प्रयागराज के पौराणिक, धार्मिक व पुरातात्विक स्थल हंसकूप पर क्रियायोग का अवैध कब्जा

Share:

सौरभ सिंह सोमवंशी।

करीब एक दर्जन लोगों ने की थाने में शिकायत ।

प्रयागराज के ऐतिहासिक धार्मिक व पुरातात्विक स्थल जिसके बारे में कहा जाता है की जहां ब्रह्मा के मानस पुत्रों की कुछ जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए स्वयं जगत के पालनहार भगवान विष्णु ने हंस रूप में अवतार लिया था उस स्थल को बगल के ही शास्त्र विरुद्ध आचरण शील सत्यम क्रिया योग संस्थान के द्वारा कब्जा किया जा रहा है परम चैतन्य स्वरूप ब्रह्मचारी महाराज, रिटायर्ड अधिकारी बी आर प्रसाद शास्त्री व सुरेंद्र त्रिपाठी व शहर के गणमान्य सनातनी जनों सहित करीब एक दर्जन लोगों ने थानाध्यक्ष झूसी को दिए गए प्रार्थना पत्र में कहा है कि क्रिया योग संस्था के लोग लगातार पौराणिक स्थल हंस कूप पर जमावड़ा कर रहे हैं वहां पर लोगों को पूजा पाठ करने से मना किया जा रहा है। सत्यम क्रियायोग के लोगों ने जबरदस्ती जिस स्थान पर पौराणिक हंसकूप लिखा हुआ था उस पवित्र शब्द को मिटा कर क्रिया योग इत्यादि लिख दिया गया इतना ही नहीं आरोप यह भी है कि धार्मिक स्थल के पास सत्यम क्रियायोग के जमावड़ा करने वाले अराजक तत्व मादक पदार्थों का सेवन भी वहीं पर बैठकर करते हैं हंसकूप पर अतिक्रमण करने के लिए हंसकूप के अंदर गंदा अवशिष्ट पदार्थ भी डाला जाता है जिससे सनातन धर्म की आस्था आहत हो रही है।

इतना ही नहीं वहां पर क्रिया योग के गुरु महावतार बाबा की फोटो लगाकर पूरी तरह से उसको कब्जे में करने का प्रयास भी उन लोगों के द्वारा किया जा रहा है जिनका क्रिया योग से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार आरोप है कि हंस कूप पर कब्जे की साजिश लंबे समय से चल रही है जिसका विरोध शहर के कुछ लोग कर रहे हैं इसी सिलसिले में प्रयागराज के कमिश्नर को एक पत्र दिया गया था जिस पर जिला अधिकारी प्रयागराज के द्वारा एक टीम गठित की गई जिसने 23 मई को स्थल का निरीक्षण किया इसके बाद सत्यम क्रिया योग संस्था ने वहां पर अपने कब्जे को तेज कर दिया और दर्शनार्थियों को दर्शन करने से मना करने लगे, इसी मामले पर झूसी कोहना के पूर्व प्रधान सुरेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि मामला इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की बेंच के सम्मुख भी गया जिसमें क्रिया योग के द्वारा स्पष्ट रूप से यह शपथ पत्र दिया गया है कि किसी को भी दर्शन पूजन हेतु मना नहीं किया जाता है परंतु वास्तविक रूप में सीधा सीधा उच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन किया जा रहा है और दर्शन पूजन करने वालों को मारपीट कर भगा दिया जाता है। इस प्रकरण से संपूर्ण प्रयागराज में गुस्सा व्याप्त है।

योगी आदित्यनाथ की सरकार क्या करेगी भगवान विष्णु के हंसकूप का उद्धार?

उत्तर प्रदेश में जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई है तब से सनातन धर्मावलंबियों में एक आशा की किरण जगी है पूरे प्रदेश में जगह जगह पर धार्मिक स्थलों के पुनरुद्धार का कार्य चल रहा है क्या पुराणों में वर्णित हंसकूप का उद्धार योगी आदित्यनाथ की सरकार में हो पाएगा यह अपने आप में बहुत बड़ा प्रश्न है, इसलिए क्योंकि क्रिया योग संस्था के संस्थापक योगी सत्यम जिनके ऊपर आरोप है कि उनकी संस्था हंसकूप पर कब्जा करने का प्रयास कर रही है उनको समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का करीबी बताया जाता है अखिलेश यादव के साथ उनकी कई फोटो लगातार सोशल मीडिया पर कभी-कभी वायरल होती रहती है।

प्रयागराज के हंसतीर्थ की ऐतिहासिकता।

उत्तर प्रदेश प्रांत के प्रयागराज जिले में त्रिवेणी संगम के निकट श्री गंगा जी के पूर्वी तट पर शास्त्री पुल एवं रेलवे पुल के बीच में श्री कैलाश धाम आश्रम के निकट में प्रतिष्ठानपुरी (झूंसी) के कोहना में स्थित है प्रसिद्ध पौराणिक “हंस प्रपतन तीर्थ / हंस तीर्थ क्षेत्र” जहां भगवान श्री हरि विष्णु के 24 अवतार में एक हंस भगवान का अवतरण हुआ था इसलिए यह क्षेत्र हंस प्रपतन तीर्थ या हंस तीर्थ क्षेत्र कहलाया। यहां पर हंस का तात्पर्य भगवान विष्णु के अवतार हंस भगवान से है तथा प्रपतन का अर्थ उतरना, नीचे आना अथवा अवतरित होने से है।
ऊर्जे सिते नवम्यां वै हंसो जात: स्वयं हरि: अर्थात् सतयुग के युगादि तिथि कार्तिक शुक्ल नवमी जो कि अक्षय नवमी या आंवला नवमी के रूप में भी मनाया जाता है को भगवान श्री हरी विष्णु हंस भगवान के रूप में अवतरित हुए थे। भागवत महापुराण में उल्लेख है सनकादिक ऋषि गणों ने ब्रह्मा जी से प्रश्न किया हे परमपिता! मन की चित्तवृत्तियां और गुण एक दूसरे से मिले रहते हैं इसे पृथक कैसे किया जाए तब परमपिता ब्रह्मा ने भगवान श्री हरि का हृदय में ध्यान किया तब भगवान नारायण ने हंस का रूप धारण करके नीर -क्षीर विवेक ज्ञान युक्त हंस गीता तथा गोपाल मंत्रराज का उपदेश किया था जो कि सांख्य योग और वेदांत से अनुप्राणित है; इसके उपरांत स्वयं श्री शालिग्राम अर्चाविग्रह के रूप में हंस तीर्थ मंदिर में प्रतिष्ठित हुए थे।इस पूरे घटना का प्रकटीकरण बहुत ही सुंदर तरीके से मूर्तियों एवं कलाकृतियों के माध्यम से हंस तीर्थ मंदिर में किया गया; जो कि कुंडलिनी योग पर भी आधारित मंदिर है।

“हंस स्वरूप्यवददच्युत् आत्मयोगं दत्त: कुमारऋषभो पितान:। ” भागवत पु.(11-12/17)
“तस्याहं हंस रूपेण सकाशगमं तदा।।”भागवत पु.(11-13/19)
यह हम सभी का दुर्भाग्य है कि वर्तमान समय में सत्यम क्रिया योग अनुसंधान संस्थान द्वारा हंस तीर्थ मंदिर पर अवैध अतिक्रमण कर मूर्तियों को नष्ट किया जा रहा है तथा संध्यावट तीर्थ एवं श्री संकष्ट हरण माधव (देखें गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित तीर्थांक पृष्ठ संख्या 175) जैसे पौराणिक स्थलों तक भी नहीं जाने दिया जा रहा है।
हंस तीर्थ क्षेत्र से ही संबंधित है पौराणिक हंस कूप जिस पर अभी किसी का भी अवैध अतिक्रमण नहीं है किंतु उसकी अस्मिता को नष्ट करने का प्रयास शास्त्र विरुद्ध आचरणशील तत्वों द्वारा निरंतर किया जा रहा है ।यह प्रयागराज की सांस्कृतिक अमूल्य निधि है जिसका संरक्षण संवर्धन करना उसका जीर्णोद्धार करना ना सिर्फ किसी निकाय का अपितु सभी का दायित्व है क्योंकि इस कूप का ना सिर्फ पौराणिक अपितु औषधीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थान है।

“उत्तरेण प्रतिष्ठानाद् भागीरथ्यास्तु पूर्वत:। हंस प्रपतनम् नाम तीर्थं त्रैलोक्य विश्रुतम्।।”
“अश्वमेधफलं तस्मिन् स्नानमात्रेण भारत। यावच्चन्द्रश्च सूर्यश्च तावत् स्वर्गे महीयते।।” मत्स्य पुराण (106/32,33) , कूर्म पुराण ( 35/23,24) अर्थात् गंगा जी के पूर्वी तट पर एवं प्रतिष्ठानपुरी झूंसी के उत्तर में तीनों लोकों में विख्यात प्रसिद्ध पौराणिक “हंसप्रपतन तीर्थ/ हंस तीर्थ क्षेत्र” स्थित है। जहां निवास करते हुए पवित्र पौराणिक हंस कूप के शुद्ध जल से स्नान करने एवं आचमन करने से अश्वमेध यज्ञ करने के बराबर फल की प्राप्ति होती है तथा जब तक सूर्य और चंद्रमा रहते हैं तब तक मरणोपरांत जीवात्मा को स्वर्ग में निवास मिलता है।हंस कूप के पवित्र जल से स्नान करने पर करोड़ों गाय दान करने का फल भी प्राप्त होता है इसका उल्लेख उत्तर प्रदेश कुंभ मार्गदर्शिका में भी किया गया है। “वासुके भोगिवत्यत्र हंस प्रपतनं परम्। गवां कोटिप्रदानाद्यत्यहं स्नानस्य तत्फलम्।।”अग्नि पु. (111/10)। पौराणिक हंस कूप के पवित्र जल से स्नान एवं तर्पण श्राद्ध इत्यादि करने पर पितरों को भी ऊर्ध्वगामी गति की प्राप्ति तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है _ “हंस प्रपतनं नाम तीर्थं त्रिषुलोकेषु विश्रुतम्।।” “कूपं चैव तु तत्रास्ति प्रतिष्ठानेअतिविश्रुतम्। तंत्र स्नात्वा पितृदेवान्संतर्प्य यतमानस:।।”नारदीय पु.उ.खं.(६३/९३,९५)
पौराणिक हंस तीर्थ क्षेत्र द्वादश माधव की यात्रा एवं प्रयागराज की अंतर्वेदी परिक्रमा के अंतर्गत भी आता है। माघमहापर्व स्नान के उपरांत संतों एवं श्रद्धालुओं के द्वारा इन तीर्थों का सेवन किया जाता रहा है।
अतः आप सभी से अनुरोध है कि इस पवित्र स्थल पर अवश्य आएं एवं पौराणिक हंस तीर्थ क्षेत्र के संरक्षण हेतु यथा सामर्थ्य प्रयास भी करें।

श्री हंस भगवान की जय हो!
पौराणिक हंस तीर्थ क्षेत्र मुक्त हो!
पौराणिक हंस कूप का जीर्णोद्धार हो!
पौराणिक श्री संध्यावट तीर्थ संरक्षित हो!
श्री संकष्ट हरण माधव ( प्रयागराज के द्वादश माधव में नवें माधव) पुनः स्थापित हो!

हंस तीर्थ क्षेत्र के संरक्षण हेतु सामने आए हुए सभी धर्मावलंबी सुधीजनों की जय हो! विजय हो!

क्या है भगवान विष्णु का हंस अवतार?

कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना करने के बाद प्रयागराज में ही सर्वप्रथम यज्ञ किया था इसीलिए इसका नाम प्रयागराज पड़ा, झूसी को प्रतिष्ठान पुरी कहा जाता था।

एक बार भगवान ब्रह्मा अपनी सभा में बैठे थे। तभी वहां उनके मानस पुत्र सनकादि पहुंचे और भगवान ब्रह्मा से मनुष्यों के मोक्ष के संबंध में चर्चा करने लगे, उनकी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए भगवान विष्णु महाहंस के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने सनकादि मुनियों के संदेह का निवारण किया। इसके बाद सभी ने भगवान हंस की पूजा की। इसके बाद महा हंसरूपधारी श्रीभगवान विष्णु अदृश्य होकर अपने पवित्र धाम चले गए, कार्तिक शुक्ल मे नवमी तिथि को भगवान विष्णु ने हंस अवतार लिया था, श्रीमद्भागवत के एकादश स्कंध अध्याय 13 में भी इसकी चर्चा की गई है इसके अलावा पद्म पुराण, वराहपुराण, मत्स्यपुराण, और स्कंदपुराण में भी इसकी चर्चा की गई है जिससे इसकी प्राचीनता, पौराणिकता धार्मिकता और आध्यात्मिकता का पता चलता है, और इसी पर कब्जे की शिकायत झूसी थाना अध्यक्ष से की गई है।


Share: