क्या वी पी सिंह से बड़ी सामाजिक खाईं अटल व मोदी ने पैदा की?
जब जब आरक्षण की चर्चा होती है तो बहुत सारे लोग राजा मांडा विश्वनाथ प्रताप सिंह को एक खलनायक की तरह से याद करते हैं इसके अलावा उनको भारत में मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने वाला खलनायक बताया जाता है निश्चित रूप से उस दौर में विश्वनाथ प्रताप सिंह के उस फैसले से बहुत सारे छात्रों ने आत्मदाह कर लिया और एक बड़ी खांई समाज में पैदा हो गई परंतु ध्यान देने की बात यह है कि क्या ये फैसला केवल विश्वनाथ प्रताप सिंह का था?क्या विश्वनाथ प्रताप सिंह उस परिस्थिति में इतना बड़ा फैसला ले सकते थे जब उनके राजनीतिक दल राष्ट्रीय मोर्चा से ज्यादा सीटें कांग्रेस को मिली हो?राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार के प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह भले थे परंतु लोकसभा चुनाव के दौरान सर्वाधिक सीटें कांग्रेस को मिली थी और वो विपक्ष में थी, मेरे कहने का तात्पर्य है कि वह सरकार गठबंधन सरकार थी वह गठबंधन के दौर की शुरुआत थी। उस सरकार को एक तरफ वामपंथी राजनीतिक दलों और दूसरी तरफ उस भारतीय जनता पार्टी का समर्थन हासिल था जिसके अगुआ अटल बिहारी वाजपेई हुआ करते थे। भारतीय जनता पार्टी के लालकृष्ण आडवाणी ने विश्वनाथ प्रताप सिंह के इस फैसले का विरोध भले ही किया और राजनीतिक रोटी सेंकने का काम किया परंतु भाजपा ने सरकार से समर्थन वापस नहीं लिया तो क्या हिंदुस्तान का एक बड़ा वर्ग जो इस के लिए विश्वनाथ प्रताप सिंह को खलनायक मानता है वह अटल बिहारी वाजपेई और लाल कृष्ण आडवाणी को बराबर दोषी मानेगा क्योंकि जिस सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का फैसला लिया उसे भारतीय जनता पार्टी समर्थन प्राप्त था। आरोप लगाया जाता है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कुर्सी के मोंह में इस तरह के फैसले लिए परंतु यह सोचने का विषय है कि जिन लोगों ने उनके ऊपर इस तरह के आरोप लगाए सत्ता में आने के बाद उन्होंने क्या किया, यदि कहा जाए कि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने समाज में एक खाईं पैदा की तो उस खाई को चौड़ा करने का काम कालांतर में अटल बिहारी वाजपेई और नरेंद्र मोदी ने किया ।राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के मुखिया अटल बिहारी वाजपेई ने 81वें संविधान संशोधन से बैकलॉग के लिए 100% की हिस्सेदारी तय की,82वें संविधान संशोधन से आरक्षित वर्ग के लिए न्यूनतम अंक की बाध्यता समाप्त कर दिया। इसके बाद 85,वां संविधान संशोधन कर अटल सरकार ने प्रमोशन में आरक्षण में परफॉर्मेंस को समाप्त कर दिया
इससे क्या समाज में खाई नहीं पैदा हुई।
इससे क्या परिणाम निकला यह सोचने का विषय है? दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के ही वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सामाजिक न्याय के नाम पर एससी एसटी एक्ट में संशोधन किया जिसमें सिर्फ आरोप लगाने मात्र से किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी की जा सकती है जब भारत की सर्वोच्च अदालत ने इसे मानवाधिकार का उल्लंघन बताया तो नरेंद्र मोदी की सरकार ने संविधान संशोधन कर दिया। और परिस्थिति ऐसे बनी की भारतीय जनता पार्टी को मध्य प्रदेश में अपनी सरकार गवानी पड़ी बाद में सामाजिक न्याय के नाम पर नरेंद्र मोदी की सरकार ने सवर्णों को 10 फ़ीसदी आरक्षण आर्थिक आधार पर देने का फैसला लिया परंतु आज भी वो फैसला लागू नहीं है क्योंकि उत्तर प्रदेश में 69000 शिक्षक भर्ती में आज भी उस 10 फ़ीसदी आरक्षण का कहीं कोई अता पता नहीं है ।
आज वह लोग कहां हैं जो विश्वनाथ प्रताप सिंह को खलनायक तो बताते हैं परंतु भारतीय जनता पार्टी के इस फैसले को उत्तर प्रदेश में ना लागू करने पर वो मौन हैं।
भारतीय राजनीति में विश्वनाथ प्रताप सिंह के ऊपर भले ही कितने आरोप लगाए जाएं और उनको खलनायक बताया जाए परंतु उनके इस वाक्य को याद करना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था कि “मेरे बाद लोग भले मुझे याद करें या ना करें लेकिन लोग मेरे ही रास्ते पर चलेंगे” शायद उन्हें इस बात का भली-भांति पता था कि आने वाले समय में क्या होने वाला है उनकी ईमानदारी, सत्य निष्ठा और पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह उठाना किसी के बस की बात नहीं तो केवल और केवल मंडल आयोग के नाम पर उनको खलनायक बताया जाता है, जो सही नहीं है।।
सौरभ सिंह सोमवंशी
लेखक अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा पूर्वी उत्तर प्रदेश के सह मीडिया प्रभारी हैं।
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