मुख्यमंत्री के द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को विश्वास प्रस्ताव का पत्र देना असंवैधानिक : बाबुलाल मरांडी

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डॉ अजय ओझा।

मुख्यमंत्री और मंत्रीपरिषद राज्यपाल को सहायता एवं सलाह देने के लिए होती है।

रांची, 5 सितंबर । आज सुबह फिर से एक बार भाजपा के सभी विधायक गण प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश की अध्यक्षता में पार्टी कार्यालय में विधायक दल की बैठक की । बैठक के बाद भाजपा विधायक दल के नेता बाबुलाल मरांडी ने विधानसभा अध्यक्ष के नाम एक पत्र लिखा है और पत्र के माध्यम से अध्यक्ष महोदय से सरकार के द्वारा आहूत एक दिवसीय विधानसभा सत्र को खारिज करने की मांग की है।

श्री मरांडी ने कहा कि झारखंड सरकार के द्वारा एक दिवसीय विधानसभा सत्र को बुलाये जाने को असंवैधानिक करार दिया। उन्होंने कहा कि नियमतः संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत माननीय मुख्यमंत्री और विधान परिषद माननीय राज्यपाल महोदय की सहायता एवम सलाह देने के लिए होती है अतः मुख्यमंत्री को यह प्रस्ताव राज्यपाल महोदय को देना चाहिए था न कि अध्यक्ष को।

उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 164(2) के अनुसार राज्यपाल ही यह आदेश दे सकते है कि मंत्रिपरिषद विधानसभा से विश्वास मत हासिल करें।मुख्यमंत्री ऐसा प्रस्ताव बिना राज्यपाल के अनुमति के विधानसभा अध्यक्ष को नही दे सकते है।

उन्होंने कहा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा एवम कांग्रेस संविधान को ताख में रख कर मनमानी तरीके से सरकार चला रही है। संविधान के अनुच्छेद 166 में यह स्पस्ट उल्लेख है कि राज्य सरकार की समस्त कार्यपालिका की करवाई राज्यपाल के नाम पर होगी। अतः मुख्यमंत्री महोदय के द्वारा अध्यक्ष को भेजा गया प्रस्ताव अनुच्छेद 163 के विरुद्ध है अतः इसे असंवैधानिक घोषित करते हुए खारिज किया जाए। अध्यक्ष संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत इस पर संज्ञान नही ले सकते है।

श्री बाबूलाल मरांडी जी ने बताया कि संविधान या प्रक्रिया कार्यसंचालन में मंत्री परिषद में विश्वास प्रस्ताव का कोई उपबंध नही है तथापि भारत के संसदीय लोकतंत्र के एक नई ब्यवस्था के रूप में कायम हो चुका है।राज्यपाल किसी भी मंत्री परिषद को विश्वासमत हासिल करने का आदेश दे सकते है। अभी तक झारखंड में छह बार विश्वास का प्रस्ताव विधानसभा में प्रस्तुत किया गया है।

श्री बाबूलाल मरांडी ने बताया कि राज्यपाल के आदेश से ही सभा मे विश्वास प्रस्ताव रखा जाता है अतः सरकार की तरफ से दिए गए विश्वास प्रस्ताव के लिए सभा को पूर्व में सूचित करना अनिवार्य नही होता क्योंकि यह प्रस्ताव राज्यपाल के आदेश से ही रखा जाता है।ऐसे प्रस्ताव का कार्यसूची में पुरवर्तिता प्राप्त होती है।


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