सरकार के द्वारा दस हजार बसों के संचालन के बावजूद भी उत्तर प्रदेश में पैदल क्यों चल रहें है मजदूर ?
कोविड 19 महामारी के दौरान चल रहे तीसरे लाकॅ डाउन में राज्यो सरकारों ने प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुँचाने का बड़ा बिडा उठाया है और केन्द्र सरकार के सानिध्य में प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने का कार्य शुरू किया। साथ ही साथ प्रदेश में फंसे अन्य राज्य के मजदूरों को उनके घर भेजने का कार्य शुरू किया। कोरोना वायरस के मामलों के निपटारे और देखरेख के लिए उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्य नाथ ने टीम – 11 बनाई हुई हैं. सीएम योगी आदित्य नाथ अक्सर टीम-11 के साथ बैठक कर मामलों की जानकारी लेते रहते हैं ।
साथ ही कोविड 19 से संबंधित आगे की रणनीति पर फैसले टीम-11 के साथ बैठक के बाद ही करते हैं. इनसे बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने प्रवासी कामगार मजदूरों को सुरक्षित अपने घरों तक पहुंचाने के लिए 10 हजार बसों की व्यवस्था करने की बात कही थी . और सरकार ने इस अपने फैसले के अनुसार काम भी शुरू किया। जिसके बाद प्रवासी मजदूरों का अपने गंतव्य पहुँचना शुरू हुआ । मगर इस फैसले के बाद भी सरकार के ये साधन प्रवासी मजदूरों को उनके पहुँचाने के लिए पर्याप्त सिद्ध नहीं हो पा रहे हैं । अन्य राज्यो से आने वाले प्रवासी मजदूरों के साथ- साथ उत्तर प्रदेश के जिलों से भी मजदूरों का पलायन उनके अपने खर्चे या फिर पैदल ही लगातार चालू हैं ।
उत्तर प्रदेश रोडवेड की सबसे लगातार दिन रात सडको पर दौड़ रही है फिर भी मजदूर सडको पर पैदल चल रहे हैं । आखिर जब सरकार ने दस हजार बसे प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए लगाई हैं तो मजदूर पैदल चल क्यो रहा हैं ?
आज दस दिन से ज्यादा हो रहे हैं सरकार के द्वारा चलाई गई दस हजार बसों के पहिया घुमते हुए फिर भी समस्त मजदूर अभी तक अपने गंतव्य तक नहीं पहुँच पा रहा हैं । अगर ये दस हजार बसे प्रति दिन मात्र एक चक्कर 26 सवारियो को लेकर लगाए तो भी एक दिन में दो लाख साठ हजार मजदूरों को उनके गंतव्य तक पहुँचा सकती है और यदि यह मान लिया जाए की एक बस दो दिन में एक चक्कर लगाती हैं तो भी एक हर दूसरे दिन एक लाख तीस हजार मजदूरों को उनके गंतव्य पहुँचाया जा सकता हैं ।
अगर एक बस दो दिन में एक चक्कर लगा रही हैं तो उस हिसाब से दस दिन में तेरह लाख मजदूरों को उनके गंतव्य तक पहुँचाया जा सकता हैं ।
अगर एक बस प्रतिदिन एक चक्कर लगाती हैं तो यही संख्या 2600000 हो जाती है ऐसा भी नहीं है कि यह बसे एक ही तरफ से मजदूरों को लेकर जाती है क्योंकि अधिकतर गंतव्य ऐसे हैं जहां से मजदूरों को लाना और ले जाना दोनों ही गतिविधियां इन बसों के द्वारा हो रही है। इतने बड़े स्तर पर गाड़ियों का संचालन और उन गाड़ियों के द्वारा 10 दिनों में भी मजदूरों को उनके गंतव्य तक ना पहुंचा पाना अपने आप में कई बड़े सवाल खड़े करता है । जैसे क्या 10000 बसें प्रवासी मजदूरों को उनके घर भेजने के लिए ऊंट के मुंह में जीरे के समान साबित हो रही हैं ?
क्या 10000 बसों में से सभी बसें सड़कों पर दौड़ रही हैं या फिर कुछ कागजों में और कुछ सड़कों पर दौड़ रही हैं ?
एक सवाल यह भी उठता है कि क्या प्रदेश सरकार के पास प्रवासी मजदूरों की समस्त जानकारी है भी कि नहीं और अगर समस्त जानकारी है और प्रवासी मजदूरों की संख्या इतनी बड़ी है कि 10000 बसों से उनको उनके घरों तक पहुंचाना संभव नहीं तो फिर अभी तक उत्तर प्रदेश सरकार ने अधिक बसों का संचालन इन प्रवासी मजदूरों को उनके घर भेजने के लिए क्यों शुरू नहीं किया ?
क्यों मजदूरों को ट्रक टेंपो डीसीएम साइकल रेडी रिक्शा के द्वारा और पैदल मार्गो से अपने गंतव्य तक जाना पड़ रहा है ?
आखिर बसों का संचालन हो कैसे रहा है जो अब भी मजदूर सडको पर हैं ?
अरविंद कुमार