सौरऊर्जा और स्वदेशी

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अनुराग जी की एक छोटी सी फ़ैक्टरी थी, जिसमे वो सौरऊर्जा के उपकरण जैसे सोलर लाइट, सोलर लालटेन, सोलर चार्ज कंट्रोलर आदि का उत्पादन करते थे, उनके बनाए उपकरणों  लागत जो भी आती थी उसमें थोड़ा बहुत मुनाफा जोड़ कर बेचते थे, और करीब 25 लोगो को रोजगार देते थे! … ऐसी ही एक फ़ैक्टरी डेविड की अमेरिका मे थी, जिसमे वो 1 लाख उत्पाद बना लेता था, उसकी लागत  प्रति पीस  भारतीय उत्पाद से थोड़ा ज्यादा  थी, डेविड अमेरिका मे 10 लोगो को रोजगार देता था । … ऐसी छोटी छोटी अनेक फ़ैक्टरिया विश्व के अनेक हिस्सो मे थी, जो हजारो लोगो को रोजगार दे रही थीं।
पर फिर एक दिन चीन मे, झिंगझांग नाम के एक व्यक्ति ने, चीन की सरकार की मदद से एक विश्व का सबसे बड़ा स्वचलित सौर ऊर्जा प्लांट लगाया, जिनमे 80 मजदूरो के माध्यम से, झिंगझांग एक महीने मे 50 लाख नग का उत्पादन करता था। सस्ती बिजली, सस्ते मजदूर, बड़ा प्लांट, सरकारी अनुदान की वजह से भारत और अमेरिका से कम लागत में उत्पादन करने लगा। वह भारत और अमेरिका से 50% कम दाम पर विश्व मे बेचने लगा। धीरे धीरे पूरे विश्व मे सौरऊर्जा उपकरणों के उद्योगबंद होने लगे। हर कोई झिंगझांग और चीन के अन्य उत्पादनकर्ताओं से सौरऊर्जा उपकरण खरीद कर बेचने लग। … अमेरिका मे डेविड ने भी एक तरीका निकाला, वो बेचता तो अभी भी अपने उत्पाद डेविड के नाम से ही था, पर वो उत्पादन झिंगझांग की चीन स्थित फैक्ट्री से बनवा कर लेने लगा । भारत भी कैसे अछूता रहता। कुछ विक्रेता और आयातकर्ता चीन से माल लाने लगे और भारत के स्थानीय उत्पाद से 20% कम दाम पर बेचने लगे। उदाहरणार्थ 100 रुपए का सौरऊर्जा उत्पाद 50 रूपऐ मे लाकर करो की चोरी करते हुए सरकार के राजस्व को क्षति पंहुचाते हुए मालामाल होने लगे। चोरी खुली और सख्ती बढ़ी तो आयातकर्ताओं ने मंत्रालय मे सामंजस्य बैठाकर कर, सौरऊर्जा उपकरणों को आवश्यक वस्तु श्रेणी में डलवा कर , उस पर आयात शुल्क भी ख़त्म करा लिया।  अनुराग पांच साल तक इससे लड़ते रहे, उन्होने अनेक चैंबर ऑफ कॉमर्स के माध्यम से, सोलर एसोसिएशन के माध्यम से अपनी कहानी सरकारी अधिकारियों तक पहुचाई, पर हर जगह लालफीताशाही के चलते, उनकी कुछ नहीं सुनी गयी!  उनकी यूनिट का कम काम देख, बैंक ने भी ब्याज की दर बढ़ा दी और उन्हे परेशान करने लगे। … उधर सब विभाग को लगता था ये तो उद्योगपति है, बहुत मोटा माल इसके पास है, थोड़ा हमे मिल जाएगा तो क्या घट जाएगा! … भरपूर संघर्ष के बाद, 3-4 साल मे अनुराग जी इस सिस्टम से हार गए! उनका बैंक लोन एनपीए हो गया!  बैंक ने उनकी संपत्ति फ़ैक्टरी नीलाम कर दी। लोगो ने आरोप लगाया की अनुराग फ्रॉड है, बैंक के पैसे खा गया! उनकी फ़ैक्टरी के मजदूर बेरोजगार हो गए, और एक ठेकेदार के अधीन होकर आधे पैसो पर दुगना काम करने लगे। … उत्पादन कर, आयकर , बिक्रीकर सबने लाखो के मुकदमे अनुराग जी पर डाल दिये। उनका का मकान बिक गया, बुरा समय आने पर रिश्तेदारों ने मुह मोड लिया! वो एक छोटी सी दुकान चलाते हुए, परिवार के साथ, दो कमरो के मकान मे जीवन व्यतीत करने लगे! पर दुकान की बिक्री भी ऑनलाइन कंपनियों के चलते नगण्य थी।  
फिर एक दिन पूरी दुनिया मे COVID-19 नाम की महामारी फैली, इसकी शुरुआत चीन से हुई।   चीन ने सौरऊर्जा  के निर्यात पर पाबंदी लगा दी। डेविड की कंपनी हो या भारत के आयातक, सब बिना माल के बैठे थे। चीन की स्थिति संभली तो उसने घटिया सौरऊर्जा उपकरण  60% अधिक मूल्य  मे बेचने शुरू कर दिये। पूरा विश्व मजबूर था, क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं था। अनुराग जी, एक हाथ मे मुकदमो का नोटिस और दूसरे हाथ मे अखबार मे इस महामारी के बारे मे पढ़ कर आँसू बहाते रहते थे! आज उनकी छोटी सी फ़ैक्टरी चालू होती तो शायद वो अपने देश का स्वाभिमान न बिकने देते!यह मेरे द्वारा लिखी एक काल्पनिक कहानी है, जिसका जीवित अथवा मृत किसी व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। … पर ध्यान रखे, जब हम कोई आयातित उत्पाद खरीदते है, तो रोज अनेक अनुराग मरते है। संकल्प ले, अब हम किसी अनुराग को झुकने नहीं देंगे।        हमारे  सामने स्वंय चीन का ही उदाहरण है , उसने कभी भी घरेलू बाजार में अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों को बिना अपनी शर्तें मनवायें व्यापार करने की अनुमति  नहीं दी. चीनी नागरिक खुद भी जहां तक संभव होता ह, चीनी उत्पाद ही प्रयोग करते हैं फिर चाहे वो कोई वस्तु हो या मोबाइल एप्लीकेशन।बदलाव, चाहे वो कितना भी बड़ा क्यों ना हो, समाज की सबसे छोटी इकाई से ही शुरू होता है और समाज की सबसे छोटी इकाई आप और मैं  हैं। ये हमारा नैगर्सिक दायित्व है  की जब भी हमारे सामने भारतीय विकल्प हो  तो हमें उसी को प्रमुखता देनी है।  मैने  ये बदलाव शुरू कर दिया है, आशा करता हूँ कि आप भी इस पर सकारात्मक विचार करेंगे।

एस. के. सिंह



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