आलेखःसह-अस्तित्व, विश्व बंधुत्व और जीवन की निरंतरता से बचेंगे मानव मूल्य

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केरल में एक हथिनी को अनानास के फल में विस्फोटक खिलाकर मार दिया गया । वह हथनी गर्भवती थी उसके बच्चे की भी साथ में मौत हो गई। अमेरिका में एक अश्वेत के गले पर पांव रखकर पुलिस ने मार डाला वह चिल्लाता रहा कि वह सांस नहीं ले पा रहा है, लेकिन अंततः उसे जान गंवानी पड़ी । मानव समाज की दरिंदगी के यह उदाहरण केवल यहीं तक सीमित नहीं है ।बहुत सारे लोग बहुत सभ्य और वैग्यानिक तरीके से इस दरिंदगी को दुनिया में अंजाम दे रहे हैं कोरोना त्रासदी तो जैसे दुनिया के लिए अवसर बन गई है । सारे दरिंदे भ्रम फैलाकर लोगों को डरा कर उनकी सीमित जानकारियों का लाभ उठाकर मानवता को भटका रहे हैं । विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक नयी एडवाईजरी से यह काला चेहरा उजागर हुआ है । दुनिया के मशहूर मेडिकल जनरल लेंसेंट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के आधार पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाइड्रोक्सीक्लोरिक्वीन दवा के उपयोग पर अस्थाई प्रतिबंध लगा दिया था। बाद में पता चला कि अमेरिका की एक स्वायत्त लैब के द्वारा दिए गए डाटा के आधार पर वह रिपोर्ट प्रकाशित की गई जिसमें यह कहा गया था कि 671अस्पतालों, 6 उपमहाद्वीपों में 96 हजार 32 मरीजों के आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि हाइड्रोक्सी क्लोरीक्वीन,हाड्रोक्सी क्लोरोक्वीन सह मेक्रोलाईड, कोविड-19 पर असरकारक तो है ही नहीं बल्कि इसके साइड इफेक्ट से मरीज की जान जाने के खतरे भी बढ़ जाते हैं । आज पूरी दुनिया सर्जी स्फेयर लैब के इस डाटा की इंडिपेंडेंट ऑडिट की मांग कर रही है इस पेपर को डा.एम आर मेहरा,डा.एस एस देसाई एवं अन्य दो डाक्टर्स के नाम से प्रकाशित किया गया है और विश्व स्वास्थ्य संगठन को पुनः यह इस दवा के उपयोग पर लगाई गई अस्थाई रोक को वापस लेना पड़ा है । विश्व स्वास्थ्य संगठन की विवादास्पद छवि इस निर्णय के बाद और भी ज्यादा विवादास्पद हो गई है ।
दुनिया यही सोच रही है कि अब किस पर भरोसा किया जाए । यह हथनी को मारने या एक अश्वेत के गले पर पांव रखकर मारने जैसा ही क्रूर अपराध है । संदिग्ध आंकड़ों के आधार पर मानवता की इस बीमारी से लड़ाई को गुमराह करने के यह तरीके बड़े ही सभ्य और वैज्ञानिक हैं लेकिन क्या वे उतने ही क्रूर नहीं हैं जितना कि एक हथिनी को विस्फोटक से मारना।
कोविड की नकली जांच किट सप्लाई करना और कोरोना को नियंत्रित करने के उपायों को स्थगित करना यह भी दुनिया में बड़े स्तर पर हो रहा है । अमानक पीपीई किट के माध्यम से मानव की रक्षा करने वाले डॉक्टरों के ही जीवन को खतरे में डाला जा रहा है। पूरी दुनिया में कोविड के इस फैलाव के साथ मनुष्य के क्रूर और दानवी चेहरे ही उजागर हो रहे हैं । भोपाल में एक सोसायटी में दिल्ली से लौटी एक बच्ची को कोरोना नेगेटिव होते हुये भी उसके ही फ्लेट में सोसायटी के पदाधिकारियों द्वारा घुसने न देना और बाहर कहीं 14दिन क्वेरेन्टीन करने के लिये प्रताड़ित करने जैसे अमानवीय कृत्यों से यह प्रश्न अब उतना ही समीचीन होता जा रहा है कि क्या विकास की ऊपरी सतह तक पहुंचने के लिए हम मानव जाति को नीचे धकेलने की साजिश करने तैयार हैं । बल्कि अलग-अलग तरीकों से उसे मारने के लिए तत्पर हैं।
भारत में हजारों लाखों मजदूरों का पलायन और भूख से मौत श्रमिक ट्रेनों में चार चार दिन तक पड़ी मजदूरों की लाश ,अनाथ होते बेगुनाह बच्चे जैसी हजारों कहानियां केवल भारत की ही कहानियां नहीं हैं । समृद्ध देशों में भी यह क्रूरता अलग-अलग तरीकों से एक बर्बर समाज के रूप में सामने आ रही है ।
दूसरी तरफ एक ऐसा भी समाज है जिसने स्वयं अभावों में होने के बावजूद अपने हिस्से की रोटी साझा करके करोड़ों पैदल चलते मजदूरों को भूख से मरने से बचाया । जहां शासन प्रशासन असफल हुआ वहां करुणा सफल हुई। आज सबसे बड़ी जरूरत उन मानव मूल्यों को बचाने की है जो सह अस्तित्व, विश्व बंधुत्व और जीवन की निरापद निरंतरता में विश्वास करते हैं । भारत इन्हीं सिद्धांतों के कारण विश्व गुरु बना था और इन्हीं सिद्धांतों की पक्षधरता से फिर दुनिया के लिए आदर्श बन सकता है । क्या विस्फोटक से निष्प्रयोजन एक गर्भवती हथनी को मारने वाला समाज यह जानने-समझने के लिए तैयार है ?

भूपेन्द्र गुप्ता

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)


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