हाथरस घटना की हकीकत

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हाथरस । राजनीति इतनी गिर जाएगी इस बात का अंदाजा कम से कम मुझे तो नहीं था जिस तरह से विपक्ष चाहे वह कांग्रेस, समाजवादी पार्टी ,भीम आर्मी व बहुजन समाज पार्टी के झंडा वरदारो ने हाथरस में एक दलित लड़की की हत्या दलित-दलित कह कर विधवा विलाप करके वोट बैंक की राजनीति करने हेतु समाज में “सामंतवाद बनाम दलित”, “सवर्ण बनाम दलित”, “क्षत्रिय बनाम दलित” की रूपरेखा बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

यह लोकतंत्र वह राजनीति की सूचिता पर एक गंभीर सवाल खड़ा करता है। मैं इस पक्ष में कदापि नहीं हूं कि किसी की मां, बहन या बेटी का बलात्कार व हत्या जैसे जघन्य अपराध किया जाए। दोषी को सख्त से सख्त सजा मिले परंतु हमारी न्याय व्यवस्था की आत्मा उस समय कहाराने लगती है जब निर्दोष को सजा मिलने लगती है।न्याय व्यवस्था की आत्मा तो यह कहती है कि किसी भी दोषी व अपराधी को बिल्कुल ही अपराध मुक्त ना किया जाए परंतु किसी भी निर्दोष व्यक्ति को बिना कुछ किए उसको सजा देना यह न्याय व्यवस्था की चतुर्दिक सिद्धांत का गला घोटना होता है। यह भाड़ मीडिया अपनी टीआरपी के चक्कर में अर्थात आर्थिक साम्राज्य को बढ़ाने के लिए देश के सामाजिक समरसता व सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने में कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ते हैं। पत्रकारिता का इतनी घिनौना स्तर आज के इस लोकतंत्र पर पत्रकारिता समुदाय पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर देता है एवं एक साथ सैकड़ों सवाल भी खड़े हो जाते हैं। क्या टीवी चैनल के भाड़ मीडिया के लोग व सोशल मीडिया पर बिना कुछ समझे-बुझे जाने परखे इस तरह का प्रसारण करना एवं सोशल मीडिया पर लिखना सामाजिक समरसता को तोड़ने का कार्य नहीं कर रहा है ? धीरे-धीरे तस्वीर साफ हो रही है। जिस लड़की के बारे में यह कहा जा रहा था कि उसकी जीभ काट दिया गया, उसका 4 लोगों के द्वारा जबरदस्ती गैंगरेप किया गया, गर्दन की हड्डी तोड़ दी गई, रीड की हड्डी तोड़ दी गई व गैंगरेप के बाद उसकी आंखें निकाल दी गई आदि आदि।आज सब कुछ स्पष्ट हो रहा है कि यह सब कुछ भी नहीं हुआ था बल्कि पुरानी अदावत व रंजिश के कारण मारपीट का रुप इतना विभत्स हो गया कि संदीप ने लड़की की गर्दन हाथ से दबा दी।अब तो धुंधली- धुंधली यह भी खबर सोशल मीडिया में आने लगी की मृतका मनीषा बाल्मीकि का भाई ही क्रोधित होकर अपनी बहन पर जानलेवा हमला किया था, बहुत बुरी तरह से पिटाई भी किया था और खेत के चारों तरफ लगे हुए कटीले तार पर मृतिका मनीषा बाल्मीकि गिर गई जिसकी वजह से उसके जीभ चोटिल हो गई थी ।बेहोशी की अवस्था मे खेत के मेड़ पर छोड़ कर चला गया था जबकि उसकी मां वहीं मौजूद थी। यह भी महत्वपूर्ण जांच का विषय है। योगी आदित्यनाथ जी ने पक्ष विपक्ष और पुलिस कर्मियों की पालीग्राफ और नार्को टेस्ट का आदेश देकर दुध का दुध और पानी का पानी स्पस्ट करने का कार्य कर दिया है। इस सच्चाई से भी इनकार नही किया जा सकता है कि मनीषा और संदीप सिंह का विगत कई महिनों से प्रेम संबंध भी चल रहा था जिसकी वजह से दोनों परिवारों में अदावत व तनातनी थी। योगी आदित्यनाथ जी ने एस० आई० टी० गठित कर सात दिनों मे रिपोर्ट देने की बात भी कह दी और एस० आई० टी० टीम एक चरण की जांच जैसे ही सौपी योगी जी पुलिसकर्मियों पर निलंबन की कार्यवाई भी दनादन कर दी। यही नहीं मृतका के परिवार के सदस्य को नौकरी ,लखनऊ में आवास व 25 लाख का मुवावजा भी योगी सरकार ने देने का ऐलान कर दी थी परंतु इस बीच में कुछ तथाकथित कांग्रेस पार्टी के नेताओं द्वारा मृतका के भाई के मोबाइल पर वार्ता का आडियो भी वायरल हुई जिसमे नेताजी द्वारा समझने की कोशिश की जा रही है कि आप लोग 25 लाख पर न मानना 50 लाख की मांग करना।मै अपनी वाली मीडिया भेज रहा हूँ और तुम्हें क्या बोलना है और क्या नहीं बोलना है उस बात को बाखूबी भाई को समझाया जा रहा है। भाड़ मीडिया द्वारा लड़की की हत्या से अधिक दलित शब्द का प्रयोग करके हाईलाइट करने की कोशिश की जा रही है।मंतब्य आप समझ चुके होगें।वाह रे घिनौनी राजनीति वह भी लाश पर।अब सवाल उठता है कि यही मीडिया उस समय कहा चली जाती है जब एक दलित समाज के ऊपर दलित समाज द्वारा हत्या की जाती है? जब एक दलित समाज द्वारा सवर्ण समाज के किसी व्यक्ति की हत्या की जाती है तो मीडिया को क्यों सांप सूंघ लेता है? जब एक सवर्ण के बेटी की हत्या कोई बैकवर्ड समाज या बैकवर्ड समाज के बेटी की हत्या दलित समाज के किसी व्यक्ति द्वारा की जाती है उस समय इस मीडिया के मुंह मे दही क्यों जम जाती है? एक सवाल यह भी उठता है कि घटना 14 सितंबर की है ग्राम बोलगढ़ी थाना चंदवा जिला हाथरस की है और 14 सितंबर को लड़की वह लड़की की मां ने स्थानीय अस्पताल मे बयान दिया कि मात्र एक लड़का संदीप सिंह पुत्र गुड्डू सिंह ने ही उसकी बेटी के साथ मारपीट की एवं जान मारने की नियत से गर्दन दबाया था जिसकी लिखित सूचना लड़की का भाई सत्येंद्र ने मुकामी थाने में दे दिया था।आखिर कौन सी ऐसी परिस्थिति 8 दिन बाद बन गई की लड़की वह उसके परिवारिक जनों ने अपने बयान में बदल कर यह बोलने लगे कि उनके साथ लवकुश सिंह,रामकुमार सिंह, रवि सिंह अर्थात 3 अन्य क्षत्रिय अर्थात कुल मिलाकर 4 लोगों ने मेरे साथ गैंगरेप भी किये है।जरूर दाल मे कुछ काला है।चलिए मै बताता हूँ।14सितंबर के प्रार्थना पत्र पर हरिजन एक्ट लगा तो तुरंत चार लाख पचास हजार मिला और गैंगरेप पर यह धनराशि और बढ़ जाती है।हां मीडिया मे यह भी कहा जा रहा है कि मृतका मनीषा बाल्मीकि की अंतिम क्रिया कर्म अर्थात अंतिम संस्कार पुलिस जबरदस्ती बिना मां बाप भाई के सहमति से रात्रि के लगभग 1:00 बजे कर दी गई जो मेरे दृष्टिकोण से भी उचित नहीं है पंरतु कानून व्यवस्था को बनाए रखना भी जिला प्रशासन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। यह जांच का विषय है कि पुलिस किन परिस्थिति में ऐसा की, लेकिन इस बात को भी मीडिया को बताना पड़ेगा कि दिल्ली में सफदरजंग अस्पताल में जब लड़की की मृत्यु प्रातः 9:00 और 10:00 के बीच में हो जाती है तत्काल पोस्टमार्टम हो जाने के बाद लगभग 11:00 बजे से लेकर रात्रि 10:00 बजे तक पोस्टमार्टम की लाश दिल्ली में रखी रही इसके पीछे क्या उद्देश्य था?पारिवारिक जनों व पुलिस कर्मियों के लिए यह जांच का विषय है। अंत मे पुलिस इसके बाद मृतका को घर न ले जाकर श्मशान घाट में जब लाश लेकर गई तो उससे पहले मृतका के परिवार जनों से पुलिस व अधिकारियों द्वारा इस बात का आग्रह बार-बार किया जा रहा है कि तुरंत चलकर अपनी बेटी को वहीं देखकर दाह संस्कार में भागीदारी सुनिश्चित करिए परंतु परिवारिक जनों द्वारा यह कहा जाना कि हम अपनी बेटी का दाह संस्कार प्रातः काल सुबह करेंगे इस मुद्दे पर पुलिस प्रशासन के आपसी सामंजस के कमी व लापरवाही के कारण यह दोष सिद्ध हुआ जिसकी वजह से प्रथम दृष्टया योगी जी ने निलंबन की कार्रवाई सुनिश्चित की लेकिन साथ ही साथ मैं यह भी बताना चाहता हूं कि मृतका के परिवारिक जन में एक या दो व्यक्ति मृतका मनीषा के लाश के साथ सीधे एंमबुलेंस मे बैठकर दिल्ली से श्मशान घाट भी गए थे और उन्हीं के हाथों से दाह संस्कार की क्रिया भी प्रारंभ कराई गई थी। परंतु यह भाड़ मीडिया इस बात को बताने में गुरेज क्यों कर रही है? यह एक सोचनीय विषय है। विदित हो कि मृतका मनीषा बाल्मीकि की तीन-तीन बार मेडिकल जांच कराई गई थी एक सामान्य मेडिकल,दूसरा पोस्टमार्टम, व तीसरा फॉरेंसिक रिपोर्ट।तीनों में एक ही बात स्पष्ट हो कर आयी कि उसके साथ किसी प्रकार का कोई गैंगरेप नहीं हुआ था परंतु या भाड़ मीडिया वह विपक्षी दलों के नेतागण अपनी राजनीतिक रोटी सेकने के लिए व मीडिया अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए पूरे आसमान को सर पर उठा कर चिल्ला- चिल्ला कर बोले जा रहे हैं कि मृतका के साथ गैंगरेप भी हुआ था। इस तरह के उद्वेलित व वैमनस्यता पैदा करने वाले शब्दचित्र समाज के सामने जिस किसी ने भी परोसा क्या वह कानूनी रूप से दोष के दायरे में नहीं है? इन तमाम सवालों का जवाब यदि हम ढूंढ लेंगे तो कहीं न कहीं यह पाते हैं कि वर्तमान भारतीय राजनीति विशुद्ध रूप से राजनीति नहीं बल्कि वोट बैंक के लिए घिनौनी राजनीति का स्वरूप अख्तियार कर चुकी है। राजनीतिक दलों को तो कम से कम इस बात से बिल्कुल परहेज करना चाहिए कि वोट बैंक किसी की लाश पर कदापि न करें। बेटियां तो हमारी हो या किसी की भी हो, किसी भी जाति व सम्प्रदाय की क्यों न हो ऐसी घटनाओं पर न्याय मिलना चाहिए और वह भी फास्ट ट्रैक कोर्ट के माध्यम से जिसकी घोषणा योगी आदित्यनाथ ने कर भी दी। उत्तर प्रदेश के बहुत सारे जिलों के साथ-साथ भारत के विभिन्न प्रांतों में इस तरह की घटनाएं घटित हुई है जो अन्य समुदाय व अन्य संप्रदाय के लोगों ने अपराध कारित किए है परंतु वहां ये मीडिया के दलाल अपने मुंह में जाबा लगाकर बैठ जाते है। यहीं नहीं राजनीति करने वाले भी अपना नफा नुकसान का आकलन कर मौन साध लेते है।उस समय इन राजनीतिक दलों के मुंह में दही क्यों जाम जाती हैं?इन दलों के नेता सड़क पर क्यों नहीं उतरते हैं ?आज बिना समझे-बुझे कानून की धज्जियां उड़ाते हुए समाज में वैमनस्य फैलाने का काम जिन भाड़ मीडिया टीवी चैनलों व सोशल मीडिया के लोगों ने किया है क्या उनके साथ भारतीय कानून की सीआरपीसी व आईपीसी में कोई धारा बनती है? आप ही विचार करिए कि क्या कार्रवाई किया जाना जरूरी नहीं है? पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से स्पष्ट हो चुका है कि हाथरस की मनीषा बाल्मीकि खुद अपनी वीडियो में बोल रही है कि संदीप सिंह नाम का मात्र एक ही लड़का जो उसकी गर्दन दबाया फिर वह तीन अन्य लोगों को व किन परिस्थितियों में अपराधी बना कर जेल भेजा गया? एक एक बड़ा सवाल है। समाजवादी पार्टी,बहुजन समाज पार्टी व कांग्रेसी लोग तो दलित की बेटी को न्याय दिलाने मे कम बल्कि तिल का ताड़ करने में मशगूल अधिक थे। मीडिया और राजनीतिक दल सामंतवादी बनाम दलित के नारे लगा रहे थे। सवर्ण बनाम दलित का खेल खेला जा रहा है। ठाकुर बनाम हरिजन का खेल तेजी से खेला जा रहा है। यहां तक कहा जा रहा था कि क्षत्रिय समुदाय के लोग अक्सर इस तरह के कुकुत्व किया करते हैं। इस तरह की घिनौनी बातें करना समाज में वैमनस्य फैलाने का कार्य करता है। क्या कानून उनके लिए कोई कार्यवाई करेगा? ऐसे तमाम सवाल लोकतंत्र को खोखला करने के लिए पर्याप्त है। मृतका मनीषा बाल्मीकि के भाई द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट हेतु प्रार्थना पत्र में स्पष्ट रूप से यह लिखा गया है कि उसकी बहन से लड़ाई झगड़ा गांव के एक क्षत्रिय का लड़का संदीप से हुआ था जो मात्र अकेले ही वहां पर आया था फिर किन परिस्थितियों में तीन अन्य लोगों को भी अभियुक्त बनाया गया ? यह विचारणीय और जांच का विषय है।मृतका की मां वीडियो में यह स्पष्ट रूप से बोल रही है कि हमारी अदावत क्षत्रिय परिवार से बहुत पहले से चली आ रही थी और पहले भी मुकदमा करवायी थी जिसमें वह 6 महीने तक उस क्षत्रिय परिवार के लोग जेल में थे, तो जाहिर सी बात है अदावत और आपसी दुश्मनी के कारण विद्वेष और कुंठित मानसिकता से वशीभूत बदला लेने की मंशा से आपसी लड़ाई झगड़े को एक दलित बनाम सवर्ण का रूप देना आज के इस भांड मीडिया का कुकृत्य बन गया है जो समाज के लिए वैमनस्यता फैलाने व समाज में आपसी भाईचारा को समाप्त करने का कार्य कर रहा है। इस पर से राजनीतिक दल अपने-अपने झंडा लिए हुए सड़कों पर इस तरह से राग अलाप रहे हैं जैसे इस देश में लोकतंत्र नाम की कोई चीज नहीं है। जब उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में एक मुस्लिम द्वारा हिंदू परिवार की लड़की का बलात्कार कर दिया जाता है व राजस्थान व अन्य प्रांतों में इस तरह की घटनाएं घटित होती है तो विपक्ष के मुंह में ताला क्यों लग जाते हैं?राजनीति करने वालों वोट की राजनीति ना करें जिसकी वजह से समाज मे टूटन और आ जाए ।दलितों की राजनीति करने वाली दौलत की बेटी मायावती जी ने तो यहाँ तक भी कह दिया कि इस घटना को सीबीआई को दे दिया जाए ।बिल्कुल सही है इस तरह की घटना को सीबीआई को दे दिया जाए पंरतु देश के अन्य प्रांतों और अन्य जिलों मे बहुत सारी घटनाओं को भी इसके साथ दे दिया जाए। मै इस लेख को मीडिया ,सोसल मीडिया और टेलीफोन वार्ता के आधार पर आए रिपोर्टो के आधार पर लिखा हूँ। किसी को आहत पहुचाने का कोई मंतब्य मेरा नही है।

बीरेंद्र सिंह पत्रकार
मो०9415391278


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