“कोरोना काल” कुछ लोगों के लिए ‘लूट का अवसर’

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इसी दानी व दयालु समाज में अनेक लोग ऐसे भी हैं जो इस संकटकालीन घड़ी में भी लूट खसोट,धनसंग्रह,चोरी व अमानत में ख़यानत करने की अपनी प्रवृति से बाज़ नहीं आ रहे हैं। इंसानों पर आए इस महासंकट के दौर में भी विकृत मानसिकता के लोग कहीं अकेले तो कहीं संगठित रूप से तो कहीं संस्थागत आधार पर लोगों को लूटने में लगे हुए हैं। लगता है ऐसी मानसिकता के लोगों ने यह ग़लतफ़हमी पाली हुई है कि ‘इन्हें कभी किसी बुरे दौर से तो गुज़रना ही नहीं है और लूट खसोट का यही पैसा शायद इनके मोक्ष का माध्यम बनेगा’।

मध्य प्रदेश से प्राप्त जानकारी के अनुसार लॉकडाउन के दौरान पीडीएस के तहत गेंहू का जो आटा आटा मिलों में पिसवाकर दस दस किलोग्राम के पैकेट ज़रूरत मंदों में बांटे जा रहे हैं,उनमें दस किलो के बजाए लगभग सात या साढ़े सात किलो तक आटा ही पैक किया गया है। बताया जा रहा है कि ज़िला आपूर्ति नियंत्रक ने स्वयं स्वीकार किया है कि आटा मिल मालिकों ने सौ किलो गेहूं के बदले केवल 90 किलो आटा ही वापस दिया है। कुछ राजनैतिक दल इसे मध्य प्रदेश के एक बड़े आटा घोटाले का नाम दे रहे हैं। राजस्थान से लेकर असम तक के कई मुख्यमंत्रियों ने भी अपने अपने राज्यों में मिलने वाली इसी तरह की शिकायतों के बाद जाँच के आदेश भी दिए हैं। क्या यह ऐसा वक़्त है कि कुछ शातिर व पेशेवर भ्रष्ट लोग संकट के ऐसे समय में भी ग़रीबों के मुंह का निवाला छीन कर उन पैसों की बंदर बाँट करें ?

निश्चित रूप से विभिन्न राज्य सरकारों ने व्यवसायियों को सख़्त निर्देश दिये हैं कि आवश्यक वस्तुओं की जमाख़ोरी न होने पाए और दुकानदार किसी चीज़ की मनमानी क़ीमत न वसूलने पाएं। ऐसा करने वालों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने के निर्देश भी जारी किये गए हैं। कई जगह पुलिस व दूसरे विभागीय अधिकारी इससे संबंधित जाँच पड़ताल करते भी देखे गए। परन्तु इसके बावजूद विभिन्न राज्यों में कई शहरों से अनेक जमाख़ोर व भ्रष्ट व्यवसायियों द्वारा सब्ज़ियों से लेकर अनेक खाद्य सामग्रियों यहाँ तक कि दवाइयों तक की मनमानी क़ीमतें वसूली गईं। ख़बरें तो यहाँ तक हैं कि लॉक डाउन होने बावजूद कई जगहों पर शराब,सिगरेट व गुटका जैसी चीज़ों की चोरी छुपे आपूर्ति भी की गयी और इनके मुंह मांगे पैसे भी वसूले गए। इसी प्रकार ज़रूरतमंदों की पंक्ति में भी कई ऐसे अवांछनीय तत्व शामिल हैं जो बिना ज़रुरत के ही ज़रूरतमंदों के हक़ की सामग्री इकठ्ठा करते दिखाई दे रहे हैं। ऐसे लोग ग़रीबों को बांटी जाने वाली सामग्री मजबूरी के नाम पर इकट्ठी करते हैं तथा ज़रूरत से ज़्यादा इकट्ठी कर उसे बाज़ारों में सस्ते दामों पर बेच देते हैं। यह भी लालची व भ्रष्ट लोगों की उसी श्रेणी में आते हैं जो यही समझते हैं कि कोरोना महामारी जैसा घोर संकट दुनिया के लिए भले ही क़हर व तबाही क्यों न हो परन्तु इन लुटेरों के लिए तो यह ‘लूट खसोट,धनसंग्रह व भ्रष्टाचार का ही सुनहरा अवसर’ है।

निर्मल रानी


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