क्यों कि यूपी में ठाकुरों की सरकार है।
एक बार सूबे में ठाकुरों की सरकार आ गई। यह तथा पिछली तमाम सरकारें ब्राहम्ण वोटों से आईं थीं, क्योंकि उनके एक वोट अन्य जातियों के नौ वोट के बराबर होते हैं, लेकिन ब्राह्मणों को धोखा देकर एक ठाकुर को मुख्यमंत्री बना दिया गया। प्रत्येक ठाकुर ने हर्ष फायरिंग शुरू कर दी। जिनके पास बंदूकें नहीं थीं वो पुलिस की तरह मुंह से ही ठाँय-ठाँय की आवाज निकालकर खुशियाँ मनाई। चारों तरफ ढोल-नगाड़े बजाये गये। सारे ठाकुर अपना काम धाम छोड़कर सात दिन तक राजकीय खुशी में डूबे रहे। अधिकारी से लेकर पल्लेदारी-मजूरी करने वाला ठाकुर भी खुश था कि ठाकुरों की सरकार आ गई। ठाकुर इतने खुश हो गये कि सड़क चलते किसी को भी मारने लगे थे, क्योंकि मुख्यमंत्री ठाकुर था।
अब सूबे में ठाकुरों की सरकार थी, क्योंकि मुख्यमंत्री ठाकुर था। अन्य जातियों के मंत्री भी थे, लेकिन उनकी सरकार नहीं थी, क्योंकि मुख्यमंत्री ठाकुर था। मंत्री अपनी जातियों के लिये कुछ नहीं कर सकते थे, क्योंकि मुख्यमंत्री ठाकुर था। उसने मंत्रियों को अपनी जातियों का भला करने पर रोक लगा दी थी, क्योंकि वह ठाकुर था। अब राज्य में चारों तरफ ठाकुरों का ही साम्राज्य था। अन्य जातियों को प्रताड़ित किया जाने लगा था। उनके विकास पर रोक लगा दी गई थी, क्योंकि मुख्यमंत्री ठाकुर था। गरीबों, दलित-पिछड़ों के लिये बनी योजनाओं को छीनकर ठाकुरों को दिया जाने लगा था। दूसरी जातियों को उनकी जमीनों से बेदखल किये जाने लगा था, और यह सारा काम ठाकुर कर रहे थे। इस काम में वे ठाकुर भी शामिल थे, जिनके पास खाने को पैसे नहीं थे और रहने को घर नहीं थे।
अब सूबे में चारों तरफ ठाकुरों का आतंक था। ठाकुर पुलिस वालों पर धुंआधार फायरिंग कर हत्या करने लगे थे। ठाकुर फोन पर किसी भी पान गुटखा वाले की भी मां-बहन करने लगे थे। पुलिस थानों में केवल ठाकुरों की ही एफआईआर दर्ज की जा रही थी। ठाकुर मुख्यमंत्री होने के चलते पुलिस इतनी सहज सरल हो गई थी कि अगर कोई ठाकुर थाने पहुंच जाता था तो एफआईआर लिखने से पहले उसके लिये दो सिपाहिन माइक पर बाकायदा स्वागत गीत गाती थीं। ठाकुरों के मामलों की एफआईआर दर्ज करने के साथ ही पुलिस दो-तीन एफआईआर एडवांस में भी दर्ज कर लेती थी कि भला ठाकुर साहब दुबारा किसी मामले के लिये थाने आने की परेशानी क्यों उठायेंगे? पुलिस ठाकुरों के एक कॉल पर दौड़ी चली आती थी, क्योंकि मुख्यमंत्री ठाकुर था।
अब चूंकि सूबे में ठाकुरों की सरकार थी तो सबसे ज्यादा प्रताड़ित पंडीजी लोगों को किया जाने लगा। उनकी जमीनें छीनकर ठाकुरों को बैनामा किया जाने लगा। पंडीजी लोगों को कश्मीर की तर्ज पर सूबे से भगाया जाने लगा। मुख्यमंत्री ठाकुर था तो उसने ब्राह्मण एवं अन्य जातियों के अधिकारियों को सख्त हिदायत दे रखी थी कि ठाकुरों के अलावा किसी अन्य का काम नहीं होना चाहिए। उसने डीजीपी, मुख्य सचिव से लगायत सारे पदों पर ठाकुर नियुक्त कर रखे थे, जिससे ठाकुरों का काम झट से हो जा रहा था। सारे ठेके-पट्टे ठाकुरों को मिल रहे थे। जो भी ठाकुर विधानसभा के सामने से निकलता था, उसे “कॉलर से खींचकर ठेका” दे दिया जाता था, क्योंकि मुख्यमंत्री ठाकुर था। अब पूरे राज्य में ठाकुर समृद्ध हो चुका था, अब उसको कहीं भी कोई परेशानी नहीं थी। सारे अधिकारी ठाकुरों के पैरोल पर थे, क्योंकि मुख्यमंत्री ठाकुर था। अब कोई ठाकुर भूखा नहीं मर रहा था।
सूबे का मुखिया एक ठाकुर के बनने के बाद ठाकुरों के हर काम मुफ्त में होने लगे थे। उनके बच्चों की फीस सरकार भरने लगी थी। सरकार साल भर का राशन भी ठाकुरों को मुफ्त देने के साथ सालाना उनके एकाउंट में 25 लाख रुपये डालने लगी थी। राशन के साथ देसी घी और आचार-पापड़ भी दिया जा रहा था। जिन ठाकुरों के घर नहीं थे, उनको किसी पंडीजी का घर छीनकर रजिस्ट्री करा दी जा रही थी। ठाकुरों के खेत में टाइल्स बिछवा दिये गये थे ताकि खेती के दौरान उनके पैरों में मिट्टी-कीचड़ ना लगे। उनके मेड़ सीमेंटेड करा दिये गये थे। पंडितजी एवं अन्य जातियों के खेत खोद कर छोड़ दिया गया था, मेड़ काटकर दूसरे में मिला दिया गया था, क्योंकि सूबे में ठाकुरों की सरकार थी। मेरे जैसे ठाकुर पत्रकार को सरकार ने “गट्टा पकड़कर सरकारी मकान” एलॉट कर दिया था, क्योंकि मुख्यमंत्री ठाकुर था और सूबे में ठाकुरों की सरकार थी।
(लेखक : श्री अनिल सिंह जी लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार हैं 9140191419, 9451587800, 9984920990)