लॉकडाउन ४ का आठवाँ दिन, क्लोरोक्विन की हकीकत !

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पंचतत्व की बात को आज एक अल्पविराम देना पड़ रहा है क्योंकि इस बीमारी और इसके उपचार में उपयोग की जाने वाली हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवा के सन्दर्भ में हम लगातार अपने प्रबुद्ध पाठकों को आगाह कर रहे थे और हमारी इस अहम् चेतावनी के समर्थन में, आज विश्व की चिकित्सा जगत की सर्वश्रेष्ठ और ख्यातिनाम जर्नल “द लेंसेट” ने भी मोहर लगा दी है। दुनिया भर के ६७१ अस्पतालों के, ९६ हजार से भी अधिक करोना संक्रमित मरीजों के उपचार और परिणामों के अध्ध्य्यन के बाद, सबको चौंका देने वाली इस खबर में, लेंसेट लिखता है कि जिन बीमार व्यक्तियों को यह हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवा दी गई, उनमे मृत्यु दर, उन समूहों से बहुत ज्यादा है, जिन्हे यह उपचार नहीं दिया गया और एंटीबायोटिक के साथ हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन देने का तो और भी बुरा नतीजा सामने आया है, हर चार मरीजों में से एक की इस दवा की वजह से मृत्यु हुई है। इस अध्ययन का नेतृत्व कर रहे प्रोफेसर मनदीप ने ब्रिटेन के अखबार द गार्जियन को बताया कि क्लोरोक्वीन या हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन से कोविड-19 मरीजों को कोई फायदा नहीं होता है, इसे आंकड़ों में साबित करने वाला, अब तक का यह सबसे व्यापक अध्ययन माना जा रहा है। हमारे पाठकों को याद होगा कि इस बीमारी के शुरूआत में, मार्च के महीने में ही, किस तरह इस दवा को लेकर पूरी दुनिया भर में झूठे दावे किये गए थे, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने भी इसका ऐलान कर दिया था, कि उन्हें करोना की दवा मिल गई है, उनकी देखादेखी भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने भी बाकायदा भारत सरकार के मंच से, जनसाधारण के लिए, इसके उपयोग की गाइडलाइंस जारी कर दी थीं, जबकि इन सबसे इतर, आपका डॉक्टर, लेखक अपने अल्प चिकित्सा ज्ञान के बलबूते लगातार लिखता और आप सबको आगाह करता रहा था, कि इस दवा के उपयोग से मरीजों को बेहद गंभीर नुकसान होंगे। हमने स्वास्थ्यमंत्री और प्रधानमंत्रीजी तक इस बात को पहुंचाने के हरसंभव प्रयास किये थे, लेकिन वहां तो कोई सुनवाई है ही नहीं। आज जबकि दुनिया भर के डॉक्टर, इस दवा और उसके दुष्परिणामों के बारे में जानते हैं, उन्हें पढ़ाया जाता है और USFDA भी लगातार चेताता रहा है, इसके दुरूपयोग के बारे में, फिर भी इस तरह मरीजों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ होना बेहद दुखद है। हकीकत यह है कि, जिन बीमारियों में यह दवा दी जाती है, मलेरिया और आर्थराइटिस, उनमें भी इसे बेहद सावधानी से दिया जाता है, यह शरीर की अंदरूनी ताकत, इम्युनिटी पावर, लिवर और हार्ट को बेहद गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है, इसलिए इसे गंभीर संक्रमित मरीज तो दूर, सामान्य लोगों, बच्चो, बूढ़ों, गर्भवती महिलाओं, हार्ट लिवर के मरीजों को भी बिना सोचे समझे नहीं दे सकते, फिर क्योंकर यह घोषणाएं हुई, इसकी जाँच होनी चाहिए और सक्षम, योग्य, जागरूक विषय विशेषज्ञों को इन विभागों की जबाबदारियाँ दी जानी चाहिए। इन घोषणाओं से हर किसी ने, बिना बीमारी, बिना डाक्टरी सलाह, इस दवा का सेवन करना शुरू कर दिया था, बहुत से लोगों ने तो इसे बाकायदा व्हाट्सप्प समूहों में जारी कर दिया, दस रुपये की गोली, सो रुपये, हजार रुपये तक में, कालाबाजार में बिकी और चूँकि हमारे देश में किसी तरह का कोई नियम नहीं है, और ना ही कोई सक्षम संस्था, जो इन विधाओं और दवाओं के उपयोग का लेखाजोखा रखकर, इनके फायदे नुकसान के आंकड़ें जमा कर ले, जिससे इनके परिणामों का आकलन कर,  उनका भविष्य में कोई सार्थक उपयोग किया जा सके, तब किसे रोका जा सकता है? यहाँ तो मेडिकल कॉलेजों के डीन्स तक को एक अदना सा क्लर्क, एसडीएम हड़का कर चला जाता है और क्या करना है, कैसे करना  है, यह बताता है। आज जब, अमेरिका का उदाहरण सामने है, जिसने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का जमकर इस्तेमाल किया, वहां बीमारी घटने के बजाए तेजी से बढ़ी, मृत्युदर भी भयावह है, इस स्थिति में, जबकि भारत इस दवा का सप्लायर देश है और यहाँ कोई नियम कानून नहीं हैं, तब यक़ीनन, भले ही कितने ही मरीजों की मौत हो जाए लेकिन फिर भी, भारत अपने देश में भी वही प्रयोग दोहराता रह सकता है, जबकि उसके खतरे पर प्रायोगिक निष्कर्ष, आज सारी दुनिया के सामने हैं?और हो भी क्यों नहीं, जब यहाँ योग्य पर अयोग्य श्रेष्ठ है तो फिर यहाँ सब कुछ संभव है, इसलिए तो इस देश में, आरक्षण और व्यापम के बावजूद, “दुनिया के सर्वश्रेष्ठ चिकित्सकों के होते हुए भी”, मरीजों की दुर्गति है और उपचार प्रक्रिया में “धन,पद, तंत्र प्रभाव” साफ़ झलकता है!मिलते हैं कल, तब तक जय श्रीराम ! 

डॉ भुवनेश्वर गर्ग  डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक मंगलम हैल्थ फाउण्डेशन भारत संपर्क: 9425009303 ईमेल : drbgarg@gmail.com https://www.facebook.com/DRBGARG.ANTIBURN/


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