कोरोना महामारी से बचने के लिए क्या रहस्य छुपा है भारतीय संस्कृति में ? मशहूर भविष्य वक्ता नेस्त्रेदेमस ने क्या कहा था कोरोना और मोदी के बारे में?

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डॉ भुवनेश्वर गर्ग (एमबीबीएस, एमएस)

अब जबकि सम्पूर्ण विश्व इस भयानक महामारी से त्रस्त और घबराया हुआ है ख़ास तौर पर यूरोप के ठन्डे, विकसित, पढ़ेलिखे और धनी देश तब गरीब, अविकसित, अशिक्षित, देशों की जनसँख्या के अनुपात में इस महामारी और उसके प्रकोप के आंकड़ों ने सभी को अचंभित कर रखा है और हो भी क्यों ना क्योंकि यह गरीब देश ना तो कोई नियम कानून मानते हैं ना ही भरपेट भोजन इनकी विशाल जनसँख्या को मिलता है। फिर ऐसा क्या है जो इन देशो को इस प्रकोप में भी मदद कर रहा है ?

इटली में जैसे लोग कोरोना संक्रमण के आगे हार मान चुके है


सबसे पहला कारण है भारतीय उपमहाद्वीप की भोगोलिक अवस्था, इसके मौसम और तापमान। इस देवीय धरती की माटी के गुणों से सब परिचित हैं धरती का सिर्फ यही भूभाग है जिसे ईश्वर ने चार चार मौसमों का आशीर्वाद दिया है । विश्व की सबसे बड़ी प्राकृतिक सम्पदा का देश भारत अपने तिलस्म और सभ्यता के लिए भी जाना जाता है। जहाँ सारी सभ्यताएं अपनी उत्पत्ति को चौदह सो सालों से पीछे नहीं ले जा पाती वहां भारतीय सनातन सभ्यता के लाखों साल के साक्ष्य न सिर्फ सम्पूर्ण दुनिया में मिल रहे हैं बल्कि आज विश्व भारत की और पूरी शिद्दत और सम्मान से अनुकरण करने के लिए निवेदन भी कर रहा है।

मशहूर भविष्यवक्ता नेस्त्रेदेमस


मशहूर भविष्यवक्ता नेस्त्रेदेमस ने भी इक्कीसवीं सदी में चायना के कीटाणु षड्यंत्र का और सम्पूर्ण विश्व में महामारी फैलने का संकेत दिया था और यह भी कहा था कि भारत का एक दिव्यपुरुष विश्व का नेतृत्व करेगा और कीटाणुओं, असुरी ताकतों का सर्वनाश भी करेगा ।
तो क्या अब वो समय आ गया है। यकीनन ।

लेकिन इस देश से गलती कहाँ कहाँ हुई ?
अगर सिर्फ पिछले सो सालों का ही हिसाब देखें तो देश अपनी जड़ों से, संस्कृति से दूर होता चला गया, अराजक, अयोग्य, आलसियों, मुफ्तखोरों की भीड़ बढ़ती चली गई, गुरुकुल परंपरा की जगह अंग्रेजी कान्वनेटों ने ले ली। ऑक्सीजन, ओषधि, छाँव और सुकून देने वाले पीपल, नीम, तुलसी, पलाश की जगह सजावटी अनुपयोगी वृक्षों ने ले ली। घर रसोई की शुद्धता पर जूते धूल और विदेशी संस्कार हावी हो गए । बीमारी का सबब “पोटीघर” घर के बाहर से घर के सबसे अंदर घुस आया और सूर्यनमस्कार की जगह केंडल नाइट्स ने ले ली। ताजे शुद्ध सात्विक भोजन को गंदे, भारी और बीमारियों के डब्बाबंद भोजन और जंक फ़ूड ने अमीराई के सबब के साथ विस्थापित कर दिया।
नतीजा? वातावरण की गंदगी, शरीर की बीमारियां और वक्त से पहले होने वाली तकलीफें, बीपी शुगर मोटापा और अवसाद।

गुरुकुल

फिर क्या करें ?
जब सारा विश्व हमारी प्रथाओं का अनुसरण कर रहा है तो फिर हम क्यों विकृत बीमार प्रथाओं की और बढ़ रहे हैं ?
समय के साथ चलिए। अरली टू राइज अरली टू बेड । याद है ना ? बस तो फिर इसका अनुकरण कीजिये सूर्य के साथ उठिये, सुबह की शुद्ध हवा और व्यायाम आपके मन प्राण कर्मों को सदैव तरोताजा रखेगी, हमारी इसी अवधारणा पर तो विदेशी वैज्ञानिक नोबल भी जीत चुके हैं।
सुबह का नाश्ता आयु अनुसार भरपेट करें और फिर दो से तीन बार जब भूख लगे तब ही खाएं और हल्का भोजन करें। सूर्यास्त पश्चात भारी भोजन हरगिज ना करें।
अपने नाश्ते या दिन के भोजन में मोटे अनाज शामिल करें जैसे ज्वार बाजरा चना मक्का। जहाँ तक हो सके गेंहू का सेवन हरगिज ना करें (क्योंकि गेंहू मोटापा, डायबिटीज का कारक है और अंग्रेजों के आने से पहले यह हमारे देश में नहीं होता था ( इसका सीधा सा अर्थ ये है कि हमारे वातावरण के अनुकूल नहीं है ) हमारी इसी खोज और सिद्धांत की वजह से ढेरों शुगर के मरीज और उनके लाइलाज जख्म ना सिर्फ ठीक हो रहे हैं बल्कि उनका ग्लाइसिमिक इंडेक्स भी बेहतर हो रहा है और शुगर भी कम हो रही हैं !
शुगर उर्फ़ शक्कर बीमारियों की जड़ है इसका सेवन ना करें और ना ही आर्टिफिशियल शुगर का, जिसे भले ही बड़े बड़े सेलेब आपको भारी भारी विज्ञापनों से ललचायें !
गुड़, वो भी काला वाला, का सेवन किया जा सकता है इससे शरीर को प्रचुर मात्रा में आयरन मिलता है। नवरात्रों, शुक्रवार, माँ की पूजा में गुड़ चना प्रसाद अनंत काल से है क्यों ? ताकि महिलाओं के शरीर में रक्त में आयरन की कमी से खून की कमी ना हो।
अपने बड़े बूढों बुजुर्गों की सलाहों को शिरोधार्य करें उनकी सीख और अनुभव का उल्लेख भले ही किसी किताब में ना हो लेकिन आपदा के समय आज सारा विश्व उन्ही को फॉलो कर रहा है ।
सुबह उठ कर जितना हो सके गरम पानी का सेवन करें, उसमे आवश्यकतानुसार शहद, नीम्बू, दालचीनी डाल सकते हैं। दिन भर प्रचुर मात्रा में पानी और अन्य पेय पदार्थ, दही छाछ मठ्ठा आमपना आदि का सेवन करते रहें, मौसम अनुसार फल फ्रूट सब्जियों की इस देश में प्रचुरता है देवीय वरदान है, उनका सेवन करें। ना की असमय अनर्गल पदार्थो का ।
हल्दी के औषधीय गुण जगजाहिर हैं और दिन में एक या दो बार हल्दी वाला दूध आपके शरीर को ना सिर्फ बीमारियों से लड़ने की ताकत दे सकता है बल्कि आपकी रक्त प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) को भी मजबूत करेगा।
बात बेबात भीड़ का हिस्सा ना बनें, अनर्गल दवाइयों, ख़ास तौर पर एंटीबायोटिक्स का सेवन हरगिज ना करें ये आपके इम्मून तंत्र को चौपट कर सकते हैं ।
अपने घर में ही नहीं, घर के आस पास भी साफ़ सफाई रखे, हर व्यक्ति अपने घर में तुलसी का पौधा जरूर लगाए और घर के आसपास पीपल, नीम, पलाष और अन्य फलदार वृक्ष लगाए। पेय जल स्त्रोतों को सुरक्षित और संरक्षित रखें, ध्यान दें कि हमारे संस्कारों में नल, कुआं तालाब, नदी पूजने की प्रथा थी और कोई भी पेय जल स्त्रोतों का अपमान नहीं करता था।
प्रकृति की, मूक पशुओं पेड़ पौधों, जलस्त्रोतों की रक्षा कीजिये क्योंकि प्रकृति आपको वही लौटाती है जो आप उसे देतें हैं !
(लेखक भोपाल के गाँधी चिकित्सा महाविद्यालय के वरिष्ठ चिकित्सक है)


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