देश का 68607 करोड़ रुपया बट्टे खाते जाना शुभ संकेत नहीं

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किसी देश की आर्थिक स्थिति उसकी रीड़ हुआ करती है। जब आर्थिक स्थिति बिगड़ती है तो देश के सभी प्रकार के विकास, इंफ्रास्ट्रक्चर व प्रगति रुक जाता है। विश्व की बड़ी से बड़ी शक्तियां इन्हीं आर्थिक स्थितियों की बदौलत विकासशील से विकसित देशों में अपना नाम शुमार करवा चुकी हैं।

नरेंद्र मोदी की सरकार पहली बार 2014 में प्रचुर बहुमत से बनी थी।जनता ने यूपीए सरकार के 10 वर्षों के कार्यकाल से परेशान होकर मोदी की सरकार बनवाई थी। यूपीए के द्वितीय कार्यकाल की सरकार जो 2009 से 2014 तक का था,घोटालों का सरकार माना जाता था। उस कार्यकाल में तथाकथित 2G स्पेक्ट्रम घोटाला, आदर्श सोसाइटी का घोटाला, कोल आवंटन का घोटाला आदि बड़े-बड़े घोटालों की चर्चा मीडिया द्वारा पूरे देश में किया गया था। जनता अपनी उम्मीदों की राह तत्कालीन प्रधानमंत्री के कैंडिडेट के रूप में नरेंद्र मोदी को देख रही थी।

2019 में भी भारत की जनता एनडीए की सरकार के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरपूर भरोसा दिखाई परंतु भारत की जो आर्थिक स्थिति,प्रति व्यक्ति आय व बेरोजगारी का जो आलम है वह चिंताजनक है। भारतीय जनता पार्टी अपने घोषणा पत्र में कही थी कि प्रत्येक वर्ष नौजवानों को दो करोड़ रोजगार देंगे।6 वर्षों में 12 करोड़ लोगों को रोजगार मिलना चाहिए था।

भारतीय जनता पार्टी  के नेता चुनावी मंचो पर भाषण के समय अक्सर बोला करते थे कि देश के 65%नौजवान 35 वर्ष के कम के उम्र के हैं इसलिए हमारी सरकार का फोकस नौजवानों पर आत्म केंद्रित रहेगा। तत्कालीन समय में काला धन का बाजार मीडिया में, राजनीतिक गलियारों में,आम जनमानस में बहुत तेजी से उभर रहा था। यह सत्य है हमारे देश का पैसा नेताओं, उद्योगपतियों व अन्य लोगों द्वारा विदेशों में स्विस बैंक में काला धन के रूप में जमा है जो बहुत वर्षों से जमा होता चला आ भी रहा है।

बड़ी उम्मीद के साथ भारत की भोली-भाली जनता इस बात पर प्रचुर बहुमत दी थी कि विदेश से काला धन जब आएगा तो भारत की इंफ्रास्ट्रक्चर, गांव- गिराव,उद्योग- धंधे, रोजगार के सृजन में तेजी से बढ़ोत्तरी होगी। मुझे अच्छी तरह से याद है कि इन मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट के लब्ध- प्रतिष्ठित अधिवक्ता स्व राम जेठमलानी ने मुकदमा पंजीकृत भी किया था। बिहार से शरद यादव ने अक्सर अखबारों में काले धन पर लेख लिखा करते थे एवं  समय समय पर सार्वजनिक व राजनीतिक मंचों पर इस मुद्दे को मजबूती से उठाया करते थे।

आगे चलकर योग गुरु बाबा रामदेव ने अपने शिविरों में इस मुद्दे पर बहुत मजबूती से चर्चा परिचर्चा किया करते थे। योग गुरु तो यहां तक कहते थे कि भारत का काला धन जो इन नेताओं का एवं उद्योगपतियों का स्विस बैंक में जमा है जो यदि आज आ जाए तो भारत की सड़कें चमचमाती नजर आएगी।भारत विश्व के विकसित देशों में सबसे अग्रिम पंक्ति में रहेगा ।भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने अपने मंचों से कई बार कहा कि मेरी सरकार बनेगी तो काला धन 100 दिनोँ के अंदर में लाकर हम दिखाएंगे।हस्र क्या हुआ आप जानते हैं। यूपीए के द्वितीय कार्यकाल के प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने कार्यकाल समाप्त होते होते काले धन के नामों की सूची को संसद में उजागर कर दिया था।आगे आप स्वयं जानते हैं भारत की वर्तमान आर्थिक स्थिति पर समय समय से गवर्नर जनरल व अन्य साथियों के विचार आते रहे हैं।अब मैं आपको एक महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहा हूं जिसके संदर्भ में आपको बता दूं कि विगत बजट सत्र में राहुल गांधी ने सरकार से 50 उन पूंजीपतियों के नाम की सूची मांगी जो बैंकों से डिफाल्टर की लिस्ट में है।

यह पूंजीपति जानबूझकर कर्ज ना चुकाने वालों की श्रेणी में है।सरकार की तरफ से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा 16 फरवरी 2020 को पूछे गए इस तारांकित प्रश्न का जवाब देने से इनकार कर दिया गया। इसके बाबत एक आरटीआई एक्टिविस्ट साकेत गोखले ने इस संदर्भ में एक जन सूचना अधिकार 2005 अधिनियम के तहत आरबीआई से प्रश्न पूछा।साकेत गोखले ने यह भी कहा कि जिस तथ्य का खुलासा सरकार नहीं किया उसका खुलासा करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक के केंद्रीय सार्वजनिक सूचना अधिकारी अभय कुमार ने शनिवार 24 अप्रैल 2020 को यह जवाब उपलब्ध कराया जिसमें कई चौंकाने वाले खुलासे शामिल हैं।

आरबीआई ने कहां की यह धनराशि 68607 करोड रुपए है जिसे बट्टा खाता में डाल दिया गया है अर्थात उसका कोई अता-पता नहीं है और तकनीकी रूप से एवं विवेकपूर्ण तरीके से इस पूरी राशि को 30 सितंबर 2019 तक माफ कर दिया गया है।गोखले ने यहां तक कहा कि आरबीआई ने माननीय सुप्रीम कोर्ट के 16 सितंबर 2015 के एक फैसले का जिक्र करते हुए विदेशी उधारी कर्ताओं पर उचित जानकारी मुहैया कराने से इंकार कर दिया है। प्रमुख आरटीआई कार्यकर्ता साकेत गोखले ने 50 शीर्ष विलफुल डिफाल्टर जो जानबूझकर कर्ज न चुकाने वाले के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए 16 फरवरी 2020 तक उनके ऋण की मौजूदा स्थिति के बारे में जानने के लिए एक आरटीआई आवेदन दाखिल किया था जिसके बाबत भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकारियों ने लिखित उत्तर दिया है।विदित हो कि यह रकम थोड़ी बहुत नहीं बल्कि 68607 करोड़ रुपए है जिन्हे बट्टा खाता अर्थात साइड लाइन कर दिया गया है।

चौंकाने वाली बात यह है कि मीडिया में चर्चा का विषय बन चुके मेहुल चौकसी जो इस समय एंटीगुआ एंड बारबाडोस आइसलैंड का नागरिक है जबकि इसका भतीजा और एक अन्य भगोड़ा हीरा कारोबारी नीरव मोदी लंदन में है। उसका एवं विजय माल्या आदि सरीखे बहुत सारे डिफाल्टर हो के नाम इस सूची में है। सूची में प्रथम स्थान मेहुल चौकसी का है। मेहुल चौकसी हीरा कारोबारी वह देश का भगोड़ा है। सबसे अधिक राहत सरकार द्वारा मेहुल चौकसी की कंपनी “गीतांजलि जेम्स” को दी गई जो पहले नंबर पर है। “गीतांजलि जेम्स कंपनी” के 5492 करोड़ रुपए बट्टा खाते में डाला गया इसके अलावा मेहुल चौकसी की दूसरी कंपनी ” गिलि इंडिया “और “नक्षत्र ब्रांड”  को भी राहत मिली जो क्रम से 1447 करोड़ और 1109 करोड़ है। दूसरे स्थान पर राहत पाने वाली कंपनी “आर०ई०आई०” जिसको 4314 करोड़ रू जिसके निदेशक संदीप झुनझुनवाला और संजय झुनझुनवाला एक साल से अधिक समय से प्रवर्तन निदेशालय (ई०डी०) की जांच के दायरे में है।तीसरे स्थान पर राहत पाने वाली कंपनी “विंसम डायमंड एंड ज्वेलरी” जिसको 4076करोड़ ₹ इसके मालिक जतिन मेहता की जांच सीबीआई और विभिन्न बैंक धोखाधड़ी के लिए कर रही हैं।

“रोटोमैक ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड” को ₹ 2850 करोड़ जिसके मालिक विक्रम कोठारी कानपुर कोठरी समूह का हिस्सा है।”कुदोस केमी लिमिटेड”को ₹2326 करोड़, “जूम डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड” को ₹2012करोड़, भगोड़ा व शराबी करोबारी विजय माल्या की कंपनी “माल्या किंगफिशर एयरलाइंस” को ₹1943 करोड़ की राहत मिली। ताज्जुब की बात यह है कि राहत पाने वालों में सूची के आधार पर विजय माल्या की कंपनी को नौवें स्थान पर है।इसी क्रम में “फाँर एवर प्रीवियस ज्वैलरी एंड डायमंड्स प्राइवेट लिमिटेड” अहमदाबाद गुजरात के मालिक आर० मेहता को ₹1962 करोड़, “डेक्कन क्रानिकल होल्डिंग्स”को ₹1915करोड़ की राहत देकर बट्टे खाते में डाला गया है। इसके अलावा 25 कंपनियां ऐसी हैं जिनके ऊपर ₹1000 करोड़ से लेकर  ₹984 करोड रुपए तक के कर्ज है, ये कर्ज या तो  व्यक्तिगत तौर पर लिए गए हैं या समूह की कंपनियों के रूप में। आरटीआई कार्यकर्ता साकेत गोखले ने कहा कि उनमें से अधिकांश ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान प्रमुख राष्ट्रीयकृत बैंकों को चूना लगाया है और उनमें से कई या तो फरार है या विभिन्न जांच एजेंसियों की कार्रवाई का सामना कर रहे हैं और कुछ मुकदमों के सामना भी कर रहे हैं।

50 शीर्ष विलफुल डिफॉल्टर्स में से हीरा या सोने के ज्वेलरी उद्योग से संबंधित हैं इस मामले में अब कोई भी उद्योग बचा नहीं है। क्योंकि ये 50 शीर्ष विलफुल डिफाल्टर आईटी, इंफ्रास्ट्रक्चर,बिजली, स्वर्ण-डायमंड ज्वेलरी, फार्मा आदि सहित अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में फैले हुए हैं। अब सोचने वाली बात यह है कि देश की आर्थिक स्थिति कितनी डमा डोल है और इतनी बड़ी रकम करोड़ों में बट्टे खाते में डालना सरकार के मनसा पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। आज देश करोना वायरस रूपी महामारी से जूझ रहा है।देश की सारी गतिविधियां ठप पड़ी हुई है।सरकार केंद्रीय व राज्य कर्मचारियों के डीए को रोक रही है। दूसरी तरफ कितनी मोटी रकम बट्टे खाते में डालना सरकार के चरित्र पर दोहरा सवाल खड़ा करता है।देश का किसान,मजदूर,कामगार, मेहनतकश, छात्र, नौजवान बदहाली के हालत में जी रहे हैं।सरकार द्वारा न ही विदेशों से काला धन लाया  गया न ही देश को चूना लगाकर बाहर भाग जाने वालों के साथ ऐसा कोई कदम सरकार द्वारा उठाया गया की इनके पैसे को बट्टे खाते में न डाला जा सके।

विदेश से काला धन लाने की बात तो दूर रहा तमाम बैंकों से घोटाला कर- कर के ये उद्योगपति आखिर देश की आर्थिक स्थिति को गर्त में लाने में सफल होते नजर आ रहे हैं। विचार करिए हमने मनमोहन सिंह की सरकार को इसलिए दरकिनार किया था कि उनकी नीतियां देश के लिए आर्थिक दृष्टिकोण व अन्य मामलों पर खरी नहीं उतर रही थी। आज कमोबेश वही स्थितियां देश में बनती नजर आ रही है। 2करोड़ प्रतिवर्ष रोजगार देने वाली सरकार सारे सरकारी सेक्टरों को क्रमशः प्राइवेट सेक्टर में बदलती जा रही है चाहे वह बीएसएनल हो, चाहे वह रेलवे हो, चाहे वह ओएनजीसी हो आदि। आज बहुत सारे सरकारी उपक्रम को सरकार निजीकरण की राह पर ले जा रही है। यह देश के लिए शुभ संकेत नहीं ।

वीरेंद्र सिंह पत्रकार

हिंदी मासिक पत्रिका “शार्प रिपोर्टर व मनमीत” के संस्थापक वह वरिष्ठ पत्रकार  हैं।


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