इरफ़ान भाई का इलाहाबाद में बिताये हुए यादगार लम्हे

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मनीष कपूर

इरफ़ान भाई आप तो दगा दे गए। अभी क्या उम्र थी जो आप हम सबको रुलाकर एकांतवास में छोड़ चले गए। आपका वह चेहरा आज भी आंखों के सामने घूम रहा है जब आप हम सबके साथ कंपनी बाग़ पब्लिक लाइब्रेरी के सामने क्रिकेट खेलते थे। मेरी स्कूटर लेकर हम लोग इलाहाबाद का कोना कोना घूमते थे।

इरफ़ान भाई याद है आपको पहले दिन शूटिंग के समय जब आप विजयनगरम हॉल में आयोजित पहले शॉट के लिए तैयार हो रहे थे ,उस समय ड्रेसिंग रूम में हम सब कितने सहज तरीक़े से एक दूसरे से बात कर रहे थे। तिग्मांशु की यह पहली फ़िल्म थी।हम सबको तो इलाहाबादी होने के कारण सपोर्ट करना ही था।

सन् 2000 का कुम्भ चल रहा था उन दिनों में हमारी संस्था के राजेश राम सिंह की फ़िल्म आंच की शूटिंग वाराणसी, गाज़ीपुर में नाना पाटेकर जी के साथ कर रहा था। एक सीन के लिए मुझे बॉम्बे बुलाया गया। एक दिन का ही काम था। पूरे कर तिग्मांशु से मिला। बातों बातों में तिग्मांशु ने पूछा,दादा कुम्भ कब तक है? अरे बस बसंत पंचमी और ख़तम। शिव रात्रि तक कुछ लोग रहेंगे।

तिग्मांशु फ़ौरन आनन फानन में हीरो हीरोइन और कैमेरा मैंन को लेकर शूटिंग में कुछ दृश्यों को फिल्माने आ गये। जब पूरी फिल्म की यूनिट आईं तो होटल यात्रिक में सब रुके थे।
तिग्मांशु तो अपने लेखन एवं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की नेतागिरी से परेशान होकर सबसे दूर रहकर एकाग्रता से काम करता रहा, लेकिन इरफ़ान भाई मस्त मौला थे। उस समय तक उनकी कोई ख़ास पहचान नहीं बनी थी।इसलिए हम लोगों के साथ कहीं भी घूमने निकल जाते थे। तब मेरे पास प्रिया स्कूटर थी। इरफ़ान भाई बोले, आप बैठे मै चलाता हूं।अरे इरफ़ान भाई आप इलाहाबाद की सड़के नहीं जानते हैं, मैने कहा ।आप रास्ता दिखाएं, मैं चलाता हूं । इरफ़ान की आवाज़ में एक जादू था।अपने इलाहाबाद वाले दस्ता के इरफ़ान कि आवाज़ की तरह उनमें भी एक जादू था। मैं उनकी बातों के सम्मोहन में आ गया और सिविल लाइन,कटरा ख़ूब घूमें।

बैंक से शाम को निकल सीधे जहां शूटिंग होती थी हम पहुंच जाते थे।बहुत बातचीत होती थी उन बातचीत में रंगमंच पर ही जायदा बातें होती थीं।वे इलाहाबाद को, इलाहाबादियों को समझना चाहते थे,ताकि उनके रोल में जान आ सके।

बेहद विनम्र स्वभाव के इस कलाकार को तो उस समय उतना नहीं जान पाएं लेकिन जब फ़िल्म देखी तब सब समझ में आया कि वह बंदा कितना होमवर्क करता है अपने किरदार के साथ ।

बहुत मीठी मीठी यादें जुड़ी हैं इरफ़ान के साथ। इस फ़िल्म में मेरी भी एक छोटी सी भूमिका होने के कारण और तिग्मांशु धूलिया की वजह से भी इस यूनिट का सदस्य बन गया था।

आज इरफ़ान भाई की अनंत यात्रा की ख़बर सुन मुंबई से मात्र 130 किलोमीटर दूर एकांतवास में चाहते हुए भी अपने प्रिय इरफ़ान के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो सकता।इलाहाबाद में बिताए सुखद यादों के साथ मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।

(ऊपर दिए गए समस्त यादें अनिल रंजन भौमिक दादा “नाट्य निर्देशक ‘सामानांतर'” ने लेखक के साथ साजा किया )


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