लाल बहादुर शास्त्री की पुण्यतिथि पर दी श्रद्धांजलि

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डॉ अजय ओझा।

लाल बहादुर शास्त्री सादगी व वीरता की मिसाल थे -राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य।

प्रकृति प्रेमी है हमारी संस्कृति-योगाचार्य श्रुति सेतिया।

मंगलवार,11 जनवरी। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में पूर्व प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री जी की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई । उल्लेखनीय है कि 11 जनवरी 1966 को ताशकन्द में उनकी रहस्यमय मृत्यु हो गई थी जिसकी पहेली आज तक अनसुलझी है साथ ही योगाचार्य श्रुति सेतिया ने “प्रकृति प्रेमी है हमारी संस्कृति” पर विचार रखे ।

केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि लाल बहादुर शास्त्री भारत माता के अनमोल रत्न थे,वह सादगी व सरलता की एक मिसाल थे । एक निर्धन परिवार में जन्म लेकर प्रधानमंत्री तक की यात्रा उनके संघर्ष व महान संकल्प की कहानी है, उन्होंने ही “जय जवान-जय किसान” का नारा दे कर एक समय अन्न त्याग करने का आह्वान किया था जिससे बाहर से अन्न न मंगवाना पड़े । वह एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे ऐसा व्यक्ति मिलना बहुत कठिन है आज के राजनेताओं को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। उनके अंदर साहस व निर्भीकता कूट कूट कर भरी हुई थी । स्वतंत्रता संग्राम में भी वह 9 वर्ष तक जेल में रहे ।
योगाचार्य श्रुति सेतिया ने कहा कि हमारी संस्कृति पर्यावरण के संरक्षण की है । ” प्रकृति का आशीष,संस्कृति का भाल, गर ये नहीं तो अस्तित्व का सवाल ।”
पृथ्वी सदियों से मानव जाति को आश्चर्य प्रदान करती आ रही है ।मानव जीवन के अस्तित्व के लिए धरती ने हवा, पानी ,खाद्य सामग्री आदि अनेकों उपहार दिए हैं। पेड़-पौधों ने धरती को हरा-भरा बना कर प्राणी जगत को जीवंत कर दिया, लेकिन कटु सत्य है कि दुनिया भर के साधन- समर्थ लोग प्राकृतिक संसाधनों का बहुत दोहन करते हैं। हमारे प्राचीन काल के ऋषि मुनि तथा विचारकों ने पर्यावरण संरक्षण के प्रति गहरी रुचि प्रदर्शित की । कहा गया 10 कुँए एक तालाब के बराबर हैं ,10 तालाब एक झील के बराबर है, 10 झील एक पुत्र के बराबर है । पर्यावरण के आधार पर वृक्ष- पौधों की रक्षा का संस्कार धर्म के माध्यम से भी यहां रचा बसा है।

यह भारत ही है जिसने सबसे पहले पूरी दुनिया को यह दर्शन दिया था कि पेड़ पौधों में भी जान होती है। अलग-अलग वृक्ष लगाने से व्यक्तियों को अनेक पुण्य प्राप्त होते हैं । भगवान बुद्ध के जीवन के सभी घटनाएं वृक्षों की छाया में घटी। इतिहास साक्षी है कि सिखों के गुरुओं के प्रिय वृक्ष रीठा साहब, दुख भंजनी, मेहताब सिंह की बेरी के वृक्ष आज भी इतिहास की याद दिलाते हैं। हमारी पहचान हमारी माटी, हमारे गांव से है । सचमुच बहुत अद्भुत है हमारी संस्कृति हमारा परिवेश।

” पूर्णमदह पूर्णमीदम” अर्थात हम प्रकृति से उतना ही ग्रहण करें जितना हमारे लिए आवश्यक हो तथा प्रकृति की पूर्णता को क्षति न पहुंचे। दुनिया की एकमात्र संस्कृति जो शांति पाठ के माध्यम से उद्घोष करती है ,ओम शांति अंतरिक्षम शांति पृथ्वी । ध्यान रहे शांति मिलेगी तो केवल प्राकृतिक संरक्षण से ही क्योंकि उसी में हमारा संरक्षण है।
मुख्य अतिथि आर्य नेत्री विमला आहुजा व अध्यक्ष रजनी चुघ ने शास्त्री जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रकृति के संरक्षण पर जोर दिया ।

प्रान्तीय महामंत्री प्रवीण आर्य ने कहा कि विश्व हिन्दी दिवस भारत के गौरव को बढ़ाता है,हमें अपने जीवन में हिंदी को आत्मसात करना चाहिए।

गायिका प्रवीना ठक्कर, रजनी गर्ग,दीप्ति सपरा,प्रतिभा सपरा,मर्दुल अग्रवाल, सुनीता अरोड़ा,अनुश्री,किरण सहगल, प्रतिभा कटारिया, रविन्द्र गुप्ता, ऊषा आहुजा, कुसुम भंड़ारी आदि ने मधुर भजन प्रस्तुत किया |


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