मई दिवस पर भी मजदूरों की असहनीय मजबूरियां

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देश में 1 मई 1923 से मई दिवस को मनाया जाता है। इस दिन राष्ट्रीय अवकाश भी रहता है। कहीं-कहीं से अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस अथवा मजदूर दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। लेकिन इतने बरसों के बाद शायद पहली बार मई दिवस पर मजदूरों की असहनीय पीड़ा देखने को मिली। उनकी मजबूरियों का कोई अंत दिखाई नहीं दे रहा है। लॉक डाउन खत्म होने के बाद भी मजदूरों की सबसे बड़ी चिंता हाथ को काम मिलने की रहेगी। फिलहाल 17 मई तक लॉक डाउन बनाए जाने के बाद मजदूरों के घर पहुंचने की मांग भी पूरी होती दिखाई नहीं देती। हालांकि कई राज्यों ने इस दिशा में प्रयास शुरू कर दिए हैं।

दरअसल कोरोना महामारी के कारण देश में सर्वाधिक कष्ट मजदूरों ने ही झेले हैं। पहले लॉक डाउन के दौरान हजारों मजदूरों को हजार किलोमीटर सामान और बच्चों के साथ पैदल ही सफर करना पड़ा। क्योंकि रेल और बस सेवाएं अचानक से बंद कर दी गई थी। देश के महानगरों से जब मजदूर अपने घरों के लिए निकले तब उनकी मजबूरियां देखकर पत्थर दिल भी दहल गए। और उस दौरान बहुत कम मजदूर अपने घरों को पहुंच पाए जबकि बड़ी संख्या में मजदूरों को रोक लिया गया। कई कई शहरों में भी रोका गया और उनके खाने-पीने की व्यवस्थाएं भी की गई लेकिन एक-एक दिन उन्हें एक-एक महीना सा लगा क्योंकि वह घर पहुंचना चाहते थे और हर बार में लॉक डाउन खत्म होने का इंतजार करते हैं इस बार फिर 17 मई तक इंतजार बढ़ गया है। राज्य सरकारें तब तक कितने मजदूरों को अपने घर वापस बुला पाएंगे कहा नहीं जा सकता।

बहरहाल स्कूली शिक्षा के वक्त “मैं मजदूर हूं” पाठ पढ़ा था। जिसमें लेखक ने मजदूरों की मार्मिक दशा का चित्रण करते हुए लिखा था कि मजदूरों ने भवन, सड़क, पुलिया सभ कुछ बनाएं लेकिन मजदूर वही का वही सड़क किनारे रह गया। यही सब देखने को आज भी मिल रहा है। सही अर्थों में तो मजदूर के कंधों पर ही पूरी दुनिया की उन्नति का भार है। लेकिन उसके लिए इन सब का उपयोग कोरोना संकट के समय भी करने को नहीं मिला। बल्कि रोज कमाने रोज खाने वाले मजदूरों के सामने आज और लॉक डाउन के बाद रोजी रोटी का संकट भयावह हो गया है। यह मई दिवस मजदूरों के लिए काला दिवस साबित हो गया है वैसे तो 1 मई को विभिन्न संगठन विभिन्न राजनीतिक दल मई दिवस पर मजदूरों के सम्मान में आयोजन करते थे और मजदूरों की समस्याओं का जिक्र करते हुए आगे उनके निराकरण की कसमें भी खाते थे लेकिन मजदूरों की दशा और दिशा आज तक नहीं बदली इस मई दिवस पर तो लॉक डाउन के चलते ऐसे कार्यक्रम भी नहीं हो पाए।

पूरे देश में श्रमिक वर्ग ही ऐसा है जो किसी भी मौसम में चाहे ठंड हो बरसात हो या फिर लू चलती गर्मी मजदूर अपनी हार्ड तोड़ मेहनत के बलबूते पर देश के प्रगति चक्र को तेजी से घुमाता है। और जिस पर हम लोग सुविधाएं पाते हैं जबकि मजदूर को इन सुविधाओं का लाभ कभी नहीं मिला।

कुल मिलाकर मई दिवस पर भी जिस तरह से पूरे देश में मजदूर मजबूरियों से घिरा रहा उससे मजदूरों के हित में आजादी के बाद से आज तक किए गए सभी प्रयास बोने दिखाई दिए। जिन लोगों ने भी लॉक डाउन के बाद मजदूरों के कष्ट को देखा है उनको मजदूरों के हित में काम करने के लिए आगे आना चाहिए। क्योंकि आगे की राह मजदूरों की और भी कठिन दिखाई दे रही है लंबे लॉक डाउन के कारण उद्योग धंधे बंद पड़े हैं यह कब शुरू होंगे कहा नहीं जा सकता और इनके बंद रहने का सीधा असर मजदूरों के जीवन पर देखने को मिलेगा।

देवदत्त दुबे

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