आइए ओणम के बारे में जानते हैं !

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डॉ अजय ओझा।

केरल में ओणम उनके प्रिय राजा महाबलि की याद में मनाया जाता है। ओणम की कहानी भगवान विष्णु और उनके वामन अवतार से जुड़ी है। लोक मान्यताओं और वामन पुराण के अनुसार केरल में एक महाप्रतापी राजा हुआ करता था जिसका नाम था बलि। बलि स्वर्ग के राजा इन्द्र के सौतेले भाई थे। महर्षि कश्यप की दक्षराज की 13 पुत्रियों समेत 17 विवाह हुए थे। उनकी पत्नी अदिति से उत्पन्न पुत्र देवता कहलाते थे और दिति से उत्पन्न पुत्र दैत्य। राजा बलि दिति के पुत्र थे। इस तरह देवराज इन्द्र और दैत्यराज बलि आपस में सौतेले भाई थे। बलि ने इन्द्र को हराकर स्वर्ग समेत समूचे पृथ्वी पर अधिकार कर लिया। देवता राज्यविहीन हो मारे मारे फिरने लगे। देवताओं के इसी कष्ट को दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने पहली बार मनुष्य के रूप में वामनावतार लिया था।

भाद्रपद शुक्ल पक्ष के द्वादशी तिथि को उतर भारत में वामन भगवान जन्मोत्स्व मनाया जाता है. वामन द्वादशी के अगले दिन त्रयोदशी को दक्षिण भारत में ओणम मनाया जाता है। इस तरह यह दोनों महापर्व आपस में बहुत जुड़े हुए हैं। ओणम उतर और दक्षिण भारत को जोड़ने का महापर्व भी है।

श्रीवामन अवतार की कथा

भगवान विष्णु महर्षि कश्यप की पत्नी और देवताओं की माता अदिति के गर्भ से वामन अवतार के रूप में अवतरित हुए थे। उनके अवतरण की कथा अति अद्भुत है। दैत्य राज बलि ने अपने गुरु शुक्राचार्य की सहायता से अपने सौतेले भाई इन्द्र को स्वर्ग के राज्य से च्युत कर दिया था। देवता मारे मारे फिर रहे थे और सहायता के लिये कभी ब्रम्हा जी तो कभी शिव जी से सहायता की याचना कर रहे थे। लेकिन उन्हें सहायता नहीं मिली। निराश देवगण सहायता के लिए विष्णु जी के पास पँहुचे। भगवान विष्णु उस समय ऋषि रुप में सिद्धाश्रम में तपस्या कर रहे थे। देवताओं की हिम्मत उन्हें साधना से उठाने की नहीं पड़ी। वे सहायता के लिए अपने पिता महर्षि कश्यप के पास पँहुचे। महर्षि कश्यप अपनी पत्नी अदिति के साथ सिद्धाश्रम पँहुचे। उन्होंने तपस्या रत भगवान विष्णु की ऋचाओं से अभ्यर्थना की। साधना में लीन भगवान विष्णु ने आँखें खोलीं और प्रसन्न होकर महर्षि कश्यप से वरदान माँगने को कहा। महर्षि ने उनसे अपनी पत्नी अदिति के गर्भ से पुत्र रुप में प्रकट होकर देवताओं की सहायता करने का वरदान माँगा। भगवान विष्णु तथास्तु कहते हुए माता अदिति के गर्भ से वामन रुप में प्रकट हुए। सिद्धाश्रम में उनका अवतार होने के कारण यह क्षेत्र वामनाश्रम भी कहा जाता है। कालान्तर में इसी सिद्धाश्रम के कुलपति महर्षि विश्वामित्र ने यज्ञ करते हुए भगवान राम की सहायता से ताड़का, मारीच और सुबाहु का वध करवाया था।

राजा बलि यज्ञ कर रहे थे। भगवान वामन यज्ञस्थल पर पँहुचे। यज्ञस्थल पर मौजूद सभी लोग भगवान वामन का मोहित रुप देखकर अभिभूत थे। राजा बलि ने भगवान वामन से दान माँगने को कहा। भगवान वामन ने वचनबद्ध करते हुए राजा बलि से साढ़े तीन डेग भूमि दान में देने की याचना किया। बलि के हाँ कहते ही उनका स्वरूप विराट हो गया। उन्होंने तीन डेग में तीनों लोकों सहित समस्त ब्रम्हांड को नाप लिया। आधा पग शेष रहने पर बलि उनके शरणागत हो गये। उन्होंने अपने बड़े भाई इन्द्र को स्वर्ग का राज वापस लौटा दिया और बलि को पाताल लोक का स्वामी बना दिया। साथ ही बलि के वरदान में बँधकर उनके द्वारपाल बन गये। यह अद्भुत कथा आप लोग विस्तार से “वामन पुराण” में पढ़ सकते हैं। श्रीवामन अवतार की कथा महर्षि वाल्मीकि कृत ” रामायण” में भी बहुत रोचक ढंग से वर्णित है।

श्रीवामन न्याय

इस अवतार में भगवान विष्णु ने बिना युद्ध और रक्तपात किये अद्भुत न्याय किया और दो भाइयों के बीच सम्मानजनक ढंग से राज्य का बँटवारा किया और अपने लिए कुछ भी नहीं रखा. यह वामन न्याय है. इस अवतार के द्वारा भगवान विष्णु ने सत्य और न्याय के मार्ग पर चलने वाले ब्राह्मण के चरित्र को बहुत ही सुंदर ढंग से उद्घाटित किया है. वर्तमान समय और परिवेश में विश्व के सभी ब्राह्मणों को भगवान वामन के चरित्र का अनुकरण करना चाहिये.

ओणम

चूंकि राजा बलि की प्रजा उससे बहुत ही स्नेह रखती थी, इसीलिए श्रीविष्णु ने बलि को वरदान दिया कि वह अपनी प्रजा को वर्ष में एक बार अवश्य मिल सकेंगे। अतः जिस दिन महाबलि केरल आते हैं, वही दिन ओणम के रूप में मनाया जाता है। इस त्यौहार को केरल के सभी धर्मों के लोग मनाते हैं। कई लोग इस त्यौहार को कृषि से जोड़कर भी देखते हैं।

कैसे मनाया जाता है ओणम

दस दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में पहला और आखिरी दिन बेहद महत्वपूर्ण होता है। इस पर्व के दौरान एक विशेष नौका दौड़ का भी आयोजन किया जाता है। ओणम के दौरान महिलाएं घर में फूलों की रंगोली बनाती हैं। ओणम त्यौहार का एक और खास आकर्षण इस दिन बनने वाले विशेष व्यंजन भी होते हैं।

दक्षिण भारत के अहम पर्वों में से एक है ओणम। इस पर्व में दक्षिण भारत की परंपरा के पूर्ण दर्शन होते हैं। ओणम सध्या ओणम का अभिन्न अंग है, यह एक प्रकार भोज होता है जिसमें केले के पत्ते पर विभिन्न व्यंजन परोसे जाते हैं। ओणम सध्या में कई प्रकार के व्यंजन होते हैं जिनमें से अहम हैं केले के चिप्स, सांभर, सालन, रसम, पचड़ी आदि। इस दिन दक्षिण भारत के लोग अपने राजा बलि के आने की खुशी में घर द्वार साफ सुथरा कर दीपों से सजाते हैंं और नये वस्त्र धारण कर विभिन्न तरह के परंपरागत पकवान बनाते हैं। दस दिनों तक मनाये जाने वाले इस त्योहार के दौरान विभिन्न तरह के खेल आयोजित किये जाते हैं जिनमें नौका दौड़ सबसे लोकप्रिय है। ओणम के दिन शंख दर्शन को बहुत शुभ माना जाता है।

आप सभी मित्रों को ओणम महापर्व की हार्दिक बधाई !

परिचय :डॉ अजय ओझा ( लेखक)
संपादक सह ब्यूरोचीफ – संपूर्ण माया
चेयरमैन – भोजपुरी फाउण्डेशन
महासचिव – मगध फाउण्डेशन


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