पड़ोसी राज्यों की तुलना में मातृ शिशु मृत्यु दर में झारखंड में आई कम

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डॉ अजय ओझा।

  • जच्चा – बच्चा के स्वास्थ्य संरक्षण के लिए झारखंड को मिले लगभग 330 करोड़।
  • 16 योजनाओं व कार्यक्रमों के माध्यम से मृत्यु दर में कमी लाने पर हो रहा काम।
  • सांसद संजय सेठ के सवाल पर केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री का जवाब।

नई दिल्ली, 20 दिसंबर । अपने पड़ोसी राज्य बिहार, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल की तुलना में झारखंड में मातृ व शिशु मृत्यु दर में गिरावट आई है और यह बहुत कम हुई है। उक्त आशय की जानकारी केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. भारती प्रवीण पवार ने लोकसभा में दी। रांची के सांसद श्री संजय सेठ ने अतारांकित प्रश्न काल में यह जानना चाहा था कि झारखंड सहित पूरे भारत में मातृ मृत्यु दर क्या है? बच्चों की मृत्यु दर क्या है और इसे रोकने के लिए सरकार कौन-कौन सी योजनाएं चला रही है?

इसके जवाब में केंद्रीय मंत्री ने बताया कि पूरे भारत में 2015-17 में मातृ मृत्यु दर प्रति हजार पर 122 थी, वही 2016-18 में यह दर 113 पर आई। झारखंड में प्रति हजार पर मातृ मृत्यु दर 2015-17 में 76 थी जबकि 2016-18 में 71 होकर रह गई है। झारखंड के पड़ोसी राज्यों बिहार में यह दर पहले 165 थी, अब 149 हुई है। उड़ीसा में पहले यह 168 थी, अब 150 हुई है। जबकि पश्चिम बंगाल में पहले 94 थी, अब 98 हुई है यानी पश्चिम बंगाल में मातृ मृत्यु दर के रिकॉर्ड में इजाफा हुआ है।

वही शिशु मृत्यु दर को कम करने में केंद्र सरकार ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। 2008 में शिशु मृत्यु दर प्रति हजार पर 69 थी, यही 2018 में प्रति हजार बच्चों पर 36 होकर रह गई है। इसके लिए केंद्र सरकार ने कई प्रयास किए और कई तरह की योजनाएं भी चलाई।

केंद्रीय मंत्री ने बताया कि भारत मातृ और शिशु मृत्यु दर कम हो, इसे लेकर सरकारी स्तर पर कई तरह के अभियान चलाए गए। वर्कशॉप के जरिए, कानूनी सलाह के जरिए, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के जरिए कई तरह की योजनाएं चली और उसका परिणाम यह हुआ कि हमें इस दर को रोकने में बड़ी सफलता हासिल हुई।

लोकसभा में केंद्रीय मंत्री ने लिखित रूप से बताया कि 16 योजनाओं व अभियान के जरिए मातृ और शिशु मृत्यु दर में कमी लाई गई है, जो अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। इस अभियान में सुरक्षित मातृत्व, आसवान जननी सुरक्षा योजना, जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान, लक्ष्य, मासिक ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता अभियान सहित कई कार्यक्रम सामाजिक व सरकारी स्तर पर चलाए गए ताकि इस दर को कम किया जा सके और उसमें हमें आशातीत सफलता भी मिली।

आदिवासी क्षेत्रों में इस दर को कम किया जाए, इसके लिए बर्थ वेटिंग होम्स तैयार किए गए ताकि आदिवासी समाज में बच्चों का जन्म के साथ उनके स्वास्थ्य का रखरखाव बेहतर तरीके से हो सके। इसके लिए कई स्थानों पर शिविर लगाए गए। ऐसे क्षेत्रों की नर्स को विशेष रूप से प्रशिक्षण दिया गया ताकि जच्चा बच्चा दोनों के जीवन की रक्षा हो सके।

ऐसी योजनाओं के क्रियान्वयन व राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का काम और बेहतर तरीके से हो, इसके लिए देश के सभी राज्यों को पर्याप्त मात्रा में धनराशि भी उपलब्ध कराई गई। वित्तीय वर्ष 2019-20 में झारखंड को 167 करोड़ रुपए की राशि दी गई, जबकि 2020-21 में 163 करोड रुपए की राशि प्रदान की गई।


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