्र या नवदम्पत्ति ? परीक्षाओं, मुसीबतों, अनुभवों और संकट से रूबरू होने पर ही ना ? तो इन सबक से सबक लीजिये और अपने ऊपर छाये अवसाद, अलगाव और अन्धकार को झटक कर अलग कर दीजिये, तब यही परेशानीयाँ, तकलीफ़ें, सबक आपके लिए उन्नत सीढ़ियां बन जाएंगी, और जब आप अंधकूप से निकल, बाहर आएंगे तो एक नई रौशनी, एक नया दिन आपका इन्तजार कर रहा होगा और यही तो आपके इष्ट, करोना काल के जरिये, आपको सिखाने, जताने, जगाने के लिए कर रहे हैं।
आपदाएं आती रही हैं, आती रहेंगी लेकिन मानव सभ्यता हर त्रासदी से सबक सीख उठ खड़ी होती है फिर से नए आविष्कार करने और आज आपके लिए यही है वो समय, जब आप भी आपदा में जिन्दा रहने के नए नए सबक सीख सकते हैं और इसलिए कुछ नया करने, अपने घरों में रह कर संचय, संयम, सेल्फ डिसिप्लिन फॉलो करें और न्यूनतम संसाधनों में कैसे फिट रहना है यह खुद भी देखे और अपने परिजनों, बच्चो को भी सिखाये, समझाए ताकि वो इससे भी विकट परिस्थिति में रहने के लिए खुद को तैयार कर सकें, भोजन का, शुद्धःपेय जल का दुरूपयोग ना हों और देखें कि आपके घर के आसपास बेवजह गंदगी न इकठ्ठा हो जिससे कि और बीमारियां न फैलें और मूक पशुओं, पंछियों को भी उनका हक़ मिल सके क्योंकि उनकी अवहेलना से ही आज चीन से होते हुए पूरे विश्व का ये हाल हो रहा है ! भोजन का दुरूपयोग न हो और बचे ना, बच भी जाए तो फ़िके ना, किसी के काम आ जाए और नहीं तो बेजुबान जानवर का ही पेट भरे ! पैनिक ना करें और वायरस संक्रमण की श्रृंखला तोड़ने के लिए पूरे समर्पण, निष्ठां और नियम से सोशिअल डिस्टेंसिंग करें! अफवाहें ना फैलाएं और गैरजरूरी चीजों का बेवजह भण्डारण न करें।
और चलते चलते एक बार फिर, करोना की कुछ और बातें, वैज्ञानिकों ने अभी तक इस वायरस के तीन प्रकार ढूंढ लिए हैं, जो दुनिया के अलग अलग हिस्सों में अपना प्रकोप दिखा रहे हैं, और इसीलिए डॉक्टर्स, वैज्ञानिक, साइंटिस्ट इस बात पर तो फिलहाल एकमत हैं, कि यह बीमारी अभी जल्दी समाप्त नहीं होगी, और ना ही इसका कोई वेक्सीन बहुत आसानी से, कारगर तरीके से बनाया जा सकेगा। लेकिन जिन देशों ने, शहरों ने लॉक डाउन का सख्ती से पालन करवा लिया, वहां इसका प्रकोप नहीं के बराबर है।
तो घर में रहिये, सुरक्षित रहिये और अगले कम से कम दो साल के लिए, संयम, संचय और समन्वय के साथ जीवन के हर पल का आनंद लेते हुए, अपनी छूट चुकी ख्वाहिशें पूरी कीजिये, कुछ नया करने, सीखने की कोशिश कीजिये, जो कुछ भी आप करते आये हैं, उसके अलावा और हाँ, खुश भी रहिएगा।
मिलते हैं कल, तब तक जय रामजी की।