करोना कालखंड के पांचवे अध्याय का चौथा दिन एक तंदुरुस्ती हजार नियामत!
धरती पर है करोना और आसमान में आफत,
चौतरफा बरस रही है मुसीबतों की नियामत।
अमेरिका, रशिया, फ़्रांस, इटली, भारत समेत दुनिया के सभी कोरोना प्रभावित प्रमुख देशों ने विगत सोमवार से अपने देशों में इस बीमारी का एग्जिट प्लान शुरू कर दिया है और अब तो भारत ने भी मान लिया है कि “कोरोना से डरों ना”, कहना हमारी भूल थी और अब हमें इसके साथ ही रहना है, जैसे हम कुपोषण, उलटीदस्त, शिशु मौतें या मलेरिया टीबी सार्स के साथ रहना सीख चुके हैं।
इनमे से भारत को छोड़कर लगभग सभी देशों में आज कोरोना संक्रमण का ग्राफिक वक्र समतल हो चुका है, और बेहतर व्यवस्थाओं वाले देशों में तो यह अब ढलान की ओर है। इसके बड़े स्पष्ट मायने मूढ़ जन भी निकाल सकते हैं कि इन देशों ने अपने यहाँ बीमारी पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया है। भारत मे अब सभी की जिज्ञासा इस बात को लेकर है कि हमारे यहां अब क्या होगा, इस बीमारी का शिखर हमारे यहाँ कब आएगा?
हालांकि यह कहना तो बहुत कठिन है, क्योंकि अव्वल तो देश में अघोषित गृहयुद्ध छेड़ने वाली ताकतें, १०० करोड़ भेड़ों को बरगला बहला फुसला कर और उनसे राजाज्ञा का सतत उल्लंघन करवाकर लगातार अराजकतायें फैला रही हैं, वहीँ दूसरी और बिकाऊ तंत्र, लुटेरे मेडिकल मैनेजराई माफिया के हाथों, जनसँख्या के अनुपात में बहुत ही कम और निम्नस्तरिय जांचपड़ताल तथा कागजी स्वास्थ्य सुविधाएं के आंकड़ें गढ़कर, बिकाऊ लेखनियों के जरिये खुद की पीठ थपथपवाता घूम रहा है, और इन्ही वजहों से अब यह स्पष्ट अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारा देश बहुत ही जल्द संक्रमण और मौतों के आंकड़ों में विश्व में पहला स्थान प्राप्त कर लेगा, और चूँकि अस्सी से पिच्च्यासी प्रतिशत जनता संक्रमित होकर, अपनी इम्युनिटी से स्वतः ही ठीक हो जा रही है, डरे सहमे, इनमे से अधिकतर लोग ना तो अपनी जांच करवा पा रहे हैं और ना ही किसी तरह का कोई विशेष उपचार ही ले रहे हैं, इसलिए सही आंकड़ें तो वही होंगे जो राजाजी कहेंगे और उनके इशारों पर ठुमके लगाती लेखनियाँ।
वस्तुतः किसी भी वायरस संक्रमण में बीमारी की भयावहता, हर देश के लिए अलग अलग है, जो जनसंख्या, भौगौलिक परिस्थितियां, मौसम, खानपान, रहनसहन, तापमान, व अन्य कई कारकों पर निर्भर करती है। हमारे देश में हर उस प्राकृतिक नियामत की भरमार है, जिसकी आवश्यकता प्राणिमात्र के जीवन और इम्युनिटी के लिए बेहद जरुरी है, हमें छह मौसमों की सौगात मिली है, इस देश की मिटटी, आबोहवा, जल और सूर्यकिरणों से खेलते बड़े होते शरीर, हर विपदा झेल जाते हैं और इसीलिए जबकि जनसंख्या के मुक़ाबले इस देश में बहुत कम और ग़लत टेस्ट हुए हें और हम बहुत अधिक संख्या में संक्रमित हो चुके हें, तब भी जीवन गति ठहरी नहीं है, हालांकि हर शहर में बीमारों और बुजुर्गों की मौतों के बहुत अधिक एेसे आँकडे हें, जिन्हें षड्यंत्रपूर्वक दर्ज ही नही किया गया है और शमशानों, कब्रिस्तानों में पहुँची इन बेहिसाब लाशों के इस साल और पिछले सालों के तुलनात्मक आँकड़ों से सच्चाई का पता लग सकता है। और इसीलिए हम बार बार लिख रहे हैं कि अच्छा स्वास्थ्य ही मनुष्य़ की सबसे बडी जीत है। व्यायाम और अच्छी पौष्टिक खुराक से हालांकि अच्छी सेहत पाई जा सकती है लेकिन विषमतम परिस्थितियों में वही जीव जीवित रह सकते हैं, जिनकी इम्युनिटी सर्वश्रेष्ठ हो। इसे ना तो किसी दुकान से ख़रीदा जा सकता है, ना ही दवा या इंजेक्शन से बढ़ाया जा सकता है और उन शर्तिया इलाज वाले ढोंगियों के काढ़ों से तो कदापि नहीं। इसे अगर मजबूत किया जा सकता है तो बस, संयमित जीवन जीते हुए शुद्ध सात्विक पौष्टिक भोजन करने और सूर्य के साथ उठने से।
जीवन में रोग तो बहुत आते रहेंगे, जरूरी यह है कि आलस, विलासिता और जंक फ़ूड को त्याग कर हमारे द्वारा लगातार बताई जा रही युक्तियों से शरीर के भीतर रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा कीजिये और अपने शरीर को रोगों से लड़ने लायक बनाइये।
मिलते हैं कल, तब तक जयश्रीराम।
डॉ भुवनेश्वर गर्ग
डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक
मंगलम हैल्थ फाउण्डेशन भारत
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