करोना कॉल कांड, लॉकडाउन 3.0 का तीसरा दिन, अधूरे जाँच से भविष्य की चिंता

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किसी ने क्या खूब कहा है कि,

उड़ जाएंगे एक दिन, तस्वीर से रंगों की तरह।
हम वक्त की टहनी पर बेठे हैं, परिंदों की तरह ।।

और वाकई यह कितना बड़ा कटु सत्य है कि जो कभी खुद को खुदा समझते थे, सोचते थे, कि उनकी वजह से ही सब कुछ है, वक्त आया और उन्हें फ्रेम में, तस्वीर बन, टंगना पड़ा लेकिन दुनिया चलती रही और खूब चलती रही, फ्रेम से तस्वीरें बदलती रहीं, टहनियों से परिंदे उड़ते रहे, तस्वीरों के रंग धुंधलाते रहे लेकिन फ्रेम यानी दुनिया और टहनी यानी धरा कायम है और रहेगी।

मनुष्य के स्वार्थ, लालच और ईर्ष्या ने प्रकृति और मानवता का विगत में जिस तरह दोहन और संहार किया था, उसके फलस्वरूप उत्पन्न हुई परिस्थितियों और आज वर्तमान के घटनाक्रमों से उम्मीद की जानी चाहिए कि मनुष्य ने खुद के और अपनी आने वाली नस्लों की खातिर भविष्य के सबक सीख लिए होंगे और अपने शहर, देश, दुनिया के साथ साथ जल जंगल जमीन के लिए भी कुछ ठोस सोच ही लिया होगा?

तो जल जंगल जमीन के तहत, आज सबसे पहले बात जल की।
संकट तो बड़ा भारी आया, लेकिन प्रकृति फिर भी मेहरबान है। सब जगह अच्छी बारिश होने से जलस्त्रोत लबालब रहे और इस साल भी अच्छी बारिश के अनुमान हैं, लेकिन इस भरपूर जलसम्पदा के बावजूद भी, क्या सरकारें भविष्य में सबको शुद्ध पेयजल उपलब्ध करवा सकेंगीं और पानी से होने वाली ढेरों बीमारियों, जैसे उलटीदस्त, डायरिया, पीलिया, कृमि संक्रमण, टायफॉइड, हैजा आदि की रोकथाम के लिए ठोस कारगर कदम उठा सकेंगी? भारत में लौटा परम्परा के चलते, मलनिकास और उससे होने वाले पेयजल स्त्रोतों के संक्रमण की वजह से, सदियों से ये सब बीमारियां ना सिर्फ सरकारों और स्वास्थ्य महकमें के लिए लाइलाज चिंता का सबब बनी हुईं हैं बल्कि मनुष्य और बेजुबां जानवरों, पशु पक्षियों के लिए भी जीवनमरण का कारण बनती रही हैं और अब इससे भी इतर, करोना काल में जिस मुसीबत की और, हमारे बार बार चेताने, लिखने के बावजूद भी कोई ध्यान नहीं दे रहा है, वो है इस करोना वायरस का मलनिकास के जरिये काफी लम्बे समय तक सक्रिय रहना और पेयजल स्त्रोतों का दूषित होना, बेहद गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं खड़ी कर सकता है।

विदेशों में, ख़ास तौर पर चीन और अमेरिका से प्राप्त रिसर्च सूचनाओं के अनुसार, इन देशों में मरीज के थ्रोट स्वाब (throat swab) के साथ साथ, मल स्वाब की जांच और रक्त में एंटी बॉडीज (anti-body) का स्तर तलाशने (इम्मून सिस्टम मार्कर्स के लिए) न्यूक्लिक एसिड टेस्ट्स भी लगातार किये जा रहे हैं, जिससे संक्रमित और बिना लक्षण वाले संक्रमित जनसमूह के स्पष्ट आकलन के अलावा, हवा में ड्रॉपलेट के जरिये होने वाले कम्यूनिटी स्प्रेड (community spread), और मल के जरिये हो सकने वाले पेयजल स्त्रोतों के संक्रमण को जांचने और उसकी रोकथाम में भी उन्हें ढेर मदद मिलेगी, जबकि इन देशों में मलनिकास के पुख्ता इंतजाम हैं और पेयजलस्त्रोतों को दूषित करते पाए जाने पर कड़ी सजा के भी प्रावधान हैं, लेकिन हमारे देश में?

इन रिपोर्टों के अनुसार, उनके यहाँ ठीक हो चुके और नेगेटिव थ्रोट स्वाब ( negative throat swab) वाले मरीजों के मल स्वाब ( Feces swab) में २१ से २८ दिन तक भी एक्टिव वायरस (active virus) लोड वाले सेम्पल पाए गए हैं, परन्तु हमारे देश में तो, हमारे बार बार लिखने चेताने के बावजूद भी कोई मल स्वाब के जांच या इन मरीजों के द्वारा पेयजलस्त्रोत दूषित ना हों, इसकी तो कोई बात ही नहीं कर रहा है। हैरानी तो तब और भी बढ़ जाती है जब जिम्मेदार लोग सच पर अपनी आँखें मूंद लेते हैं जबकि दुनिया भर के मरीजों के आंकड़ें आज मोबाइल की वजह से इंसान की मुठ्ठी में हैं और इसका बहुत सीधा सा अर्थ, हमारे देश में यूँ भी निकाला जा सकता है कि हर साल की तरह इस साल भी जब गर्मी में, हमारे यहाँ वाटरबोर्न डिसीसेस (waterborne diseases) की भरमार होगी, तब इस वायरस के फीकोओरल रूट (fecal–oral route )यानी मलनिकास के जरिये होने वाले फैलाव और पेयजल संक्रमण के चलते जनसाधारण के क्या हाल होंगे, इसकी कल्पना करना कोई मुश्किल काम नहीं है।

भारत नैसर्गिक धनधान्य से भरपूर क्षेत्र है लेकिन इसकी नदियों तालाबों और अन्य पेयजल स्त्रोतों की दुर्दशा जगजाहिर है, मात्र एक अदृश्य से कीटाणु के जरिये प्रकृति ने दिखा दिया कि वो अगर भृकुटि तनिक भी टेडी कर ले तो लालची मनुष्य का क्या हश्र हो सकता है ।

इसलिए समय रहते सबको चेतना होगा और अगले कम से कम दो सालों के लिए एकजुट होकर आगे आकर प्रयास करने होंगे, अपने पेयजल स्त्रोतों को प्रदुषण और संक्रमण से मुक्त रखने के।
कैसे और क्या किया जाना चाहिए, यह और बाकी बातें कल के अंक में, तो सोचिये, सुझाव भेजने के लिए भी आपका स्वागत है, मिलते हैं कल, तब तक जय श्रीराम ।

डॉ भुवनेश्वर गर्ग
डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक
मंगलम हैल्थ फाउण्डेशन भारत


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