लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने में नेहरू युग की अतुलनीय भूमिका: जस्टिस गोविन्द माथुर

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दिनेश शर्मा “अधिकारी” ।

जयपुर , उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय के निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश, उ.प्र. एवं राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायधीश, न्यायमूर्ति  गोविन्द माथुर ने आज राजस्थान विश्वविद्यालय सीनेट हाल में राजीव गांधी स्टडी सर्कल द्वारा आयोजित नेहरू युग में सामाजिक- आर्थिक-राजनीतिक विकास की लंबी छलांग विषय पर प्रथम प्रो.पी.सी.व्यास मेमोरियल विशेष व्याख्यान देते हुए कहाकि 15 अगस्त, 1947 को भारत के राजनीतिक मानचित्र का आकार आज का प्रायरू आधा था। उसे नेहरू युग की सर्जिकल स्ट्राइक्स ने सर्वाधिक क्षेत्र विस्तार दिया। इसी प्रकार सामाजिक न्याय कानूनों सहित स्वतंत्र भारत में लोकहित के विधिक एवं संवैधानिक सुधारों में नेहरू युग का सत्तर प्रतिशत योगदान रहा है। लोकतंत्र का सुदृढ़ ढांचा खड़ा करने में नेहरू युग की उपलब्धियां देश, दुनिया में अतुलनीय रही हैं।

प्रोफैसर बीएम शर्मा

जस्टिस माथुर ने कहाकि नेहरू के नेतृत्व में और सरदार पटेल द्वारा देशी रियासतों के भारत में विलय की राजनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक ने भारतीय भूक्षेत्र को आजादी के बाद सर्वाधिक विस्तार दिया। पांच साल तक अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में पुर्तगाल से लड़ा गया मुकदमा जीतकर 15 अगस्त, 1960 को दादरा नगर हवेली का भारत विलय की नेहरू की घोषणा लीगल सर्जिकल स्ट्राइक थी। तीसरी थी सैन्य सर्जिकल स्ट्राइक, जिसमें दिसम्बर 1960 में गोवा दमन दीव को जीत कर भारत विलय हुआ।

2-जस्टिस गोविन्द माथुर।

गोवा को आजाद कराने में विलम्ब भी रणनीतिक था, जिसके पीछे अतर्राष्ट्रीय कोर्ट में पुर्तगाल से  पांच साल चला मुकदमा कारक था। चैथी कूटनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक्स से लंबी कूटनीतिक कोशिशों के द्वारा फ्रांस की कालोनी पांडिचेरी को मुक्त कराकर, नेहरू युग में भारत विलय कराया। दो और सर्जिकल स्ट्राइक्स उत्तर नेहरू युग में 1971 का युद्ध और सिक्किम का विलय थे। इन सभी ने मिल कर 1947 में आजादी के समय के भारत का आकार प्रायरू दोगुना बनाया।     श्री माथुर ने व्याख्यान में बताया कि नेहरू युग में भारत की आजादी ने एक सुदृढ़ संविधान के गठन के साथ दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का रूप लिया। संविधान की आत्मा जैसी उद्देशिका नेहरू ने खुद लिखी। भारत की संस्कृति के साथ नेहरू के अनुराग का इससे बड़ा कोई उदाहरण नहीं हो सकता कि संविधान की मूल प्रति में नन्दलाल चैधरी ने हर अध्याय के साथ जो पेन्टिंग्स बनाईं, उसका दिशा-निर्देश भी नेहरू का था। श्री माथुर ने जमींदारी खात्मे की सुरक्षा में, कामेश्वर सिंह केस में पटना हाई कोर्ट के फैसले के कुप्रभावों का निषेध करने के लिये, संविधान निर्मात्री संविधान सभा में ही हुए प्रथम संविधान संशोधन से लेकर अनेक विधिक सुधारों तक का विस्तृत विश्लेषण करते हुए कहाकि नेहरू युग के इन सुधारों का आर्थिक,  सामाजिक, राजनीतिक विकास पर गहरा और दूरगामी प्रभाव पड़ा। नेहरू अदालत में भले अच्छे वकील नहीं बने, लेकिन विधायिका सदन से,  जनमत निर्माण  तक के बीच इन मामलों के पक्ष में उनकी वकालत बेजोड़ थी।   राजीव गांधी स्टडी सर्कल के संस्थापक समन्वयक, राजस्थान शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष और राजस्थान विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रहे डा.पी.सी.व्यास की प्रथम पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. राजीव जैन ने की। गांधी संस्थान निदेशक प्रो.बी.एम.शर्मा ने प्रो. व्यास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। सर्कल के राष्ट्रीय समन्वयक प्रो.सतीश कुमार राय ने विषय प्रवर्तित किया। स्वागत भाषण डा.बनय सिंह एवं प्रो.विनोद शर्मा ने किया। व्यास परिवार की ओर से प्रो. कनिका शर्मा नवीन एवं सर्कल की ओर से डा.ध्यान सिंह गोठवाल ने धन्यवाद दिया। संयोजन और संचालन प्रो.निमाली सिंह ने किया। आयोजन में पूर्व कुलपति गण प्रो.पी. सी. त्रिवेदी, प्रो. आर.एस. बारठ, कुलपति कोटा ओपन यूनिवर्सिटी प्रो.आर. एल.गोदारा, पूर्व राजस्थान शिक्षा बोर्ड अध्यक्ष प्रो.पी.एस. वर्मा, प्रो.पी.आर.व्यास, प्रो.एच.एस.शर्मा, प्रो.राजीव गुप्ता, प्रो.विद्या जैन, प्रो. आभा जैन, प्रो.राजीव शर्मा, श्री मनीष शर्मा, श्री कटेवा, प्रो.महेश शर्मा, डा.एम.एल.अग्रवाल (अजमेर), डा.बिठ्ठल बिस्सा (बीकानेर), डा.वी. एस.पंवार, प्रो.डी.एस.खींची, डा.जेनाराम नागौर आदि (जोधपुर), वीरपाल सिंह आदि सहित विश्वविद्यालय के शिक्षकों के साथ एनएसयूआई के विद्यार्थियों ने भाग लिया। आरम्भ में प्रो. व्यास को पुष्पांजलि दी गई।

कवर पर प्रोफेसर सतीश राय का चित्र।



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