राँची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं के जीर्णोद्धारित भवन का उद्घाटन किया राज्यपाल ने

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डॉक्टर अजय ओझा।

रांची, 25 दिसंबर। राँची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं के जीर्णोद्धारित भवन के उद्घाटन कार्यक्रम के अवसर पर माननीय राज्यपाल-सह-झारखंड राज्य के कुलाधिपति रमेश बैस ने कहा कि “मुझे खुशी है कि राँची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभागों के पूर्व के भवन के नवीनीकरण का कार्य पूर्ण कर हमारे समक्ष नवनिर्मित भवन मौजूद हैं। छात्रहित में यह एक बड़ी उपलब्धि है और इसके लिए मैं डा. कामिनी कुमार और उनकी टीम को बधाई देता हूँ।
आज राँची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभागों के पुनर्निमित व जीर्णोद्धारित भवन के उद्घाट्न के अवसर पर आप सभी के बीच सम्मिलित होकर अपार प्रसन्नता हो रही है। प्राकृतिक एवं विभिन्न खनिज संपदा से परिपूर्ण इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के जनजाति प्राचीन काल से निवास करते आ रहे हैं। उनकी कला, संस्कृति, लोक- साहित्य, परम्परा एवं रीति-रिवाज अत्यन्त समृद्ध है और इसकी विश्व स्तर पर एक विशिष्ट पहचान है।

मुझे बताया गया कि झारखंड के बुद्धिजीवी, शिक्षाविद्, भाषाविद्, संस्कृतिप्रेमी एवं कला के विद्वानों द्वारा जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं के विकास एवं संवर्धन हेतु विश्वविद्यालय स्तर पर एक स्वतंत्र विभाग खोलने की इच्छाशक्ति ने इस विभाग की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन महापुरुषों के सतत् प्रयास से स्नातकोत्तर जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग की स्थापना सन् 1980 ई. में सम्भव हो सकी और पाँच जनजातीय एवं चार क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई आरम्भ की गयी।
 गर्व का विषय है कि हमारे विद्यार्थियों व शोधार्थियों ने भाषा, साहित्य, संस्कृति एवं कला के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करते हुए ऐसा वातावरण तैयार किया जिससे विदेशों में भी इन भाषा, साहित्य, संस्कृति एवं कला को जानने-समझने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई।

कई विदेशी विद्वानों ने कुँड़ुख़, खोरठा, नागपुरी, कुरमाली, मुण्डारी, संताली जैसी नौ भाषाओं में शोध कार्य किया जिससे अन्तराष्ट्रीय स्तर पर इन भाषाओं को स्थान और पहचान मिली।

आज सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय, दुमका में संताली की पढ़ाई हो रही है। विनोद बिहारी महतो विश्वविद्यालय धनबाद में खोरठा, कुरमाली एवं संताली की छःमाही सर्टीफिकेट कोर्स की पढ़ाई हो रही है। उसी तरह विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग में छः माह का सर्टीफिकेट कोर्स के साथ बी.ए. स्तर तक खोरठा, कुँड़ुख़, कुरमाली, संताली आदि भाषाओं की पढ़ाई हो रही है।

राँची विश्वविद्यालय में सभी नौ भाषाओं की पढ़ाई स्नातकोत्तर स्तर तक हो रही है। कोल्हान विश्वविद्यालय, चाईबासा में भी स्नातकोत्तर स्तर तक हो, संताली, कुरमाली आदि की पढ़ाई हो रही है एवं नीलाम्बर पिताम्बर विश्वविद्यालय, मेदनीनगर में बी.ए. स्तर तक कुँड़ुख़ भाषा में पढ़ाई हो रही है।  मुझे बताया गया कि राँची विश्वविद्यालय, राँची का यह स्नातकोत्तर विभाग पहले एक ही भवन में चल रहा था जो अब एक एक नवनिर्मित तीन मंजिला भवन में आरम्भ हो चुका है। यह विश्वविद्यालय द्वारा सेंटर फॉर एक्सेलेंस की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
उच्च शिक्षा के विकास के लिए यह जरूरी है कि शिक्षण संस्थानों में अनुकूल आधारभूत संरचना उपलब्ध हों। विद्यार्थियों को गुणात्मक शिक्षा मिलें, उच्च शिक्षा सर्वसुलभ हो जिससे हमारे विद्यार्थी अपनी प्रतिभा से राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राज्य व राष्ट्र का नाम रौशन करें। इसके लिए शिक्षकों को भी विशेष ध्यान देने की जरूरत तो है ही, उनकी जबावदेही भी आवश्यक है।
राँची विश्वविद्यालय का यह दायित्व है कि वे विद्यार्थियों को निपुण एवं दक्ष बनायें, उन्हें प्रोत्साहित करें कि वे जहाँ भी रहें अपने कार्य व आचरण से सबका नाम रौशन करें। उनकी एक देशभक्त एवं जिम्मेदार नागरिक के रूप में पहचान हो और उनमें राष्ट्रप्रेम की भावना प्रबल हो।

“मैं जानता हूँ राज्य में उच्च शिक्षा के विकास में कई बाधाएँ हैं। मैं उन बाधाओं को दूर करने हेतु सतत प्रयासरत हूँ। इसके लिए मैं छात्रहित को सर्वोपरि रखते हुए राज्य के कुलपतियों एवं वरीय अधिकारियों के साथ निरंतर बैठक करता हूँ। राँची विश्वविद्यालय का ये परम दायित्व भी बनता है यह विश्वविद्यालय शिक्षा एवं अनुशासन के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित करे जिससे इसकी गणना विश्व  के अच्छे विश्वविद्यालयों में हो।  राज्य का सबसे पुराना विश्वविद्यालय होने के नाते इसके पास असीम क्षमता है,  बस जरूरत है निष्ठा, समर्पण, टीम भावना के साथ संकल्पवान होकर कार्य करने की”।


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