फोक’ की जगह फ़िल्म और ‘ट्राइब’ की जगह ‘थिएटर’ को मिल रहा बढ़ावा,सांस्कृतिक केंद्र में यह क्या चल रहा है?

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संदीप मित्र।

देश भर में सात सांस्कृतिक केंद्रों की स्थापना इसलिए की गई थी कि मुख्य रूप से जो लोक व जनजातीय कलाएं लुप्त हो रही हैं उन्हें बचाने की मुहिम की जाए या जो लोककलाएं हमारी विरासत रही हैं उनको आने वाली पीढ़ियों के बीच प्रासंगिक किया जाय पर अब लग रहा है कि केंद्र अपने इस कर्तव्य से विमुख हो रहे हैं। सात सांस्कृतिक केंद्रों में से एक प्रयागराज स्थित उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक में भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है।

पहले तो यहां करीब एक छमाही तक कोई निदेशक नही आया। पूर्व निदेशक के जाने के बाद निदेशक की नियुक्ति में एक बड़ा अंतराल देखने को मिला। सुरेश शर्मा को यहां का निदेशक बनाया गया। उस समय मीडिया से बातचीत में उन्होंने लोककलाओं व जनजातीय कलाओं के संरक्षण व संवर्धन की योजनाओं को बनाने का आश्वासन दिया। करीब तीन महीने का समय हो रहा है पर ऐसा कुछ भी देखने को नही मिल रहा बल्कि उलट वो फ़िल्म अभिरुचि जैसी कार्यशालाओं व नाटकों के मंचन के ही इर्द गिर्द घूमते नज़र आ रहे हैं।

निदेशक से इस विषय पर जब बात की जाती है तो कहते हैं कि पिछले कार्यकाल की अनियमितताओं को सुलझाने में लगे हैं। उनके इस सुलझाने वाली व्यस्तता के चलते सुदूर ग्रामीण लोककलाकारों के लिए कोई मुकम्मल योजना नही बन पा रही है।

सरकारी योजनाओं,दिवसों व पखवाड़ों के अलावा अब नही लगता कि ऐसे केंद्रों के पास कोई खुद की योजना रह गयी है। पूर्व निदेशकों जैसे एच.एन.श्रीवास्तव,नीरू नंदा,आनंद वर्धन शुक्ल के समय कई ऐसी योजनाएं बनी जो लोककलाकारों के हित में थीं।

इसी केंद्र में इससे पहले के निदेशक ने केंद्र के अंतर्गत आने वाले सात राज्यों में करीब सौ से भी अधिक लोकगीतों,लोकनृत्यों की कार्यशालाओं के आयोजन के साथ कला चौपाल जैसी अनूठी योजनाओं की शुरुआत की थी,जो अब एकदम ठप हैं। कर्मचारियों से बात करने पर उनका कहना होता है कि वो तो निदेशक के आदेशों व योजनाओं के अनुसार कार्य करते हैं।

कोरोना की मार सहे लोककलाकारों को जो उम्मीद थी वह भी टूटती नज़र आ रही है। शहर के ही कुछ स्थापित कलाकारों को छोड़ केंद्र का फायदा किसी को मिलता नज़र नही आ रहा है।

निदेशक सुरेश शर्मा का कहना था कि उनको बैठना नही आता,वो काम करना चाहते हैं पर उनके कामों का असर ग्रामीण व वंचित कलाकारों पर नही दिख रहा है।

केंद्र अपने मूल से कहीं दूर जा रहा है। मासिक नाट्य योजना चल रही,पर कला चौपाल जैसी योजना बन्द हो गयी है। फ़िल्म,साहित्य,कवि सम्मेलन,प्रतियोगिता के अलावा कोई अन्य योजना अभी तक नही दिखी जो प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष लोक व जनजातीय कलाओं से जुड़ी हो।

देखना यह है कि जिन बातों को निदेशक सुरेश शर्मा ने पदभार ग्रहण करते हुए कहा था उसपर कितना खरा उतर पाते हैं। उनका कहना था कि वो सिर्फ थिएटर के लिए काम नही करेंगे पर अभी फिलहाल कोई ऐसी योजना नही दिख रही जो केंद्र की खुद की पहल हो,सारे आयोजन या तो किसी महोत्सव के हो रहे या सरकारी आयोजन पर।


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