लॉक डाउन के दौरान कर्मचारी को उसका वेतन के लिए क्या कानून बना है ?

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शशि किरण

देश के ऊपर कोरोना (corona) का संकट आने के कारण लॉक डाउन (lockdown) करना पड़ा। फल स्वरूप बहुत से लोग नौकरी से वंचित हो गए। वह अपने काम पर नहीं जा सके या प्रतिष्ठान ही बंद हो गए, जिसके कारण उनका काम खत्म हो गया ऐसे में लॉक डाउन के कारण क्या उन्हें वेतन मिलेगा?

इसमें कोई संदेह नहीं है की कोविड-19 (covid 19) के कारण सेवा योजकों को अपने प्रतिष्ठान/ कंपनी/ कंपनियां/ दुकाने/ उद्योग बंद कर देने पड़े हैं। ऐसे में जब कर्मचारियों ने कार्य ही नहीं किया तो क्या उन्हें लॉक डाउन के कारण एवं “काम करे बिना वेतन नहीं” सिद्धांत से स्वत: ही स्पष्ट है कि बिना कार्य के वेतन नहीं मिलता है। ऐसे में क्या कर्मचारियों का वेतन पाने का कोई अधिकार कानूनी रूप से बनता है या नहीं?

इस दिशा में कानून की क्या स्थिति है पहले यह देख लिया जाए:-

लेबर लॉस (Labour Law), मजदूरों से संबंधित कानून इस बात का ध्यान रखते हैं कि कर्मचारियों को वेतन मिले जिसके लिए पेमेंट ऑफ वेजेस एक्ट भी बनाया गया है। भारत का संविधान (Constitution of India) अनुच्छेद 245 एवं 246 के अनुसार वेतन देने संबंधी कानून सेंट्रल वस्टेड दोनों की ही कॉन्करेंट लिस्ट में आता है।

इसके अतिरिक्त एक और कानून है वह है –

डिजास्टर मैनेजमेंट (disaster management)  एक्ट 2005 जो कि एक सेंट्रल एक्ट है इस एक्ट के तहत यदि भारत सरकार कोई आदेश पारित करती है तो वह सभी  पर बाध्य है / होता है।

डिजास्टर मैनेजमेंट (disaster management) एक्ट के तहत भारत सरकार द्वारा लॉकडाउन (lockdown) का आदेश दिया गया है अतः कोई भी सेवा योजक किसी भी कर्मचारी की ना तो सेवाएं समाप्त कर सकता है और ना ही लॉकडाउन (lockdown) के कारण उसे निकाल ही सकता है।

यही नहीं उसे वेतन देने से भी मना नहीं कर सकता है।  इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट (Industrial Dispute Act) की धारा दो( केकेके) जिसे सेक्शन 25 -C  के साथ पढ़ा जाना चाहिए के अंतर्गत सेवा योजन लेऑफ (lay off) भी नहीं कर सकता है।  जिसका अभिप्राय यह है कि वह अपने प्रतिष्ठान को इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट (Industrial Dispute Act) के अंतर्गत बंद नहीं कर सकता है और लॉकडाउन (lockdown) के बाद उसे अपना प्रतिष्ठान खोलना ही पड़ेगा। यदि सेवा योजन द्वारा कानून का उल्लंघन किया जाता है, तो ऐसे सेवा योजकों के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code)  के सेक्शन 186, 188, 267, 270, 271 जिसे डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट (disaster management act) की धारा 51  से 54  साथ पढ़ा जाए,  के अंतर्गत कार्यवाही की जा सकती है। इस दिशा में भारत सरकार द्वारा दिए गए आदेश दिनांक 20- 03-2020 एवं मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स  के आदेश दिनांक 29-03- 2020 महत्वपूर्ण है।  

इस दिशा में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक रिट पिटिशन 468/ 200 अलक आलोक श्रीवास्तव बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में,जो कि विस्थापित कर्मचारियों/ मजदूरों के संबंध में दाखिल की गई थी,मैं हाल ही में यह उल्लेख किया है :-

यदि कोई भी पब्लिक सर्वेंट सरकार के आदेश का पालन नहीं करता है तो उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के अंतर्गत दंड दिया जा सकता है भारत सरकार द्वारा जो भी आदेश दिए गए हैं वह भले ही सलाह के रूप में क्यों ना हो उनका पालन ना करना दंडनीय होगा।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह अपेक्षा की गई है एवं विश्वास प्रकट किया गया है इस देश के सभी लोग चाहे वह प्रदेश की सरकारें हो पब्लिक अथॉरिटी (Public Authority) या देश के नागरिक हो, सभी लोग सरकार द्वारा दी गई सलाह, आदेश एवं समय-समय पर जारी दिशा निर्देश आदि का पालन करेंगे जो कि जनहित एवं जन सामान्य की सुरक्षा के लिए आवश्यक होगा ।

उक्त आदेश के संदर्भ में ऐसी अपेक्षा की जाती है कि भले ही जनसामान्य को परेशानी क्यों ना हो और सेवायोजन को तकलीफ क्यों ना हो, वे इस बात का ध्यान रखेंगे की भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 188, 269, 270, 271 एवं डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट (Disaster Management Act) तथा एपिडेमिक डिजीजइज एक्ट (Epidemic Diseases Act) की धारा 3 के अंतर्गत सरकार को उनके विरुद्ध कार्यवाही करने व दंड देने के लिए कार्यवाही करने के लिए विवश ना होना पड़े ।

यह तो था कानूनी पक्ष, परंतु इसी के साथ एक और व्यवहारिक पक्ष भी है जिसको नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है । या कोई छोटा दुकानदार है, या कोई ढाबे वाला, या अन्य कार्य करने वाला दुकानदार है, और उसकी दुकान लॉकडाउन (lockdown) में बंद है। वह रोज कमाता था और अपने कर्मचारियों को भी देता था, परंतु अब उसकी कोई कमाई नहीं है ऊपर से उसे दुकान का किराया भी देना है, अन्य खर्चे भी हैं, ऐसे में क्या उसके लिए यह संभव होगा कि वह बिना कमाई के अपने कर्मचारियों को वेतन दे सकेI संभव है वह स्वयं ही आर्थिक बोझ में दब जाए और उसके लिए संभव ही ना हो कि वह अपने कर्मचारियों को वेतन दे सके। निसंदेह,  करोना वायरस के कारण हुई बंदी या लॉकडाउन (lockdown) के कारण देश की अर्थव्यवस्था (Economy) चरमरा गई है ऐसे में कितने सेवायोजक अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को वेतन दे पाते हैं।

जहां एक और सरकार यह कह रही है कि कर्मचारियों के वेतन में कटौती न की जाए वही अभी हाल ही में सरकार द्वारा कई क्षेत्रों में वेतन कटौती की चर्चा भी की है। कई कंपनियां अपने कर्मचारियों के वेतन में कटौती शुरू कर चुकी हैं। सरकार द्वारा भी सांसदों के वेतन में 30% तक की कटौती की बात कही गई है। ऐसे में छोटी कंपनियों व छोटे उद्योगों के सेवायोजको को यह कहना कि वह अपने कर्मचारियों के वेतन में कटौती ना करें कहां तक सही होगा और क्या ऐसा करना संभव हो सकेगा ?

लेखिका सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता है ।


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